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Diwali 2022 : यहां तिब्बत विजय का उत्सव है दिवाली, सूखी लकड़ी के छोटे गठ्ठर जलाकर लोग मचाते हैं धूम

Diwali 2022 उत्‍तराखंड के इलाकों में दिवाली मनाने की अलग और अनोखी पंरपराएं हैं। इसी क्रम में प्रदेश के उत्‍तरकाशी जिले में एक माह बाद दिवाली मनाई जाती है। इस बार यह उत्सव 24 व 25 नवंबर को मनाया जाएगा।

By Nirmala BohraEdited By: Updated: Sun, 23 Oct 2022 01:45 PM (IST)
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Diwali 2022 : पटाखे नहीं सूखी लकड़ी के छोटे गठ्ठर जलाकर लोग मचाते हैं धूम। फाइल फोटो
टीम जागरण, देहरादून : Diwali 2022 : आगामी 24 अक्‍टूबर को पूरे देश में धूमधाम से दिवाली का उत्‍सव मनाया जाएगा, लेकिन उत्‍तराखंड के उत्‍तरकाशी जिले में एक माह बाद दिवाली मनाई जाएगी। इसके पीछे एक रोचक कहानी है जो अब परंपरा बन चुकी है।

जी, हां सीमांत जनपद उत्तरकाशी में कार्तिक अमावस्या से ठीक एक माह बाद दीपावली यानी मंगशीर की बग्वाल का उत्सव मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस अनोखी परंपरा के बारे में:

तिब्बत विजय के एक माह बाद होती है दीपावली

  • हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को पूरे देश में दीपावली का पर्व मनाया जाता है। लेकिन उत्‍तराखंड के इलाकों में दिवाली मनाने की अलग और अनोखी पंरपराएं हैं।
  • इसी तरह उत्‍तरकाशी जिले में दीपावली के एक माह बाद दिवाली यानी मंगशीर की बग्वाल का उत्सव मनाया जाता है।
  • इतिहास के जानकार बताते हैं कि मंगशीर की बग्वाल गढ़वाली सेना की तिब्बत विजय का उत्सव है। इस बार यह उत्सव 24 व 25 नवंबर को मनाया जाएगा।
  • वर्ष 1627-28 के बीच गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल के दौरान जब तिब्बती लुटेरे गढ़वाल की सीमाओं पर लूटपाट करते थे।
  • इस लूटपाट को रोकने के लिए राजा ने माधो सिंह भंडारी व लोदी रिखोला के नेतृत्व में चमोली के पैनखंडा और उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र से सेना भेजी।
  • इ‍तना ही नहीं लुटेरों का दमन करते हुए सेना तिब्बत तक पहुंच गई थी।
  • तब युद्ध के कारण कार्तिक मास की दीपावली के लिए माधो सिंह भंडारी घर नहीं पहुंच पाए थे।
  • उस दौरान उन्होंने गांव में संदेश पहुंचाया कि जब वह जीतकर लौटेंगे तब ही दीपावली मनायी जाएगी।
  • एक माह पश्चात माधोसिंह अपने गांव मलेथा पहुंचे। तब उत्सव पूर्वक दीपावली मनायी गई। तब से इस बग्वाल को मनाने की परंपरा गढ़वाल में प्रचलित है।
  • मंगशीर की बग्वाल में पटाखे नहीं जलाए जाते हैं। इसमें स्थानीय लोग अपनी संस्कृतिक गणवेष में सजे रहते हैं और रात भर भैलो नृत्य के साथ रासों तांदी नृत्य चलता है।
  • कंडार देवता मंदिर से रासौ तांदी नृत्य करते हुए सुंदर झांकियां निकाली जाती हैं। देर शाम को खुले मैदान में देवदार तथा चीड़ की लकड़ी से बनाए भैलो को जलाकर मंगशीर की बग्वाल खेली जाती है।
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क्या होता है भैलो

तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। बग्वाल के दिन भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है। कई ग्रामीण भैलो से करतब भी दिखाते हैं।

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