देहरादून की सड़कों में गड्ढों की भरमार, इससे बढ़ गया दुर्घटनाओं का खतरा Dehradun News
देहरादून की सड़कों में गड्ढों की भरमार है।एक अनुमान के मुताबिक दून की प्रमुख सड़कों पर कम से कम एक हजार गड्ढे बन गए हैं। इससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 19 Aug 2019 08:07 PM (IST)
देहरादून, सुमन सेमवाल। सुगम यातायात के लिए सड़कों का समतल होना भी जरूरी है। कम से कम जिस शहर में राजधानी हो, वहां ऐसी उम्मीद तो की ही जाती है कि सड़कें बेहतर हों। मगर, इससे उलट दून की सड़कों में गड्ढों की भरमार है। शायद ही ऐसी कोई सड़क को कि जहां गड्ढे न हों। रही सही कसर इस बरसात ने पूरी कर दी है और कई सड़कें तो ऐसी हैं, जहां पूरा का पूरा हिस्सा गड्ढों में तब्दील हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक दून की प्रमुख सड़कों पर कम से कम एक हजार गड्ढे बन गए हैं।
गड्ढों से भरी दून की सड़कें यातायात के लिए भी परेशानी खड़ी कर रही हैं और इससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। गड्ढों से बचने के लिए वाहन बीच सड़क पर ही दूसरे वाहनों को चौंकाते हुए इधर-उधर कट मारते हैं, जिससे जाम की समस्या तो बढ़ती ही है, इससे किसी भी वक्त बड़ा हादसा भी हो सकता है। अपनी तरफ से लोनिवि ने कई सड़कों पर गड्ढों को ईंट से भरने का काम भी किया है। हालांकि, इससे स्थिति बेहतर होने की जगह नई मुसीबत भी खड़ी हो गई है। क्योंकि वाहनों के चलने से ईंटें इधर-उधर खिसक गई हैं और दुपहिया वाहनों के इन पर रपटने का खतरा भी बढ़ गया है। दूसरी तरफ शहर के अंदरूनी हिस्सों में तो नाम लेने के लिए फौरी इंतजाम नहीं किए गए हैं।
ग्लोब चौक पर खोदा नाला, मलबा वहीं डंप
पहले तो बरसात के मौसम में नाले की खुदाई का कोई मतलब नजर नहीं आता, क्योंकि तरह के काम मानसून से पहले कर लिए जाने चाहिए। बावजूद इसके ग्लोब चौक के पास नाले की न सिर्फ खुदाई कर दी गई, बल्कि इसका मलबा भी वहीं डंप कर दिया गया। इससे सड़क का हिस्सा तो बाधित हो ही रहा है, बारिश में यह मलबा दोबारा नाले में भी समा रहा है। चकराता रोड पर आइएमए ब्लड बैंक के पास व मोहिनी रोड स्थित पुल के पास भी इसी मौसम में खुदाई कर लोगों की समस्या बढ़ाने का काम किया गया है।
गड्ढों में समा जाते हैं 1.50 करोड़
आपको जानकर हैरानी होगी कि दून की सड़कों पर मरम्मत के नाम पर हर साल करीब डेढ़ करोड़ रुपये खपा दिए जाते हैं। हालांकि, ये काम इतने चलताऊ प्रकृति के होते हैं कि कुछ ही महीनों में सड़कों पर मरम्मत के नाम पर लगाए गए टल्ले उखड़ जाते हैं और बरसात आते ही हालात जस के तस हो जाते हैं। इस तरह से हर मानसून सीजन के बाद गड्ढे भरने की प्रक्रिया बजट खपाने का आसान जरिया बनती जा रही है। इस दफा भी लोनिवि के प्रांतीय खंड, निर्माण खंड, ऋषिकेश के अस्थाई खंड व राष्ट्रीय राजमार्ग खंड डोईवाला ने दून क्षेत्र की सड़कों के लिए करीब 50-50 लाख रुपये के बजट का अनुमान पैचवर्क के लिए लगाया गया है।
इन्वेस्टर्स मीट में खर्च किए 10 करोड़ भी स्वाहासड़कों की मरम्मत का काम कितने अस्थायी ढंग से किया जाता है, इसका जीता जागता उदाहरण बनी है सितंबर माह में हुई इन्वेस्टर्स मीट। देश-दुनिया के निवेशकों को सुंदर दून के दर्शन कराने के लिए सड़कों को चकाचक किया गया था। तब दून क्षेत्र की सड़कों की मरम्मत व रंग-रोगन के नाम पर लोनिवि के प्रांतीय खंड, निर्माण खंड, अस्थायी खंड ऋषिकेश व राष्ट्रीय राजमार्ग खंड डोईवाला ने 10 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च की थी। तब लोनिवि के अधिकारियों ने दावे किए थे कि यह काम अगले दो-तीन सालों तक चलेगा। यह बात और यह कि सड़कों के सुधारीकरण का यह दावा एक बरसात को भी नहीं झेल पाया। वर्तमान में सड़कों को देखकर लगता है कि जैसे इनमें कई सालों से मरम्मत संबंधी काम कराए ही न गए हों। अतिक्रमण हटाया, सड़क चौड़ी की और बनाना भूल गएदून की सड़कों को चौड़ा कर ट्रैफिक की राह