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धर्मनगरी बनी सियासत का अखाड़ा, स्वामी यतीश्वरानंद और मदन कौशिक के बीच छिड़ा बवाल

हरिद्वार में सूबे में सत्तासीन भाजपा के लिए यह अंदरूनी सियासत का अखाड़ा बन गई है। इससे भाजपा की अनुशासित पार्टी की छवि पर भी असर पड़ रहा है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 10 Feb 2020 01:23 PM (IST)
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धर्मनगरी बनी सियासत का अखाड़ा, स्वामी यतीश्वरानंद और मदन कौशिक के बीच छिड़ा बवाल
देहरादून, विकास धूलिया। यूं तो हरिद्वार की पहचान देश दुनिया में धर्मनगरी की है, लेकिन सूबे में सत्तासीन भाजपा के लिए यह अंदरूनी सियासत का अखाड़ा बन गई है। इससे भाजपा की अनुशासित पार्टी की छवि पर भी असर पड़ रहा है। एक-डेढ़ साल से यह सिलसिला जारी है। सियासी घमासान का अखाड़ा वही है, बस किरदार बदल जा रहे हैं। पहले खानपुर विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन और झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल का विवाद रार-तकरार की सीमा लांघते हुए कोर्ट तक पहुंचा। बीचबचाव के प्रयास हुए मगर चैंपियन को अपने बड़बोलेपन का खामियाजा पार्टी से निष्कासन के रूप में उठाना पड़ा। अब ताजा बवाल हरिद्वार ग्रामीण से विधायक स्वामी यतीश्वरानंद और हरिद्वार से विधायक व कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के बीच छिड़ा है। विधायक इतने आगे बढ़ गए कि मंत्री पर करोड़ों की संपत्ति खुदबुर्द करने का आरोप लगा सीबीआइ जांच की मांग उठा दी है। देखते रहिए, आगे-आगे होता है क्या।

जनाब, काम करते दिखिए भी

मंत्रिमंडल में तीन सीट खाली हैं, लेकिन सलाहकार इसकी कमी महसूस ही नहीं होने दे रहे। वे पूरी शिददत और मुस्तैदी से मोर्चे पर डटे हैं। सरकार में कई विषय विशेषज्ञ मुख्यमंत्री के सलाहकार की भूमिका में हैं। इनमें से दो की तो हाल ही में नियुक्ति हुई है। काबिलेगौर यह कि सलाहकार पूरी गंभीरता से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। विभागीय बैठकों से लेकर जिलों तक के दौरे कर मशीनरी को कसने में तल्लीन हैं। रोजाना जारी हो रहे प्रेस नोट इसकी तस्दीक करते हैं। यह बात दीगर है कि इनके मुकाबले कुछ मंत्रियों की सक्रियता, बैठकें कम दिख रही हैं। अब यह पता नहीं कि इसके पीछे कारण क्या हैं। मंत्री सुस्ता रहे हैं या फिर काम करने के बावजूद काम करते दिख नहीं रहे। इसीलिए सत्ता के गलियारों में चटखारे लिए जा रहे हैं कि ऐसे में भला नए मंत्री बनाने की जरूरत क्या है।

बोल पहाड़ी, फिर हल्ला बोल

यह स्लोगन उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान अकसर सुनाई देता था। अब इसकी गूंज महसूस हुई सोशल मीडिया में दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर। दरअसल, दिल्ली में उत्तराखंड मूल के 20 लाख से ज्यादा बाशिंदे हैं, लिहाजा इनकी भूमिका एक बड़े वोट बैंक की समझी जाती है। इसीलिए भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेता पिछले दो-तीन हफ्ते दिल्ली में ही डटे रहे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, मंत्रियों और विधायकों ने भाजपा के चुनाव अभियान में अहम भूमिका निभाई। कांग्रेस के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह दिल्ली के रण में लोहा लेते दिखे। इन्हें जिम्मा दिया गया दिल्ली में बसे उत्तराखंडियों को पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकृत करने का। दोनों पार्टियों के पक्ष में सोशल मीडिया भी पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा रहा। अब चुनाव निबट गया तो सबकी नजरें इस ओर जा टिकी हैं कि बोल पहाड़ी फिर हल्ला बोल का स्लोगन किसे रास आएगा।चलो, फिर सियासत करते हैं

सरकार विधानसभा का आगामी बजट सत्र गैरसैंण में कराने की तैयारी में है। वही गैरसैंण, जिसके नाम पर पिछले 20 सालों में सियासत के सिवाए कुछ नहीं हुआ। हालांकि, वहां विधानभवन के साथ ही मंत्री, विधायकों, अफसरों के आवास तैयार हो चुके हैं। अब सचिवालय भवन के लिए कवायद चल रही है। बावजूद इसके किसी भी सियासी पार्टी ने गैरसैंण को लेकर अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया है।

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सभी गैरसैंण को लेकर सियासी रोटियां सेकते आए हैं। सालभर में तुष्टिकरण के लिए विधानसभा का एक सत्र गैरसैंण में जरूर हो रहा था, लेकिन पिछले वर्ष तो यह भी नहीं हुआ। तब सियासी गलियारों में यह मसला चर्चा का विषय रहा। अब कोई किंतु-परंतु न हो, इसे देखते हुए सरकार बजट सत्र गैरसैंण में कराने की तैयारी कर रही है तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है। इस बहाने ही सही, साल में एक बार सरकार और मशीनरी गैरसैंण तो पहुंचेगी।

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