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विलुप्ति की कगार पर खड़ी सोन चिरैया के 'सूने' संसार में चहचहाट शुरू, पढ़िए पूरी खबर

विलुप्ति की कगार पर खड़ी सोन चिरैया के कुनबे में उम्मीद की नई चहचहाट शुरू हो गई है। डब्ल्यूआइआइ के सहयोग से इन पक्षियों के संसार में आठ नए चूजों ने जन्म लिया है।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sun, 08 Sep 2019 08:26 PM (IST)
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विलुप्ति की कगार पर खड़ी सोन चिरैया के 'सूने' संसार में चहचहाट शुरू, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, सुमन सेमवाल। जो सोन चिरैया (ग्रेट इंडिया बस्टर्ड) पूरे विश्व में सिर्फ भारत में ही पाई जाती है और यहां भी 200 से कम संख्या में बचे इन पक्षियों के सूने होते संसार के लिए अच्छी खबर है। विलुप्ति की कगार पर खड़ी सोन चिरैया के कुनबे में उम्मीद की नई चहचहाट शुरू हो गई है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के सहयोग से अति संकटग्रस्त प्रजाति के इन पक्षियों के संसार में आठ नए चूजों ने जन्म लिया है। यह शुभ समाचार संस्थान के वैज्ञानिकों ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को दिया। 

डब्ल्यूआइआइ की वार्षिक आमसभा में शामिल होने के बाद केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने राजस्थान (जैसलमेर) में पाए जाने वाले इन पक्षियों के संरक्षण कार्य के बारे में जानकारी प्राप्त की। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईवी झाला ने एक प्रस्तुतीकरण के माध्यम से बताया कि सोन चिरैया के अंडों को कृत्रिम विधि से मशीन में सेंका गया और फिर उससे सफलतापूर्वक आठ चूजों (बच्चों) का जन्म करा दिया गया है।

अंडों में स्वस्थ बच्चा पल रहा है या नहीं, इसकी पड़ताल के लिए ईसीजी के माध्यम से अंडे की भीतर धड़कन को भी रिकॉर्ड किया गया। अब जब स्वस्थ चूजे जन्म ले चुके हैं तो विशेष मालिश के माध्यम से उनकी मांस-पेशियों को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है। 

हाईटेंशन लाइनें बन रहीं मौत का कारण 

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईवी झाला ने यह भी बताया कि जहां इन पक्षियों का वासस्थल है, वहां ग्रिड की लाइनें गुजर रही हैं। ये पक्षी सीधे (समानांतर) देख पाने में उतने सक्षम नहीं होते हैं, लिहाजा बिजली की तारों से टकराकर इनकी मौत हो रही है। दूसरी तरफ पाकिस्तान क्षेत्र में उडऩे पर इनका अवैध शिकार भी किया जा रहा है। अवैध शिकार पर काफी हद तक अंकुश लग चुका है, मगर हाईटेंशन लाइनों के लिए उन पर बर्ड डायवर्टर (एक तरफ का रिफलेक्टर) लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

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विदेश से आयात करने पर इनकी लागत पांच हजार प्रति नग आ रही थी, मगर अब इनका निर्माण दिल्ली में ही महज 500 रुपये में संभव है। केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने इस पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि न सिर्फ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, बल्कि यह तकनीक हर तरह के पक्षियों को सुरक्षित कर सकती है। 

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