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भारत जैसी विविधता दुनिया में कहीं नहीं: रामचंद्र गुहा

दून स्कूल के समापन समारोह का शुभारंभ रामचंद्र गुहा ने स्कूल की इयर बुक का लोकार्पण करते हुए किया। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि भारत जैसी विविधता दुनिया में कहीं नहीं है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 15 Oct 2017 08:35 PM (IST)
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भारत जैसी विविधता दुनिया में कहीं नहीं: रामचंद्र गुहा

देहरादून, [जेएनएन]: दून स्कूल के 82वें स्थापना दिवस का समापन समारोह यहां के पूर्व छात्र (डॉस्को), इतिहासकार, क्रिकेटर व प्रकृति प्रेमी रामचंद्र गुहा के संबोधन पर केंद्रित रहा। उन्होंने अपने संबोधन में भारत को दुनिया का हर तरह की विविधता वाला एकमात्र देश बताया। साथ ही कहा कि भारत को पूरी तरह आत्मसात करने के लिए 10 जन्म लेने पड़ेंगे।

शनिवार शाम को दून स्कूल के समापन समारोह का शुभारंभ रामचंद्र गुहा ने स्कूल की इयर बुक का लोकार्पण करते हुए किया। इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वह विश्व के तमाम देशों का भ्रमण कर चुके हैं, लेकिन यहां जैसी धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक विविधता कहीं नहीं है। यहां के हर राज्य एक-दूसरे से भिन्न हैं और एक दूसरे राज्य के लोगों को सीखने के लिए प्रेरित करते हैं।

हमारे देश की एक सबसे बड़ी खासियत यहां का मजबूत लोकतंत्र भी है। प्रभावों की बात करें तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसमें भारत के लोगों ने परचम न फहराया हो। वहीं, हीरो मोटोकॉर्प के संयुक्त प्रबंध निदेशक व दून स्कूल के पूर्व छात्र सुनील कांत मुंजाल ने कहा कि दून स्कूल सिर्फ एक स्कूल नहीं, बल्कि संपूर्ण व्यक्तित्व विकास संस्थान भी है। 

यहां का छात्र होने पर उन्हें गर्व है। समापन कार्यक्रम में स्कूल के हेड मास्टर मैथ्यू रैग्गेट ने उपस्थित अतिथियों और अभिभावकों के समक्ष स्कूल की प्रगति रिपोर्ट रखी। जबकि अंत में स्कूल कैप्टन दिविज मलिक ने दून स्कूल को परिवार बताते हुए शिक्षकों को अभिभावकों की भूमिका में बताया।

इससे पहले स्कूल परिसर में पागल जिमखाना कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों ने विभिन्न गतिविधियों के स्टॉल लगाए। साथ ही मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए गए। वहीं, स्कूल के ऑर्केस्ट्रा ने संस्थान का गीत 'लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना...' प्रस्तुत किया।

 नेहरू का जुआ भारत को विश्व फलक पर लाया

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने संबोधन में कहा कि आजकल भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की बुराई देखने-सुनने को मिल रही है। आजादी के तुरंत बाद के परिदृश्य पर नजर दौड़ाई जाए तो देश की 60 फीसद से अधिक आबादी निरक्षर थी। उस समय देश को आगे बढ़ाने के लिए पं. नेहरू  ने एक जुए की तरह तमाम निर्णय लिए। हालांकि, उसी का नतीजा है कि भारत को विश्व के फलक पर तेजी से पहचान मिलनी शुरू हुई। 

बोर्ड ऑफ गवर्नेंस के चेयरमैन बने मुंजाल

हीरो मोटोकॉर्प के संयुक्त प्रबंध निदेशक सुनील कांत मुंजाल को दून स्कूल के बोर्ड ऑफ गवर्नेंस का चेयरमैन बनाया गया है। उन्होंने गौतम थापर की जगह ली। सुनील कांत स्कूल के वर्ष 1973 बैच के छात्र भी हैं।

 प्रियंका ने लिया तमाम कार्यक्रमों में हिस्सा

प्रियंका वाड्रा दून स्कूल के स्थापना दिवस के तीसरे दिन भी स्कूल परिसर में मौजूद रहीं और यहां के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। समापन समारोह में वह बेटे रेहान के साथ रहीं और उन्होंने मुख्य अतिथि रामचंद्र गुहा का संबोधन भी सुना।

जिंदगी हो या क्रिकेट सीधे बैट से खेलो

दून स्कूल के छात्रों को संबोधित करते हुए रामचंद्र अपनी अतीत की यादों में खो गए। वर्ष 1958 में देहरादून में जन्में गुहा ने कहा कि अपने जीवन का सबसे बड़ा सबक उन्होंने यहीं सीखा। यह सबक उन्होंने स्कूल से पास आउट होने के दौरान वर्ष 1973 में एक क्रिकेट मैच में हाल ही में दुनिया को छोड़ गए फिल्म अभिनेता टॉम ऑल्टर से सीखा। मैच के दौरान उन्होंने कहा था कि क्रिकेट हो या जिंदगी हमेशा सीधे बैट से खेलना चाहिए। उन्होंने उपस्थित छात्रों से व उनके अभिभावकों से भी जिंदगी में इसी फलसफे को अपनाने की बात कही।

दून स्कूल के स्थापना दिवस के समापन समारोह को संबोधित करते हुए इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने दून की उन यादों को साझा करते हुए कहा कि स्कूल परिसर के प्रकृति की तमाम छटाओं से भरा चांदबाग उनकी नजर में देश का दूसरे नंबर का सबसे खूबसूरत स्थल है। जबकि वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) को उन्होंने देश का सबसे खूबसूरत स्थल बताया। 

उन्होंने आगे बताया कि उनके दादा व पिता एफआरआइ में वैज्ञानिक थे। अक्टूबर माह से जिस तरह से यहां की शाम कुछ जल्दी स्याह चादर ओढऩा शुरू कर देती है, उसका दृश्य एफआरआइ परिसर में सबसे सुखद अनुभूति देता है। देश व दुनिया में उन्हें यदि इतिहासकार व क्रिकेटर के बाद पक्षी प्रेमी के नाम से जाना जाता है तो वह इसी एफआरआइ की देन है। वह यहां अपने पिता के मित्र गुरदयाल के साथ बर्ड वाचिंग किया करते थे।

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