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Uttarakhand Forest Fire: उत्तराखंड में जंगलों के झुलसने का सिलसिला जारी, आग से जंगली जानवर शहर में लगे भटकने

जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं के बीच वन विभाग असहाय नजर आ रहा है। हालांकि सीमित संसाधनों के साथ कई स्थानों पर विभागीय फील्ड स्टाफ द्वारा आग बुझाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन तेजी से बढ़ती गर्मी के बीच जंगलों में धधक रही आग उनके लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है। जंगल जलने से जंगली जानवरों को पानी तक नहीं मिल रहा है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 03 May 2024 06:00 AM (IST)
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त्तराखंड में जंगलों के झुलसने का सिलसिला जारी

 जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़। जिला मुख्यालय सहित जिले के अधिकांश जंगल अब भी आग की चपेट में है। चीड़ के जंगलों के अलावा चौड़ी पत्त्ती वाले वृक्षों के जंगल भी आग की लपटों से घिरे हुए हैं। जिला मुख्यालय के निकट थलकेदार व उसके आसपास के जंगलों में तो आग शांत हो चुकी है परंतु नैनी-सैनी व सौड़लेख के जंगलों से धुंआ उठ रहा है।

वर्षा होने पर ही जगलों की आग बुझ सकती है

उधर नेपाल सीमा से लगे झूलाघाट और जौलजीबी क्षेत्रों के जंगलो में आग लगी है। सामने नेपाल के जंगलों में लगी आग के चलते घाटी वाले क्षेत्रों में धुंध छायी हुई है। जिसके चलते आंखों में जलन की शिकायत लोगों ने की है। इस बीच जिलाधिकारी के निर्देश के बाद राजस्व क्षेत्र में पटवारी चौकियों को भी क्रू स्टेशन बना दिया गया है। इसकी उपजिलाधिकारी निगरानी कर रहे हैं। जिस तरह जंगलों की आग फैली है उस पर अब लोगों का कहना है कि वर्षा होने पर ही जगलों की आग बुझ सकती है।

जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं के बीच वन विभाग असहाय नजर आ रहा है। हालांकि सीमित संसाधनों के साथ कई स्थानों पर विभागीय फील्ड स्टाफ द्वारा आग बुझाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन तेजी से बढ़ती गर्मी के बीच जंगलों में धधक रही आग उनके लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है।

आग से जंगली जानवर शहर में लगे भटकने

जिले के जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ गई हैं। लगभग 20 बार जंगल जल गए हैं। 21.55 हेक्टेयर वन भूमि को नुकसान हुआ है। जिस कारण जंगली जानवरों ने गांव तथा शहर का रुख कर लिया है। बंदर सबसे अधिक नगर में धमक गए हैं। जंगल जलने से जंगली जानवरों को पानी तक नहीं मिल रहा है। वह भोजन तथा पानी की तलाश में नगर तक पहुंचने लगे हैं।

गेहूं कटने के बाद खेतों में गिरे अनाज से भूख मिटा रहे हैं। वहीं, घरों की छतों पर लगी पानी की टंकियों को क्षतिग्रस्त कर पानी का जुगाड़ भी कर ले रहे हैं। जिससे लोगों की दिक्कतें बढ़ गईं हैं। वहीं, जंगली सूअर, गुलदार, मुर्गियां आदि भी गांव तथा शहर के आसापस दिखाई देने लगे हैं। वृक्ष प्रेमी किशन मलड़ा ने कहा कि जंगलों की आग को रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए।

पानी के स्रोतों पर भी विपरीत असर पड़ रहा है

आग के कारण वन्य जीव संकट में हैं। पानी के स्रोतों पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी हेम पंत ने कहा कि मानव जीवन को खतरा पैदा हो गया है। जंगलों को बचाने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लिया जाए। इधर, आरओ श्याम सिंह करायत ने कहा कि आग को नियंत्रित किया जा रहा है। अब तक चार अराजक तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई भी की गई है।