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Dengue in Uttarakhand : उत्तराखंड में ठंडक बढ़ी, पर कम नहीं हो रहे डेंगू के मामले

Dengue in Uttarakhand उत्तराखंड में मौसम में बदलाव के बाद भी डेंगू के मामलों में कमी नहीं आ रही है। प्रदेश में इस साल डेंगू के 2056 मामले आए हैं। जिनमें देहरादून में सबसे ज्यादा 1343 व्यक्तियों में डेंगू की पुष्टि हुई है।

By Sukant mamgainEdited By: Nirmala BohraUpdated: Mon, 07 Nov 2022 08:24 AM (IST)
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Dengue in Uttarakhand : प्रदेश में 15 लोग में डेंगू की पुष्टि हुई है।
जागरण संवाददाता, देहरादून : Dengue in Uttarakhand : उत्तराखंड में मौसम में बदलाव के बाद भी डेंगू के मामलों में कमी नहीं आ रही है। वातावरण में ठंडक के बावजूद मच्छर सक्रिय दिख रहा है। रविवार को भी प्रदेश में 15 लोग में डेंगू की पुष्टि हुई है। यह सभी मामले ऊधमसिंहनगर जिले में मिले हैं।

डेंगू के बढ़ते मामलों को देखकर स्वास्थ्य महकमा भी सकते में है। बता दें, प्रदेश में इस साल डेंगू के 2056 मामले आए हैं। जिनमें देहरादून में सबसे ज्यादा 1343 व्यक्तियों में डेंगू की पुष्टि हुई है। हरिद्वार में 277, पौड़ी गढ़वाल में 183, नैनीताल में 145, ऊधमसिंहनगर में 66 व टिहरी गढ़वाल में 42 मामले आए हैं।

अभी तक यह कहा जा रहा है कि ठंडक बढऩे के साथ ही डेंगू के मामलों में कमी आने लगेगी। पर ऐसा अभी तक नहीं दिख रहा है। नवंबर का पहला सप्ताह बीत चुका है, पर मच्छर अब भी चिंता का सबब बना हुआ है।

ग्यारह जिलों में कोरोना का कोई मामला नहीं

उत्तराखंड में कोरोना से अब राहत है। रविवार को प्रदेश में कोरोना के बस एक ही मामला आया है। पिथौरागढ़ में एक व्यक्ति संक्रमित मिला है। बाकी 11 जिलों में कोरोना का कोई नया मामला नहीं आया है।

वहीं, 10 लोग स्वस्थ भी हुए हैं। कोरोना संक्रमण दर 0.37 प्रतिशत रही है। हाल में प्रदेश में कोरोना के 60 सक्रिय मामले हैं। जिनमें देहरादून में सबसे ज्यादा 18, नैनीताल में 15 व हरिद्वार में दस लोग संक्रमित मिले हैं।

नवजात की मौत पर निजी अस्पताल की जांच शुरू

नवजात की मौत से जुड़े एक मामले में स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के खिलाफ जांच शुरू कर दी है। स्वजन ने इस मामले में उपचार में लापरवाही का आरोप लगाया है।

मुख्य चिकित्साधिकारी डा. मनोज उप्रेती ने इस मामले की जांच एसीएमओ डा. दिनेश चौहान को सौंपी है। डांडा लखौंड के विनीत यादव ने शिकायत कर बताया कि उनकी बहन मोनिका को 25 अक्टूबर को प्रसव पीड़ा के चलते वैश्य नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था।

आरोप है कि उनकी डिलीवरी में देरी की गई। जिसकी वजह से बच्चे की हालत बिगड़ गई। सही ढंग से आक्सीजन भी नहीं मिली। लापरवाही की वजह से बच्चे में संक्रमण बढ़ गया। उसे 11 दिन एनआइसीयू में रखा गया।

वहां भी लापरवाही बरती गई और उसकी स्थिति बारे में उनसे कई जानकारियां छुपाई गई। तीन नवंबर को उसकी मौत हो गई। मुख्य चिकित्साधिकारी डा. मनोज उप्रेती ने बताया कि शिकायत मिली है, जिसके बाद एसीएमओ डा. दिनेश चौहान को जांच के निर्देश दिए गए हैं।

इधर, अस्पताल के निदेशक डा. विपिन वैश्य ने बताया कि महिला का सामान्य प्रसव हुआ था। शिशु का समुचित विकास नहीं हो पाया था। गंभीर स्थिति में उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई है। जरूरत पडऩे पर प्लेटलेट्स, प्लाज्मा भी चढ़ाया गया। काफी प्रयासों के बाद भी बच्चे को नहीं बचा पाए।

मैसिव पल्मनरी हेमरेज के कारण उसकी मौत हो गई। घर वालों को इलाज के बारे में हर बात बताई गई। जांच में सभी तथ्य बता दिए जाएंगे। इंटरनेट मीडिया पर दुष्प्रचार किया जा रहा है, जो सही नहीं है। इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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