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डेंगू के खिलाफ चिकित्सकों ने सोशल मीडिया पर खोला मोर्चा Dehradun News

डेंगू की रोकथाम और लोगों को जागरूक करने के लिए चिकित्सक अब सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। आइएमए के साथ ही सरकारी चिकित्सक भी इस मुहीम में जुड़े हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 12 Sep 2019 01:26 PM (IST)
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डेंगू के खिलाफ चिकित्सकों ने सोशल मीडिया पर खोला मोर्चा Dehradun News
देहरादून, जेएनएन। डेंगू की रोकथाम और लोगों को जागरूक करने के लिए चिकित्सक अब सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। आइएमए जहां लोगों को मच्छरों नहीं पनपने देने के टिप्स दे रहा है, वहीं सरकारी चिकित्सक इस बीमारी से जुड़े भय व भ्रम को दूर कर रहे हैं। 

सोशल मीडिया का जुनून लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। आज तकरीबन हर व्यक्ति इससे जुड़ा है। क्या घर, क्या बाहर व्यक्ति मोबाइल में मशगूल दिखता है। ऐसे में चिकित्सा समुदाय ने अब सोशल मीडिया को ही जरिया बनाया है।

कोरोनेशन अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एनएस बिष्ट ने डेंगू के लक्षण, बचाव व रोकथाम को लेकर दो वीडियो तैयार किए हैं। इसमें उन्होंने इससे जुड़ी भ्रांतियों को भी दूर किया है। इन वीडियो को उनके द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किया गया है। 

इसके अलावा आइएमए दून शाखा ने भी डेंगू से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां इस प्लेटफॉर्म पर शेयर की हैं। डेंगू मुक्त दिल्ली अभियान की तर्ज पर ही लोगों को डेंगू को हराने का मंत्र दिया है। आइएमए के अध्यक्ष डॉ. संजय गोयल ने कहा कि आपके व्यस्ततम समय में से सिर्फ 10 मिनट आपके परिवार को डेंगू से बचा सकते हैं। अपने घरों और आसपास की जांच करें। जमा पानी के सभी संभावित स्रोत की जांच के लिए समय-समय पर निरीक्षण कर दें। यदि कहीं भी मच्छर का लार्वा दिखता है तो उसे नष्ट कर दें। उनका कहना है कि जन सहभागिता से ही डेंगू पर काबू पाया जा सकता है। 

इस बात का रखें ख्याल 

- डेंगू का इलाज डॉक्टर को दिखाकर सामान्य तरीके से भी हो सकता है। इसके लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। 

-अक्सर बुखार में लोग रोगी को एस्प्रिन दे देते हैं, लेकिन डेंगू के रोगी को एस्प्रिन नहीं देनी चाहिए। क्योंकि यह रोगी के रक्त के बहाव को तेज कर सकती है। डॉक्टर बुखार और दर्द से निजात के लिए पैरासिटामॉल के प्रयोग का सुझाव देते हैं। 

-प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की जरूरत तब होती है, जब प्लेटलेट्स की संख्या दस हजार से कम होती है। ज्यादातर मामलों में प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की जरूरत नहीं होती। 

-मशीन की रीडिंग असली प्लेटलेट्स की संख्या से कम हो सकती है। प्लेटलेट्स की संख्या का यह अंतर 30000 से ज्यादा तक का हो सकता है।

प्रदेशभर में 53 और मरीजों में डेगू की पुष्टि

डेंगू का कहर थम नहीं रहा है। पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में रोजाना डेंगू के नए मामले सामने आ रहे हैं। ताजा मामले में प्रदेश में 53 और मरीजों में डेगू की पुष्टि हुई है। इनमें 22 मरीज देहरादून से हैं। नैनीताल में 28, अल्मोड़ा में दो और टिहरी में एक मरीज में डेंगू की पुष्टि हुई है। इस तरह राज्य में डेगू पीड़ितों की संख्या अब बढ़कर 1343 हो गई है। 

इनमें भी सबसे अधिक 844 (बाहर के 31 मरीजों सहित) मरीज सिर्फ देहरादून से हैं। नैनीताल में डेगू पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़कर 451, हरिद्वार में 39, ऊधमसिंह नगर में 26, टिहरी में 14, अल्मोड़ा में दो और पौड़ी में एक में डेंगू की पुष्टि हुई है। 

इधर, डेंगू की बीमारी फैलाने वाले एडीज मच्छर की सक्रियता के आगे सिस्टम की सभी तैयारियां ध्वस्त हो रही हैं। यही वजह कि डेंगू का डंक कमजोर होने के बजाय लगातार गहराता ही जा रहा है। शुरुआती चरण में मैदान के कुछ क्षेत्रों में ही अपना असर दिखाने वाला मच्छर पर पहाड़ में भी तेजी से पैर पसार रहा है। इतना ही नहीं मौसम के बदलते रुख के साथ डेंगू मच्छर का स्ट्रेन भी घातक हो रहा है। 

बावजूद इसके जिम्मेदार महकमों के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि डेंगू की रोकथाम व बचाव के लिए पुख्ता तैयारियां की गई हैं। मच्छर से दो-दो हाथ करने के लिए स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम व अन्य विभागों की ज्वाइंट टीमें भी मैदान में हैं। देहरादून जनपद में भी प्रभावित इलाकों में व्यापक स्तर पर डेंगू नियंत्रण अभियान चलाया जा रहा है। 

जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि पिछले दिनों की तरह अलग-अलग क्षेत्रों में टीम ने दौरा किया है। इस दौरान 3623 घरों का सर्वे किया गया जिनमें से 14 घरों में लार्वा मिला है। इस लार्वा को मौके पर ही नष्ट किया गया। लोगों को बीमारी की रोकथाम व बचाव के बारे में भी जानकारी दी गई। बुखार से पीड़ित लोगों को दवा भी वितरित की गई। वहीं गंभीर रूप से बीमार हुए मरीजों को डाक्टर से परामर्श लेने को कहा गया है।

दून की इमरजेंसी में भी मरीज देखेंगे फिजिशियन

डेंगू के बढ़ते मामलों को देखते हुए दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय की इमरजेंसी में एक नया प्रयोग किया गया है। अस्पताल प्रशासन ने यहां एक फिजिशियन दोपहर दो बजे से रात दस बजे तक तैनात कर दिया है। जिससे मरीजों को प्रारंभिक तौर पर इमरजेंसी में ही उपचार मिल जाए और भर्ती केवल गंभीर मरीजों को ही किया जाए। अधिकारियों के अनुसार आगे भी जिस बीमारी के ज्यादा मरीज आएंगे, उस विभाग के विशेषज्ञ इमरजेंसी में ओपीडी करेंगे।

दरअसल, डेंगू के चलते दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अत्याधिक दबाव है। अधिकांश वार्ड भरे हुए हैं। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बताया कि कई मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती है। इमरजेंसी वार्ड में तैनात ईएमओ के पास उपचार के सीमित विकल्प हैं। 

लिहाजा वो ज्यादातर को भर्ती कर देते हैं। इसलिए तय किया गया है कि इमरजेंसी वार्ड में ही एमडी मेडिसिन  दोपहर दो बजे से रात दस बजे तक ड्यूटी देंगे। इससे होगा ये कि कई मरीजों को शुरुआत में परामर्श मिल जाएगा और उन्हें दवा लिखकर वहीं से छुट्टी दे दी जाएगी। 

दून मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी महेंद्र सिंह भंडारी ने बताया कि प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना के निर्देशानुसार ये व्यवस्था शुरू कर दी गई है। फिलहाल डेंगू से संबंधित उपचार मिलेगा। उसके बाद जो मरीज इमरजेंसी में ज्यादा होंगे, उसी से संबंधित डॉक्टर इमरजेंसी में ड्यूटी देंगे।

डेंगू जांच किट दे सकती है दगा

अगर आप को बुखार है और लक्षण डेंगू के हैं तो रैपिड जांच की जगह आप किसी सरकारी अस्पताल या फिर किसी अच्छे पैथॉलोजी से एलाइजा जांच कराएं। रैपिड जांच में डेंगू पॉजिटिव आने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति को वास्तव में डेंगू ही हो। कई बार डेंगू न होने पर भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। इसलिए रैपिड जांच पर भरोसा कर डेंगू से डरें नहीं। 

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता का कहना है कि रैपिड डायग्नोस्टिक किट टेस्ट की सेंसिटिविटी काफी लो है। जिसके कारण कई बार बीमारी न होने पर भी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों के मुताबिक रैपिड जांच में पुष्टि होने पर मरीज को सिर्फ संभावित की श्रेणी में रखा जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि मरीजों को डेंगू है। 

स्वास्थ्य विभाग सिर्फ एलाइजा जांच में पुष्ट मामलों को ही रिपोर्ट करता है। अगर मरीज की एलाइजा टेस्ट में पॉजिटिव आएगा, तभी वह डेंगू मरीज मना जाता है। जबकि कई निजी लैब रैपिड जांच के आधार पर मरीजों में भ्रम फैला रहे हैं। 

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पूर्व में किया गया था बैन

वर्ष 2015 में दिल्ली सरकार ने रैपिड टेस्ट को बैन कर दिया था। कई बार सामान्य बुखार में भी यह डेंगू पॉजिटिव दिखाता है। जिससे भय फैलता है। कई बार मलेरिया, लेप्टोस्पाइरोसिस, मीजल्स, इंफ्लूएंजा, जापानीज इंसेफ्लाइटिस, यलो फीवर आदि में भी डेंगू पॉजिटिव बताता है।

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पांचवें दिन पहचान में आती है डेंगू की एंटीबॉडी

कोरोनेशन अस्पताल के सीएमएस डॉ. बीसी रमोला के अनुसार एलाइजा टेस्ट से डेंगू 5 से 6 दिन में ही पॉजिटिव आता है। अगर एलाइजा टेस्ट बुखार के दूसरे या तीसरे दिन किया जाता है तो यह रिपोर्ट निगेटिव आएगी। क्योंकि डेंगू की एंटीबॉडी पांचवें दिन बाद ही पहचान में आ पाती हैं। प्रारंभिक चरण में रैपिड टेस्ट कराया सकता है, पर पुष्टि एलाइजा से ही मानी जाती है।

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