तीर्थनगरी ऋषिकेश में नमामि गंगे के काम अधूरे, गंगा को जहरीला बना रहे नाले
तीर्थनगर ऋषिकेश में नमामि गंगे के कार्य अधूरे पड़ें है। इसके फलस्वरूप गंगा के तीर्थनगरी ऋषिकेश में प्रवेश करते ही उसमें दूषित नालों का जहर भी घुलने लगता है।
By BhanuEdited By: Updated: Sat, 02 Nov 2019 08:39 PM (IST)
ऋषिकेश, हरीश तिवारी। पहाड़ों की गोद में कल-कल बहती गंगा के तीर्थनगरी ऋषिकेश में प्रवेश करते ही उसमें दूषित नालों का जहर भी घुलने लगता है। तीर्थनगरी क्षेत्र में तमाम ऐसे नाले हैं, जो गंगा में जहरीला बना रहे हैं। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए धरातल पर काम पूरा नहीं हो सका है।
पांच वर्ष पूर्व केंद्रीय जल आयोग के सर्वे में क्षेत्र के चार नालों को गंगा की सेहत के लिए खतरनाक माना गया था। इन नालों को बंद करने और इनके पानी के शोधन के लिए नमामि गंगे परियोजना में वृहद स्तर पर योजनाएं संचालित हो रही हैं। अभी तक इन योजनाओं का काम पूरा नहीं हो पाया।तीर्थनगरी ऋषिकेश क्षेत्र में तपोवन से लेकर लक्कड़ घाट तक करीब दस किमी क्षेत्र में दर्जनभर छोटे-बड़े नाले और जल राशियां गंगा में मिलती हैं। इस क्षेत्र में भी नमामि गंगे परियोजना के तहत करोड़ों की लागत से निर्माण कार्य हो रहे हैं। इनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), नई राइजिंग लाइन बिछाने और दूषित नालों को टेप करने की योजनाएं शामिल हैं।
बीते दो वर्षों से निर्माणाधीन इन योजनाओं पर अभी तक 70 फीसद काम ही पूरा हो पाया है। नतीजा, अभी तक कोई भी नाला या दूषित जल राशि गंगा में मिलने से नहीं रोकी जा सकी है। नमामि गंगे परियोजना में ढालवाला व शीशमझाड़ी ड्रेन को टेप कर इनके शोधन के लिए एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है। रंभा नदी के शोधन को भी बापूग्राम में एसटीपी का निर्माण प्रस्तावित है। इस पर कार्य कब शुरू होगा, कहा नहीं जा सकता।
तीन नालों का पानी जीव पनपने लायक भी नहींगंगा में जहर घोलने वाले दूषित नालों, सीवेज और जल राशियों के अध्ययन का जिम्मा केंद्रीय जल आयोग को सौंपा गया था। आयोग की देहरादून रेंज की टीम ने ऋषिकेश से लक्कड़ घाट तक आठ नालों के सैंपल लिए। इनमें स्वर्गाश्रम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के इनलेट और आउटलेट के अलावा ढालवाला ड्रेन, त्रिवेणी घाट स्थित सरस्वती नाला व सीवर लाइन के रिसाव, काले की ढाल स्थित रंभा नदी और लक्कड़ घाट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के इनलेट व आउटलेट के नमूने शामिल थे।
आयोग ने स्वर्गाश्रम से लक्कड़ घाट के बीच कुल आठ स्थानों पर नमूने लिए। इनकी रिपोर्ट में सरस्वती नाले व सीवर के रिसाव में 90-90 अंक बीओडी (बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) पाया गया। चंद्रेश्वर नगर के समीप गंगा में मिलने वाले ढालवाला ड्रेन की हालत तो और भी बुरी बताई गई थी। इस ड्रेन में 160 अंक बीओडी मिला। शहर के एकमात्र लक्कड़घाट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से भी साफ होने के बाद जो पानी गंगा में मिल रहा है, वह भी स्वच्छ नहीं था।
मानक के अनुसार 1.6 से 5.0 बीओडी युक्त जल ही गंगा के लिए सुरक्षित है। इन चारों नालों में डीओ (डिजाल्व ऑक्सीजन) की मात्रा ना के बराबर है। यानी इन नालों में ऑक्सीजन के बगैर जीवित रहने वाले जंतुओं के अलावा किसी भी तरह का जीवन नहीं पनप सकता। यह भी पढ़ें: देवभूमि में अब साफ-सुथरी नजर आएगी गंगा, पढ़िए पूरी खबर
फरवरी तक पूरे होंगे सभी काम नमामि गंगे के परियोजना प्रबंधक संदीप कश्यप के मुताबिक, नमामि गंगे के तहत ऋषिकेश व मुनिकीरेती क्षेत्र में जो योजनाएं संचालित हो रही हैं, उनका करीब 75 फीसद काम पूरा हो चुका है। आगामी फरवरी तक यह सभी काम पूरे हो जाएंगे। इनमें रंभा नदी के जल के शोधन की योजना भी शामिल है। ढालवाला ड्रेन व शीशमझाड़ी के नालों के शोधन के लिए भी एसटीपी का काम जारी है।
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