Smart City: डूबते शहर में तैर रहे कई सवाल, आखिर कहां गया ड्रेनेज का मास्टर प्लान
जब जोरदार बारिश होती है तो ये सारे सवाल तैरने लगते हैं कि जिस दून को नहरों के रूप में ड्रेनेज की सौगात मिली थी वह कैसे दरिया-दून बन गया है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Mon, 17 Aug 2020 04:59 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। हम दून में स्मार्ट सिटी की बात कर रहे हैं। मेट्रो के सपने देख रहे हैं। बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल मेट्रोपोलिटन कल्चर का एहसास करा रहे हैं। ...और जब जोरदार बारिश होती है तो ये सारे ख्वाब डूबे नजर आते हैं। सवाल तैरने लगते हैं कि जिस दून को नहरों के रूप में ड्रेनेज की सौगात मिली थी, वह कैसे 'दरिया-दून' बन गया। वक्त का पहिया आगे बढ़ता गया, मगर शहर को बेहतर बनाने की सोच संकरी होती चली गई। जिन सफेदपोशों को आगे आकर शहर के ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए थे, उनकी भूमिका जलभराव के बाद औपचारिकता के रूप में जनता का हाल जानने तक सीमित रह गई है। शनिवार रात हुई भारी बारिश के बाद की सुबह भी यही नजारा था। क्या भाजपा, क्या कांग्रेस और क्या बाकी दलों के नेता, सभी जता रहे थे कि वही जनता के सच्चे हितैषी हैं। उनकी जुबां पर समाधान कम और राजनीति के शब्दबाण अधिक थे।
यही वजह भी है कि दून को जलभराव से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2008 में पेयजल निगम ने जो मास्टर प्लान तैयार किया था, उसे करीब 12 साल बाद भी धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। तब इस प्लान को धरातल पर उतारने की लागत 300 करोड़ रुपये थी, जो अब 900 करोड़ रुपये को पार कर गई है। इस मास्टर प्लान को तब स्वीकृति के लिए शासन के पास भी भेजा गया था, लेकिन शहर की सबसे बड़ी समस्या को हल करने के लिए शासन के उच्चाधिकारियों को यह धनराशि अधिक लगी। लिहाजा, इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। साल दर साल जब-जब बारिश में सड़कें जलमग्न होतीं, लोगों के घरों में पानी और मलबा घुस जाता या कोई जिंदगी डूब जाती, तब प्लान पर चर्चा जरूर कर ली जाती।
इसी रस्म अदायगी के बीच वर्ष 2012 में फिर से प्लान का जिन्न बाहर निकला तो पता चला कि इसकी लागत 450 करोड़ रुपये को पार कर गई है। तब पार्षदों ने इस प्लान पर आपत्ति जता दी और इसमें सुधार के लिए कहा गया। यह अलग बात है कि संशोधन के बाद भी प्लान फाइलों में ही कैद रहा। अब न सिर्फ इस प्लान की लागत तीन गुना हो गई है, बल्कि पुराने प्लान के अनुरूप धरातल भी अब पहले जैसा नहीं रहा। वर्ष 2008 से अब तक नाले-नालियों का स्वरूप काफी बदल चुका है और कॉलोनियों के आकार में भी बदलाव आए हैं। इस तरह देखें तो ड्रेनेज का मास्टर प्लान अब खुद फाइलों में ही डूबकर लगभग खत्म हो चुका है।
इस तरह परवान चढ़नी थी योजनारिस्पना से प्रिंस चौक
मास्टर प्लान के तहत हरिद्वार रोड पर रिस्पना पुल से प्रिंस चौक तक दोनों तरफ गहरे और चौड़े नाले बनने थे, जिससे बारिश का पानी सड़कों पर न आ पाए। लोनिवि ने आराघर चौक से सीएमआइ चौक और कुछ आगे तक थोड़ा काम किया, मगर नियोजित तरीकेसे नहीं। जबकि धर्मपुर में एलआइसी भवन, आराघर चौक, सीएमआइ चौक के पास, रेसकोर्स चौक से रोडवेज वर्कशॉप तक भारी जलभराव होता है।
