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उत्तराखंड के छह शहरों को धामी सरकार की सौगात, 95 करोड़ से पेयजल की किल्लत होगी दूर

Amrit Yojana 2.0 उत्तराखंड के छह शहरों में जल्द ही पेयजल की किल्लत से निजात मिलने वाली है। अमृत-2.0 के तहत इन शहरों के लिए 95 करोड़ रुपये की पेयजल योजनाओं को मंजूरी दी गई है। इस योजना का उद्देश्य नगरीय क्षेत्रों में पर्याप्त जलापूर्ति सुनिश्चित करना है। अब मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी से इस संबंध में अनुमोदन लिया जाएगा।

By kedar dutt Edited By: Riya Pandey Updated: Tue, 17 Sep 2024 09:27 PM (IST)
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अमृत-2.0 योजना से राज्य के 6 नगरों में मिलेगी पेयजल की सुविधा (प्रतीकात्मक फोटो)
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Amrit Yojana 2.0: राज्य के छह नगरों में आने वाले दिनों में पेयजल की किल्लत नहीं रहेगी। शहरी विकास सचिव नितेश कुमार झा की अध्यक्षता में मंगलवार को सचिवालय में हुई विभागीय कमेटी की बैठक में अमृत-2.0 (अटल मिशन फार रिज्युविनेशन एंड अरबन ट्रांसफार्मेशन) के अंतर्गत इन नगरों के लिए 95 करोड़ की पेयजल योजनाओं को स्वीकृति दी गई।

अब मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी से इस संबंध में अनुमोदन लिया जाएगा।  अमृत योजना-2.0 एक अक्टूबर 2021 से पांच वर्ष के लिए संचालित की जा रही है। राज्य के विभिन्न शहर भी इससे आच्छादित हैं। इसी क्रम में अन्य नगर भी इसमें लिए जा रहे हैं।

पेयजल योजनाओं के प्रस्ताव को छह को स्वीकृति

सचिवालय में हुई विभागीय कमेटी की बैठक में इस योजना के तहत आठ नगरों की पेयजल योजनाओं के प्रस्ताव रखे गए थे। इनमें से छह को स्वीकृति दी गई।  जिन नगरों की पेयजल योजनाओं के लिए स्वीकृति दी गई, उनमें स्वर्गाश्रम-जोंक (12 करोड़), डीडीहाट (10 करोड़), कपकोट (18 करोड़), कर्णप्रयाग (32 करोड़), देवप्रयाग (14 करोड़) व धारचूला (नौ करोड़) शामिल हैं। बताया गया कि दो नगरों के संबंध में बाद में निर्णय लिया जाएगा।

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बैठक में ये लोग रहे उपस्थित

बैठक में शहरी विकास विभाग के निदेशक नितिन भदौरिया, पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान, उप सचिव प्रदीप शुक्ल, अधीक्षण अभियंता रवि पांडेय समेत अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

नगरीय क्षेत्रों में पेयजल की पर्याप्त जलापूर्ति के उद्देश्य से अमृत-2.0 महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। प्रयास यह है कि जिन नगरों को इसमें शामिल किया गया है, वहां पेयजल से जुड़े कार्य मार्च 2026 से पहले पूर्ण कर लिए जाएं।

-नितेश कुमार झा, सचिव शहरी विकास।

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