ऋषिकेश में मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश निवासी रियाजुद्दीन और अब उनके पुत्र सफीक अहमद अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व पर भगवान श्रीराम की जीत का जश्न मनाने का काम 57 वर्ष से करते आ रहे हैं। इनके बनाए हुए पुतले ही दशहरा के मेले को सार्थक करते आए हैं।
57 वर्ष से परंपरा निभा रहा रियाजुद्दीन का परिवार
आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय परंपराओं के निर्वहन के रूप में तीर्थनगरी ऋषिकेश की अपनी अलग पहचान रही है। यहां रामलीला कमेटी आइडीपीएल की ओर से सर्वप्रथम 1964 में रावण पुतला दहन का कार्यक्रम शुरू किया गया था।57 वर्ष पूर्व असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक इस पर्व पर रंग भरने का काम मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश निवासी रियाजुद्दीन ने रावण का पुतला बनाकर किया था। तब से अब तक उन्हीं का परिवार इस परंपरा को निभाता आ रहा है।
यह भी पढ़ें : Dussehra 2022 : भारत के इस पहाड़ी क्षेत्र में नहीं होता रावण दहन, यहां दो गांवों बीच लड़ा जाता है युद्ध...रियाजुद्दीन के निधन के बाद अब इस परंपरा को उनके पुत्र सफीक अहमद निभा रहे हैं। दो वर्ष कोरोना काल के सफीक और उसके परिवार के लिए दुखदायी रहे हैं।
उन्हें इस बात का मलाल है कि इस बीच वह यहां परंपरा के अनुसार रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले नहीं बना पाए। हां, इतना जरूर है कि परंपरा का निर्वहन करते हुए उन्होंने छोटे पुतले बना कर इस विरासत को आगे बढ़ाया है। इस दौरान मेला नहीं लगा तो पुतलों का गंगा में विसर्जन किया गया था।
1970 में बना था सबसे ऊंचा पुतला
आइडीपीएल कालोनी से 1964 में ऋषिकेश क्षेत्र में रावण पुतला दहन की शुरुआत हुई थी। रामलीला कमेटी ने वर्ष 1970 में सबसे ऊंचा 75 फीट का रावण का पुतला बनाया था। इस दौरान कुंभकरण का पुतला 60 फीट और मेघनाद का पुतला 55 फीट का बनाया गया था। मुजफ्फरनगर निवासी की रियाजुद्दीन ने पुतले यहीं पर बनाए थे।
2006 में रियाजुद्दीन के इंतकाल के बाद अब उनके पुत्र सफीक अहमद इस काम को कर रहे हैं। सफीक अहमद ने बताया कि वह त्रिवेणी घाट में अब तक रावण का पुतला 60 फीट, कुंभकरण और मेघनाथ का पुतला 55 फीट का बनाते आ रहे हैं। ऋषिकेश त्रिवेणी घाट, आइडीपीएल और लक्ष्मण झूला में अब तक वह उनका परिवार ही पुतले बनाता आया है।
इस बार पांच स्थानों के लिए बनाए पुतले
सफीक ने बताया कि इस वर्ष हालात सामान्य होने के कारण दशहरा पर्व को लेकर सभी जगह उल्लास है। उनके पास इस बार बहुत ज्यादा काम है और सभी काम को समय पर पूरा करना उनकी बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि सबसे बड़ा पुतला 55 फीट का त्रिवेणी घाट के लिए बनाया गया है।
आइडीपीएल,रानी पोखरी के लिए रावण का 50 फीट का पुतला बनाया गया है। जबकि लक्ष्मण झूला में 50 और टीएचडीसी में 35 फीट का पुतला बनाया गया है। आइडीपीएल को छोड़कर सभी जगह रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले का दहन होगा।
12 साल से दशहरे के उल्लास में रंग भर रहा मोहम्मद गुड्डू
वहीं डोईवाला में मुजफ्फरनगर के पुरकाजी निवासी मोहम्मद गुड्डू को दहशरे पर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाने का खासा उत्साह रहता है। यही वजह है कि वह केवल पुतले बनाने के लिए परिवार सहित कुछ समय के लिए डोईवाला पहुंचते हैं और दशहरे में पुतले दहन के बाद वापस घर लौट जाते हैं। नवरात्र शुरू होने के बाद से वह और उसका परिवार पुतले तैयार करने के काम में जुटा है।
