Diwali 2022: उत्तराखंड में कहीं मुख्य दिवाली के 11 दिन तो कहीं एक माह बाद मनाते हैं दीपावली, पीछे रोचक कहानी
Diwali 2022 पूरे देश में 24 अक्टूबर को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा। लेकिन उत्तराखंड राज्य के कई इलाके ऐसे भी हैं जहां कहीं 11 दिन बाद तो कहीं एक माह बाद दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।
By Nirmala BohraEdited By: Updated: Sun, 23 Oct 2022 02:42 PM (IST)
टीम जागरण, देहरादून : Diwali 2022 : उत्तराखंड में भी पूरे देश के साथ 24 अक्टूबर को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा। लेकिन यहां के कई क्षेत्रों में अनोखे तरीकों से दीपावली मनाई जाती है। गढ़वाल से कुमाऊं तक दीपावली मनाने का कुछ अलग ही अंदाज है। उत्तराखंड के कई इलाके ऐसे हैं, जहां कहीं 11 दिन बाद तो कहीं एक माह बाद दीपावली मनाई जाती है।
देहरादून के जौनसार बावर की बूढ़ी दीपावली खास
जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र है। जहां कई गांवों में दीपावली मनाने के ठीक एक महीने बाद पहाड़ी बूढ़ी दीपावली मनाई जाएगी। यहां प्रदूषण मुक्त परंपरागत तरीके से दिवाली मनाई जाता है।
बूढ़ी दीवाली में भीमल की लकड़ी से मशाल बनाई जाती है। जिसे जलाकर नृत्य किया जाता है। यह दीपावली मनाने का रिवाज पौराणिक काल से है। यहां पर पटाखे, आतिशबाजी का चलन नहीं है। रात को सारे पुरुष होला को जलाकर ढोल-दमाऊ रणसिंगे की थाप पर पंचायती आंगन में लोक नृत्य कर खुशियां मनाते हैं।
टिहरी जिले में मनाई जाती हैं तीन दीपावली
टिहरी में कार्तिक की दीपावली के ठीक एक महीने बाद जिले में कई जगहों पर मंगशीर की दीपावली मनाई जाती है। वहीं कई जगहों पर कार्तिक दीपावली के 11 दिन बाद इगाश दीपावली मनाई जाती है।
मंगशीर की दीपावली में स्थानीय फसलों के व्यंजन बनाए जाते है। गांव से बाहर रहने वाले लोग भी इस दीपावली को मनाने गांव पहुंचते हैं। ग्रामीण खुशी जताते हुए लकड़ी जलाकर रोशनी करते हैं। इस दिनस्थानीय फसलों के पकवान तैयार किए जाते हैं।
तिब्बत विजय के उत्सव में एक माह बाद होती है दीपावली
उत्तरकाशी में कार्तिक अमावस्या से ठीक एक माह बाद दीपावली यानी मंगशीर की बग्वाल का उत्सव होता है। मंगशीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है।
1627-28 के बीच जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं के अंदर आके लूटपाट करते थे तो राजा नरेश महिपत शाह ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी थी। जब ये वापस लौटे तो उत्सव पूर्वक दीपावली मनायी गई।
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