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गणेश महोत्सव पर ग्राहकों को भा गई गणपति की ईको फ्रेंडली मूर्तियां

गणेश महोत्‍सव में इस बार भक्‍तों की पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्‍यान दिया है। इसलिए उन्‍होंने भगवान गणेश की ईको फ्रैंडली मूर्तियों को खरीदा है। इससे जहां एक तरफ मिट्टी से मूर्तियां बनाने वाले के चेहरे खिल गए वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया गया।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 11 Sep 2021 01:37 PM (IST)
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गणेश महोत्सव पर ग्राहकों को भा गई गणपति की ईको फ्रेंडली मूर्तियां।
जागरण संवाददाता, देहरादून। शहर में गणेश महोत्सव की धूम है। बाजार में ईको फ्रैंडली गणेश की मूर्तियां खरीदारों के पहली पसंद बनी है। चतुर्थी पर घरों और मंदिरों में भक्तों ने मिट्टी से बनी मूर्तियों की खूब खरीदारी की। जहां ग्राहकों ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी निभाई वहीं, बीते वर्ष कोरेानाकाल में ठप पड़ा कार्य के बाद इस वर्ष मिट्टी से बनी मूर्तियों की खरीदारी से दुकानदारों के चेहरे खिल उठे हैं।

तेल महंगा होने से मूर्तियों पर भी असर

चकराता रोड पर मिट्टी के बर्तन व मूर्तियां बेचने वाले रमेश बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से मूर्तियों को लाने के लिए किराया पहले के मुकाबले ज्यादा हुआ है। लोडर चालक इसके पीछे तेल महंगा होना बता रहे हैं। जिसका सीधा असर मूर्तियों पर पड़ा है। बीते वर्ष तक जो मूर्ति 200 रुपये में मिलती थी वह इस बार 250 से 270 तक बेचनी पड़ रही है।

आयोजक समितियों ने भी कोविड- गाइडलाइन के तहत की मूर्ति स्थापना

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी पर मूर्ति स्थापना के बाद अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन होगा। बीते वर्ष कोरोनाकाल में आयोजन न होने से इस बार आंशिक छूट के चलते दुकानदारों में उम्मीद जगी है। इसके लिए मूर्ति विक्रेताओं ने कलकत्ता, मेरठ, कानपुर से मिट्टी से बनी मूर्तियां मंगवाकर सजाई और चतुर्थी पर हुई खरीदारी से अधिकांश दुकानदारों के चेहरे खिल उठे। कुम्हार मंडी में दुकानदार कार्तिक प्रजापति ने बताया कि पर्व से पहले ही बुकिंग आनी शुरू हो चुकी थी। ग्राहक पीओपी की मूर्तियों की खरीदारी नहीं करते। इस बार मिट्टी की बनी इको फ्रैंडली मूर्तियों की मांग को देखते हुए वही मंगवाई। अब देहरादून में भी गणेश चतुर्थी पर लोग खूब मूर्तियां खरीदते हैं। पहले जहां पर्व से एक सप्ताह पूर्व 50 की बुकिंग आती थी जो इस बार दोगुना पहुंचा। यह कारोबार के लिहाज से भी बेहतर है।

तेल महंगा होने से मूर्तियों पर भी असर

चकराता रोड पर मिट्टी के बर्तन व मूर्तियां बेचने वाले रमेश बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से मूर्तियों को लाने के लिए किराया पहले के मुकाबले ज्यादा हुआ है। लोडर चालक इसके पीछे तेल महंगा होना बता रहे हैं। जिसका सीधा असर मूर्तियों पर पड़ा है। बीते वर्ष तक जो मूर्ति 200 रुपये में मिलती थी वह इस बार 250 से 270 तक बेचनी पड़ रही है।

इस बार भव्य नहीं भव्य पांडाल

बंगाली लाइब्रेरी पूजा समिति करनपुर के अध्यक्ष आलोक चक्रवर्ती ने बताया कि कोरोना के चलते इस बार पांडाल ज्यादा नहीं सजे हैं। घरों में पूजा हो रही है, इसके लिए लोगों ने बाजार से ही छोटी प्रतिमा खरीद ली। गणेश उत्सव धामावाला सराफा बाजार समिति के उपाध्यक्ष संतोष मान ने बताया कि भीड़ ज्यादा न हो इसके लिए 10 को प्रतिमा स्थापित की गई, जबकि 13 को विसर्जन होगा। युवा गणेश उत्सव समिति मन्नूगंज के संरक्षक मुकेश ने बताया कि इस बार सादगी से पर्व मनाया जा रहा है।

इस तरह करें मिट्टी से बने मूर्तियों की पहचान

बिंदाल स्थित दुर्गाबाड़ी मंदिर में पहुंचे कलकत्ता के कारीगर पंचु गोपाल का कहना है कि पीओपी और मिट्टी से बनी मूर्तियों की पहचान करने का सबसे आसान तरीका है कि पानी के हाथ से इनको रगड़ें। यदि मिट्टी आने लगे तो मूर्ति मिट्टी की है वरना पीओपी या अन्य से बनी है। मिट्टी से बनी मूर्तियां ज्यादा पानी लगाने पर घुलने लगती हैं।

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