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पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती यह ब्रिटिशकालीन इमारत, जानिए इसके बारे में

देहरादून में स्थित है वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की मुख्य इमारत। ग्रीक-रोमन और औपनिवेशिक शैली में बनी महल जैसी यह इमारत शहर के हृदय स्थल घंटाघर से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 01 Dec 2018 08:55 PM (IST)
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पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती यह ब्रिटिशकालीन इमारत, जानिए इसके बारे में
देहरादून, [दिनेश कुकरेती]: देहरादून शहर अपनी विशिष्ट शैली की इमारतों के लिए भी देश-दुनिया में पहचान रखता है। खासकर यहां स्थित वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की ग्रीक-रोमन शैली में बनी ब्रिटिशकालीन इमारत बरबस ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। राष्ट्रीय धरोहर घोषित की जा चुकी एफआरआइ की महलनुमा इस भव्य इमारत को तैयार करने में छह साल लगे थे। वन क्षेत्र में अपने शोध कार्यों के लिए प्रसिद्ध इस संस्थान को एशिया में अपनी तरह के एक मात्र संस्थान होने का गौरव हासिल है। आपका परिचय हम एफआरआइ की इसी इमारत से करा रहे हैं।

अपनी खूबसूरत आबोहवा के जाना जाने वाला देहरादून शहर लीची व आम के बागीचों और बासमती की महक के लिए ही प्रसिद्ध नहीं रहा, बल्कि यहां की ऐतिहासिक इमारतें भी देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचती रही हैं। इन्हीं में एक है वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) की मुख्य इमारत। ग्रीक-रोमन और औपनिवेशिक शैली में बनी महल जैसी यह इमारत शहर के हृदय स्थल घंटाघर से सात किमी दूर देहरादून-चकराता हाइवे पर स्थित है। दो हजार एकड़  क्षेत्र में फैले एफआरआइ की स्थापना वर्ष 1878 में ब्रिटिश इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल के नाम से की गई थी।

वर्ष 1906 में इसकी पुनर्स्‍थापना कर इसे फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का स्वरूप दिया गया। राष्ट्रीय धरोहर घोषित हो चुके एफआरआइ के मुख्य भवन का उद्घाटन वर्ष 1921 में किया गया। इस भवन का डिजाइन विलियम लुटयंस ने तैयार किया था, जिसे बनने में करीब छह साल का समय लगा। तब इस पर 90 लाख की लागत आई थी। वन क्षेत्र में अपने शोध कार्य के लिए प्रसिद्ध इस संस्थान को एशिया में अपनी तरह के एकमात्र संस्थान होने का गौरव हासिल है।

वर्ष 1988 में एफआरआइ और उसके शोध केंद्रों को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन लाया गया। वर्ष 1991 में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया किया। यह भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) के अंतर्गत आने वाला एक प्रमुख संस्थान है। तिब्बत से लेकर सिंगापुर तक के सभी तरह के पेड़-पौधे यहां मौजूद हैं। इसलिए इसे देहरादून की पहचान और गौरव भी कहा जाता है।

उड़द की दाल से जोड़ी गई इमारत

आपको आश्चर्य होगा कि एफआरआइ की इस इमारत को जोड़ने या बनाने के लिए चूना पत्थर व उड़द की दाल के मिश्रण का उपयोग किया गया। यह वजह है कि इसकी चमक और मजबूती आज भी इसे सबसे अलग बनाती है। 

विज्ञान और पर्यटन साथ-साथ

वन अनुसंधान संस्थान में प्रयोगशालाएं, एक पुस्तकालय, वनस्पति-संग्रहालय, वनस्पति-वाटिका, मुद्रण-यंत्र और प्रायोगिक मैदानी क्षेत्र हैं। जिन पर वानिकी शोध किया जाता है। इसके संग्रहालय वैज्ञानिक जानकारी के अलावा पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं।

एफआरआइ का भूगोल

वन अनुसंधान संस्थान परिसर के उत्तर में देहरादून कैंट और दक्षिण में भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) स्थित है। टोंस नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है।

शोध के साथ प्रशिक्षण भी

संस्थान में वानिकी से संबंधित शोध कार्यों के अलावा भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के लिए चयनित अधिकारियों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके लिए यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी (आइजीएनएफए) की स्थापना की गई है। यह प्रशिक्षण आइसीएफआरई की देखरेख में ही होता है। देहरादून में आइसीएफआरई के माध्यम से भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) और भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भी संचालित किए जाते हैं।

अनूठा है एफआरआइ का संग्रहालय

एफआरआइ का संग्रहालय प्रतिदिन सुबह 9.30 से शाम पांच बजे तक आमजन के लिए खुला रहता है। संस्थान के म्यूजियम समेत अन्य हिस्सों को देखने के लिए प्रवेश शुल्क निर्धारित है। इस संग्रहालय में छह अनुभाग हैं, जिन्हें पैथोलॉजी संग्रहालय, सामाजिक वानिकी संग्रहालय, वन-वर्धन संग्रहालय, लकड़ी संग्रहालय, अकाष्ठ वन उत्पाद संग्रहालय व कीट विज्ञान संग्रहालय नाम से जाना जाता है।

अनूठा है 800 साल पुराना तना

एफआरआइ में दुनियाभर की कुछ बेहद अनोखी चीजें देखी जा सकती हैं। इनमें सबसे खास है 800 साल पुराने पेड़ का कटा हुआ तना। सदियों पुराने इस तने की पहचान इस पर बनी हुई लकीरों को पहचान कर की गई। इसे सुरक्षित रखने के लिए कई तरह के पेंट का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा यहां बहुत पुरानी बांस-बल्लियों या लकड़ी के डंडों को भी देखा जा सकता है।

शूटिंग का पसंदीदा स्थल

एफआरआइ का मुंबई में स्थित भारतीय फिल्म उद्योग से संबंध होने के कारण कई बड़े फिल्म निर्माता एफआरआइ परिसर में अपनी फिल्मों की शूटिंग भी कर चुके हैं। इनमें धर्मा प्रोडक्शन की 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' व तिग्मांशु धूलिया की 'पान सिंह तोमर' के अलावा 'फरिश्ते', 'रहना है तेरे दिल में', 'कृष्णा कॉटेज', 'अरमान', 'घर का चिराग' 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर-2', 'जीनियस' जैसी बड़ी फिल्मों की शूटिंग एफआरआइ में ही हुई। इसके अलावा 'पहरेदार पिया की', 'ये रिश्ता क्या कहलाता है', 'जिया जले', 'दुल्हन' जैसे टीवी सीरियलों की शूटिंग भी यहां की गई।

छह राज्यों की जरूरतों का करता है पूरा

संस्थान विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की अनुसंधान जरूरतों को पूरा करता है। वर्तमान में यह वानिकी में पीएचडी उपाधि के अलावा एमएससी डिग्री के लिए अग्रणी तीन कोर्स और दो स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्रदान करता है। 

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