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वेबसाइट में हिंदी को मान, मगर गायब है ज्ञान; पढ़िए पूरी खबर

हिंदी की इतनी बहुलता होने के बाद भी सरकारी कामकाज में इसको बढ़ावा देने की जरूरत नहीं होनी चाहिए मगर गंभीर रूप से ऐसा ही है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 14 Sep 2019 08:39 AM (IST)
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वेबसाइट में हिंदी को मान, मगर गायब है ज्ञान; पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, सुमन सेमवाल। हिंदी की दशा और दिशा पर प्रकाश डालने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि भारत जैसे देश में क्या वास्तव में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार की जरूरत है। क्योंकि जिस देश में 123 तरह की मातृ भाषाएं बोली जाती हैं, उसमें 45 फीसद लोगों की मातृ भाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी या तीसरी मातृ भाषा का दर्जा देने वाले लोगों की संख्या भी इसमें जोड़ दी जाए तो यह आंकड़ा 65 फीसद को भी पार कर जाता है। जाहिर है, हिंदी की इतनी बहुलता होने के बाद भी सरकारी कामकाज में इसको बढ़ावा देने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, मगर गंभीर रूप से ऐसा ही है। 

राज्य सरकार के संस्थानों में फिर भी हिंदी अब काफी हद तक जिंदा है, मगर केंद्र सरकार के संस्थानों में इसका प्रयोग निरंतर औपचारिकता बनता जा रहा है। कहने को ऐसे सभी संस्थानों की वेबसाइट को हिंदी के साथ द्विभाषीय का रूप दिया गया है, मगर हिंदी का विकल्प अपनाने पर यहां सूचनाओं को अपडेट ही नहीं किया जाता।

केंद्र सरकार के उपक्रमों व बैंकों के अलावा दून में 73 केंद्रीय संस्थान हैं। इनमें हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति-एक की समीक्षा बैठकों पर भी गौर करें तो उसके हिसाब से भी सरकारी संस्थानों की वेबसाइट में हिंदी अभी भी निरीह अवस्था में है। वेबसाइट पर सूचनाओं को पुख्ता रूप से हिंदी में दर्ज करना तो दूर पत्रचार में भी अब तक हिंदी को ढंग से अंगीकृत नहीं किया गया है। यह स्थिति तब है, जब संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 के बीच राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं। इसके अनुरूप वर्ष 1976 में नियम भी बना दिए गए थे। नियमों के अनुरूप सरकारी वेबसाइटों में हिंदी को मान तो पूरा दिया गया है, लेकिन इस विकल्प पर अंग्रेजी की तरह उपयुक्त जानकारी मिल ही नहीं पाती।

2014 में संसद में उठा था वेबसाइट का मामला

सरकारी वेबसाइटों में हिंदी के साथ किए जा रहे पक्षपात का मामला पहली बार वर्ष 2014 में संसद में एक सवाल के रूप में उठाया गया था। जिसके जवाब में गृह राज्य मंत्री ने स्वीकार किया था कि ऐसा हो रहा है और उन्होंने नियमों का अनुपालन न करा पाने वाले 29 मंत्रलयों की सूची भी दी थी। तब से अब तक करीब पांच साल बीत चुके हैं, मगर हिंदी की दशा में खास सुधार नहीं हो पाया।

लक्ष्य 100 फीसद का, 60 फीसद भी अनुपालन नहीं 

सरकारी कामकाज में राजभाषा हिंदी के प्रयोग के लिए क्षेत्रवार नियम बनाए गए हैं और देश को क, ख व ग की श्रेणी में बांटा गया है। राजभाषा समिति के सचिव व भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षक सर्वेक्षक मोहन राम बताते हैं कि श्रेणी क में उत्तराखंड समेत पूरे हिंदी भाषी क्षेत्र को रखा गया है। ख श्रेणी में वह राज्य हैं जहां हिंदी का अधिकतर प्रयोग किया जाता है। दोनों ही श्रेणी में सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग 100 फीसद किया जाना है। वहीं, ग श्रेणी में वह प्रदेश हैं, जहां हिंदी नहीं बोली जाती और यहां सरकारी कामकाज में 65 फीसद हिंदी के प्रयोग का लक्ष्य है। ग श्रेणी में तो हिंदी का प्रयोग सरकारी संस्थानों में ना के बराबर है, मगर पहली दो श्रेणी में भी यह आंकड़ा 65 फीसद से ऊपर नहीं बढ़ पाया है।

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सरकारी साइटों/विभागों में इस तरह हिंदी की अनदेखी

  • हिंदी वर्जन में भी अधिकतर जानकारी अंग्रेजी में।
  • साइटों का हिंदीवर्जन नियमित रूप से नहीं किया जा रहा अपडेट।
  • हिंदी वर्जन में आदेश/पत्रों की जानकारी का लिंक हिंदी में, मगर सामग्री अंग्रेजी में।
  • अंग्रेजी वर्जन की अपेक्षा हिंदी वर्जन महज 20 फीसद अपडेट।
  • तमाम संस्थान सार्वजनिक सूचना तक अंग्रेजी में कर रहे जारी।
  • पत्र व्यवहार में भी अंग्रेजी का नहीं छूट रहा मोह।
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