मोहम्मद गुड्डू पिछले 12 सालों से डोईवाला में आकर पुतले बनाने का काम कर रहे हैं। कोविड काल की वजह से पिछले दो साल दशहरे मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। इस कारण वह पिछले दो साल नहीं आ पाए थे।गुड्डू ने बताया कि इस बार वह 55 फीट का रावण और 45 फीट के मेघनाद का पुतला बना रहे है। उन्होंने बताया कि तीन पीढ़ियों से उनका परिवार दशहरे पर्व के लिए रावण, मेघनाद के अलावा सोने की लंका को तैयार करने का काम कर रहा है।
उन्होंने बताया देहरादून के अलावा वह पंजाब और राजस्थान में दशहरे पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाने हैं। उन्होंने कहा कि यह काम करने उनका मानसिक शांति मिलती है साथ ही कमाई के साथ- साथ उनका उद्देश्य देश में हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना है। इसलिए नवरात्र शुरू होने से पहले ही उनका परिवार डोईवाला पहुंच जाता है।15 से 20 दिनों में वह रावण और मेघनाथ का पुतला तैयार करते हैं। इस बार पुतले तैयार करने में हिंदू भाई भी उनके के साथ जुटे हैं। उन्होंने बताया कि पुतले बनाने में उनकी कई दिनों का मेहनत लगती है। जो कि कुछ ही पलों में धू-धू कर जल जाते हैं। लेकिन उनको बुराई पर अच्छाई की जीत पर खुशी महसूस होती है।
पीढ़ियों से रावण का पुतला बनाता आ रहा है शकील का परिवार
पीढ़ियों से रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ का पुतला बनाने का काम कर रहे शकील अहमद का परिवार भी गंगा-जमुनी तहजीब व भाईचारे की मिसाल कायम कर रहा है। रुड़की में विभिन्न स्थानों पर इन दिनों रामलीला मंचन की धूम है। घर और मंदिरों में मातारानी का पूजन किया जा रहा है तो मंचों पर प्रभु की लीलाएं दर्शकों को अच्छाई के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
वहीं शहर में दशहरे मेले की भी तैयारियां आरंभ हो गई हैं। मेले का सबसे बड़ा आयोजन नेहरू स्टेडियम में होता है। शहर के अलावा देहात क्षेत्र से भी हजारों की संख्या में लोग परिवार सहित स्टेडियम में रावण दहन देखने पहुंचते हैं। इस बार भी रामलीला मंचन के साथ ही दशहरा पर्व धूमधाम से मनाए जाने के लिए लोग उत्साहित हैं और जोरशोर से तैयारियां चल रही हैं।
इस बार रुड़की के नेहरू स्टेडियम में लगने वाले दशहरे मेले में रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ का पुतला बनाने का काम पुरकाजी निवासी शकील अहमद को मिला है। उन्होंने बताया कि यह कार्य उन्हें विरासत में मिला है।होश संभालने के साथ ही बचपन से ही वह रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ का पुतले बना रहे हैं। पुतला बनाने का काम उनका परिवार पीढ़ियों से करता आ रहा है। उनके पिता, दादा और परदादा आदि रावण का पुतला बनाने का काम करते थे। अब यह काम उन्होंने संभाल लिया है।वह पहली बार रुड़की में रावण का पुतला बना रहे हैं। अब तक वह ज्यादातर पंजाब के लुधियाना में ही रावण का पुतला बना रहे थे। उन्होंने बताया कि नेहरू स्टेडियम में वह 60 फीट ऊंचा रावण का पुतला बना रहे हैं। उनकी टीम में पांच लोग हैं, जो दिनरात लगकर दशहरे से पहले यह तीनों पुतले तैयार कर देंगे।