खोलने के लिए जो ऐतिहासिक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया, उस पर अब पलीता लगता दिख रहा है। क्योंकि अतिक्रमण को हटाकर सड़कों के जिन हिस्सों को चौड़ा किया गया, वहां अब तक कोई भी काम नहीं किया गया है। यहां तक कि अब भी जगह-जगह पड़ा मलबा बिखरा पड़ा है और वहां वाहन नहीं चल सकते। बारिश में ऐसी सड़कों की स्थिति और भी खतरनाक हो गई है। इससे जाम की समस्या तो बढ़ ही रही है, दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। इसके अलावा जो खंभे पहले किनारे पर दिखते थे, वहां सड़कों को अतिरिक्त जगह मिल जाने के चलते बीच सड़क पर नजर आते हैं। इस स्थिति में सड़क पर जाम की समस्या और बढ़ रही है और यहां दोबारा से भी अतिक्रमण होने लगे हैं।यह स्थिति कहीं न कहीं सिस्टम की कमजोर इच्छाशक्ति को भी दर्शाती है। क्योंकि जून 2018 में यह अभियान भी हाईकोर्ट के आदेश के बाद चलाया गया था। यानि कि राजनीतिक दबाव के चलते अपनी जिम्मेदारी भूल बैठे अधिकारियों को कोर्ट की ढाल भी प्राप्त थी। खैर, पूरे शहर में न सही, बड़े क्षेत्र में अतिक्रमण जरूर हटाए गए और सड़कों के हिस्सों को वापस (री-क्लेम) भी किया गया। हालांकि, इसके बाद फिर मशीनरी अपने ढर्रे पर आ गई। यह जानने के भी प्रयास नहीं किए गए कि सड़कों का जो भाग चौड़ा किया गया है, वह वाहनों के चलने लायक बन सका भी है या नहीं। अधिकारियों की सुस्ती का नतीजा है कि अब सड़कों के इन हिस्सों पर दोबारा से कब्जे होने लगे हैं। सीधा सा मतलब है कि लोगों की राह सुगम करने के लिए जो आदेश हाईकोर्ट ने दिए थे, उसकी मंशा अभी तक पूरी नहीं हो सकी।4617 अतिक्रमण हटाने का क्या फायदा80 दिन से अधिक चले अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान प्रशासन की टीम ने करीब 4617 अतिक्रमणों को ध्वस्त किया, जबकि इसके बाद संबंधित क्षेत्रों की सड़कों को चौड़ा नहीं किया गया। लिहाजा, यह पूरी कार्रवाई अभी तक असफल साबित दिख रही है।अभियान के दौरान यह रही कार्रवाई
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- 01----------763-----------1192-----------01
- 02----------959-----------2580-----------18
- 03---------1036-----------1515-----------66
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- कुल--------4617-----------8198-----------126
- दून की जिन सड़कों को अतिक्रमण हटाने के बाद खोला गया, उनके खुले हिस्से को अतिरिक्त चौड़ाई के हिसाब से बेहतर बनाने के लिए यूं तो लोनिवि के चार खंडों ने 20 करोड़ रुपये से अधिक के प्रस्ताव तैयार किए हैं, मगर इन पर काम कब शुरू हो पाएगा, यह कहना मुश्किल है।
- रायपुर रोड, नेशविला रोड, कालीदास रोड आदि की टेंडर प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है, जबकि आराघर से रिस्पना पुल तक के हिस्से पर आपत्ति लगाई गई है। इसके निस्तारण को दूर करने के लिए लोनिवि अधिकारी जवाब तैयार कर चुके हैं। इससे इतर शेष सड़कों पर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। लोनिवि अधिकारी यह दावा जरूर कर रहे हैं कि बरसात का सीजन थम जाने के बाद सभी सड़कों पर काम शुरू करा दिए जाएंगे। फिर भी अधिकारियों की मौजूदा कार्यप्रणाली को देखते हुए फिलहाल इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है।
- एनके जुयाल (देहरादून निवासी) का कहना है कि धरना-प्रदर्शन के लिए सरकार ने लैंसडौन चौक के पास स्थान निर्धारित किया है। इसके अलावा शहर के एक या दो अन्य हिस्सों में भी स्थान चिह्नित किए जाएं। इसका कड़ाई से पालन हो और सड़कों पर किसी भी आयोजन की अनुमति न दी जाए।मोहन लाल असवाल (देहरादून निवासी) का कहना है कि अक्सर देखा जाता है कि शोभायात्रा व छबील आदि सड़कों पर लगाए जाते हैं और उससे यातायात बाधित होने के साथ ही सड़कों पर कूड़ा भी बिखेर दिया जाता है। किसी भी संगठन को सड़क जैसी सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।