धर्मपुर से मोथरोवाला रोडप्लान के तहत धर्मपुर से मोथरोवाला तक नालों का निर्माण होना था। जिससे पानी सड़क पर आने के बजाय नालों के जरिये निकल जाए। धर्मपुर से मोथरोवाला रोड की तरफ ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त है। यहां पर नालियां कहीं चोक हैं तो कहीं टूटी हुई हैं।कांवली और सीमाद्वार मार्ग पर खानापूर्तिमास्टर प्लान के तहत कांवली और सीमाद्वार मार्ग पर नालों का निर्माण कर पानी की निकासी को बेहतर बनाया जाना था। इस दिशा में कुछ प्रयास किए भी गए, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता बेहतर न होने से उसका लाभ नहीं मिल पाया।
सहारनपुर रोड पर प्लान की अनदेखीलोनिवि ने यहां पर नाले का निर्माण जरूर किया है, मगर मास्टर प्लान की अनदेखी की गई। इसके चलते करीब दो दर्जन जगहों पर ढाल दुरुस्त नहीं है। इससे बारिश का पानी सड़कों पर बहने लगता है। खासकर इस पूरे मानसून सीजन में आइएसबीटी क्षेत्र जलमग्न रहा और लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी।छह बड़े नालों पर होना था काम
मास्टर प्लान के तहत पहले चरण में दून के छह बड़े नालों मन्नूगंज, चोरखाला, गोविंदगढ़, भंडारी बाग, एशियन स्कूल और रेसकोर्स नाले पर काम होना था। इन नालों के ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर करने में 59.48 करोड़ खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। हालांकि, जब मास्टर प्लान पर बात आगे नहीं बढ़ी तो इन पर भी काम कहां से हो पाता।इन इलाकों में भी होना था कामद्रोणपुरी, अलकनंदा एनक्लेव, ब्रह्मपुरी, चमनपुरी, अमन विहार, इंदिरा कॉलोनी, इंजीनियर्स एनक्लेव (काम चल रहा, मगर मास्टर प्लान से इतर), इंदिरा गांधी मार्ग, आनंद विहार, मोहित नगर, रीठामंडी, प्रकाश विहार, साकेत कॉलोनी, राजीव नगर, वनस्थली, व्योमप्रस्थ, राजीव नगर, केशव विहार, कालीदास रोड, लक्ष्मी रोड, बलवीर रोड, इंदर रोड, करनपुर रोड, त्यागी रोड, रेसकोर्स रोड, अधोईवाला, कारगी, मयूर विहार, गांधी रोड, गोविंदगढ़, सालावाला रोड, यमुना कॉलोनी, पार्क रोड, कौलागढ़ रोड, कैनाल रोड, महारानीबाग आदि। इन सभी इलाकों में जलभराव की समस्या रहती है।
नहीं उठाई नालों की सफाई की जहमतहर बार मानसून से पहले नगर निगम के नाला गैंग और सफाईकर्मियों को कागजों पर अलर्ट मोड में ला दिया जाता है। दावे किए जाते हैं कि नालों की सफाई कर जल निकासी दुरुस्त कर दी जाएगी, लेकिन हकीकत में शहर के नालों और नालियों का अधिकांश हिस्सा सालभर कचरे से चोक रहता है। जब बारिश होती है, तो पानी कॉलोनियों में घुस जाता है।पहला काम अधूरा, अब सिंचाई विभाग को जिम्मा
सरकार से लेकर शासन और प्रशासन तक में अक्सर यह बात कही जाती है कि विभागों को आपस में समन्वय बनाकर काम करना चाहिए। हालांकि, जब भी जरूरत पड़ती है तो इस बात का अभाव नजर आता है। यह बात दून के ड्रेनेज प्लान में भी सामने आई।यह भी पढ़ें: VIDEO: मूसलधार बारिश के बाद दून अस्पताल में घुसा पानी, भारी गुजरी कोरोना मरीजों की रात
पेयजल निगम ने वर्ष 2008 में जो प्लान तैयार किया था, उसे एक्सपायर (कालातीत) करने की बात सामने आ रही है। यही कारण है कि सरकार ने सिंचाई विभाग को ड्रेनेज का प्लान बनाने की जिम्मेदारी सौंपी तो इसमें पेयजल निगम के प्लान का जिक्र तक नहीं किया। इस तरह के प्रयास भी नहीं किए जा रहे कि पुराने प्लान में सुधार कर उस पर जल्द काम शुरू किया जा सके। सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता (विभागाध्यक्ष) मुकेश मोहन का कहना है कि नए सिरे से प्लान तैयार करने के लिए टेंडर आमंत्रित कर दिए गए हैं। हालांकि, यह कवायद पिछले साल अगस्त में शुरू हुई थी। काम की गति ऐसी है कि यह प्रक्रिया कब पूरी होगी और कब धरातल पर काम शुरू होगा, यह सब कुछ अभी भविष्य की गर्त में है।
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