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कुदरत के इंसाफ को चुनौती दे पैरों से लिखी तकदीर, इनके हौसले की आप भी करेंगे तारीफ

ऋषिकेश की श्यामपुर न्याय पंचायत के ग्राम गौहरीमाफी निवासी दिव्यांग पुष्पा रावत दोनों हाथों से लाचार होने के बावजूद अपने पैरों से अपनी तकदीर लिख डाली।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 24 Feb 2019 08:14 PM (IST)
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कुदरत के इंसाफ को चुनौती दे पैरों से लिखी तकदीर, इनके हौसले की आप भी करेंगे तारीफ
ऋषिकेश, हरीश तिवारी। 'खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।' ऋषिकेश की श्यामपुर न्याय पंचायत के ग्राम गौहरीमाफी निवासी दिव्यांग पुष्पा रावत की कहानी कुछ ऐसी ही है। दोनों हाथों से लाचार होने के बावजूद पुष्पा ने अपने पैरों से अपनी तकदीर लिख डाली और आज वह नारी सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही हैं। 

पुष्पा का जन्म टिहरी जिले की खास पट्टी के ग्राम जरोला निवासी स्व. गुंदर ङ्क्षसह रावत के परिवार में हुआ। प्रसव वेदना के बाद जब पुष्पा की मां को पता चला कि उसके दोनों हाथ नहीं हैं तो बेटी की उम्र के साथ उनकी वेदना भी बढ़ती चली गई। बेटी अन्य बच्चों के साथ स्कूल जाने की जिद करती, लेकिन स्कूल दूर होने और परेशानियों के कारण उसे स्कूल भेज पाना संभव नहीं हो पाया। तब स्थानीय संत बाबा गैंडा ङ्क्षसह ने नन्हीं दिव्यांग पुष्पा को पैर का अंगूठा पकड़कर वर्णमाला लिखाने का अभ्यास कराया।

धीरे-धीरे पुष्पा पैर से लिखने में पारंगत हो गई। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनका परिवार श्यामपुर न्याय पंचायत के गौहरीमाफी गांव में आ बसा। यहीं से शुरू होती है पुष्पा के संघर्षों की कहानी। छठी कक्षा में प्रवेश लेने जूनियर हाईस्कूल श्यामपुर गई तो प्रधानाध्यापक ने इन्कार कर दिया। लेकिन, पैरों से लिखकर दिखाने पर हिंदी के शिक्षक डॉ. जगदीश नौडिय़ाल (जग्गू) को बालिका में पढ़ाई का जुनून नजर आया और उन्होंने पुष्पा को प्रवेश दिला दिया। 

आठवीं पास करने के बाद जब पुष्पा रायवाला इंटर कॉलेज गई तो तब डॉ. जगदीश नौड़ियाल भी पदोन्नत होकर वहां आ चुके थे। उन्होंने फिर पुष्पा की शिक्षा का भार उठा लिया। वर्ष 1992 में पत्रकार विनोद जुगलान विप्र के प्रयासों से पुष्पा के संघर्ष की कहानी जब गृहशोभा में छपी तो दिल्ली दूरदर्शन के तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर विनोद रावत ने इसका संज्ञान लिया। उन्होंने अपनी टीम पुष्पा के घर भेजकर एक वृत्तचित्र 'फेस इन द क्राउड' तैयार कराया और उसका प्रसारण पूरे देश में किया। अब पुष्पा की मदद को हाथ उठने लगे। 

वर्ष 2001 में पुष्पा ने पंडित ललित मोहन शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ऋषिकेश से इतिहास विषय मे एमए की उपाधि ली। उनके संघर्ष को वर्ष 2003 में तब पंख लग गए, जब उन्हेंऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) देहरादून के राजभाषा विभाग में सेवा का मौका मिला। वर्तमान में वह राजभाषा विभाग में प्रथम श्रेणी सहायक के रूप में नियुक्त हैं और अपने सभी दैनिक कार्य पैरों से बखूबी पूरा करती हैं। पुष्पा अपने परिवार में तीन बहन-भाइयों में सबसे बड़ी हैं।

पुष्पा के कर कमलों से हुआ था ज्योति स्कूल का शिलान्यास

दिव्यांग पुष्पा रावत का वृत्तचित्र देखकर श्री भरत मंदिर स्कूल सोसायटी के सचिव हर्षवर्धन शर्मा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सोसायटी की ओर से पुष्पा की शिक्षा-दीक्षा का पूरा जिम्मा उठाया। इसके साथ ही दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष विद्यालय खोलने का निर्णय भी लिया गया। वर्ष 1993 में बैशाखी के दिन सोसायटी की ओर से ज्योति विशेष विद्यालय की नींव रखी गई थी। जिसे पुष्पा ने अपने कर कमलों से रखा।

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