Move to Jagran APP

विश्व पर्यावरण दिवस: जहरीली हवा में घुट रहा दूनघाटी का दम

शहरीकरण की अंधी दौड़ में हमारा शहर दून भी वायु प्रदूषण के मामले देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों जमात में शामिल हो गया और अब भी हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 06 Jun 2019 08:08 AM (IST)
Hero Image
विश्व पर्यावरण दिवस: जहरीली हवा में घुट रहा दूनघाटी का दम
देहरादून, जेएनएन। जहरीली हवा के धुंध में घिरा क्या यह वही दून है, जो कभी रिटायर्ड लोगों का शहर माना जाता था। यकीन नहीं होता कि यहां की जिस स्वच्छ आबोहवा में लोग रिटायरमेंट के बाद जिंदगी की दूसरी पारी को नई गति देते थे, वहां की सांसें आज उखड़ने लगी हैं। जो शहर कभी स्वच्छ आबोहवा के लिए जाना जाता था, उसकी गिनती आज देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में होने लगी है।

शहरीकरण की अंधी दौड़ में हमारा शहर दून भी वायु प्रदूषण के मामले देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों जमात में शामिल हो गया और अब भी हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों को हम हमेशा नजरंदाज करते रहे। तब भी हमारे कानों में जूं तक नहीं रेंगी, जब दो साल पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वह रिपोर्ट संसद में रखी गई। 

इसमें दून में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर)-10 की मात्रा मानक से चार गुना 241 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (वार्षिक औसत) पाई गई है, जबकि यह 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।

हमारे वैज्ञानिक बार-बार कह चुके हैं कि दूनघाटी का आकार कटोरेनुमा है और यहां फैलने वाला वायु प्रदूषण आसानी से बाहर निकलने की जगह हमारे फेफड़ों को संक्रमित करता रहता है। सरकार व शासन के स्तर पर भी इतने अहम मसले पर कोई कार्रवाई न करने की प्रवृत्ति के चलते पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका भी आंकड़े एकत्रित करने तक सीमित रह गई है। 

दून के जिस संभागीय परिवहन कार्यालय में हर साल करीब 54 हजार नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, वह भी यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा कि शहर में कितने वाहन मानक से अधिक धुआं छोड़ रहे हैं। 

घटती हरियाली, बढ़ता प्रदूषण

दून में हरियाली का ग्राफ 65 फीसद से अधिक घट गया है। दून शहर कभी आम-लीची के बागों और बासमती की खेती के लिए जाना जाता था, जबकि आज इनकी जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। पेड़-पौड़े वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड को सोख लेते हैं, लेकिन तेजी से घटती हरियाली में यह क्षमता घटी और प्रदूषण तेजी से बढ़ता चला गया।

उचित कूड़ा निस्तारण का अभाव भी खतरा

स्वच्छ सर्वेक्षण-2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चल जाता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए कूड़ा निस्तारण की दिशा में क्या प्रयास किए जा रहे हैं। इस दफा 425 शहरों में दून को 384वां स्थान मिला, जबकि पिछली दफा यह स्थान 259वां था। हम आगे बढऩे की जगह निरंतर पीछे जा रहे हैं। दूसरी तरफ रिस्पना-बिंदाल नदियों के प्रदूषण की बात करें तो इसके पानी मानक से 76 गुना प्रदूषित हो चुका है। 

पॉलीथिन मुक्त उत्तराखंड की घोषणा हवा

पिछले पर्यावरण दिवस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घोषणा की थी कि 31 जुलाई 2018 से उत्तराखंड को पॉलीथिन मुक्त कर दिया जाएगा। अब इस घोषणा को एक साल पूरे होने जा रहे हैं, मगर यह घोषणा धरातल पर नहीं उतर पाई। प्रभावी अंकुश के अभाव में आज भी धड़ल्ले से पॉलीथिन का प्रचलन जारी है। सिर्फ कागजों का पेट भरने को यदा-कदा अभियान चलाकर पॉलीथिन जब्त की जाती है। 

संरक्षित और सिविल वन क्षेत्र का दायरा 49 वर्ग-किमी घटा

भारतीय वन सर्वेक्षण की वर्ष 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 70 फीसद से अधिक वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में विकास बनाम विनाश के बीच जमकर जंग चल रही है। यही कारण भी है कि संरक्षित व सिविल वन क्षेत्र का दायरा 49 वर्ग किलोमीटर घट गया है। हालांकि, राहत की बात इतनी जरूर है कि गैर वन क्षेत्र के वनीकरण 23 वर्ग किलोमीटर का इजाफा दर्ज किया गया।

यह भी पढ़ें: World Environment Day: उत्तराखंड में राइन जैसी शाइन होगी गंगा, मिल रहे सकारात्मक नतीजे

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में प्रदूषण से नुकसान को निपटने को 80 करोड़, नहीं कर सके खर्च

यह भी पढ़ें: पर्यावरणीय सेवाओं के लिए उत्तराखंड मांग रहा ग्रीन बोनस, पढ़िए पूरी खबर

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।