500 साल के अंतराल में दोबारा आ सकता है आठ रिक्टर स्केल का भूकंप
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि आठ रिक्टर स्केल या इससे उच्च क्षमता के भूकंप के एक बार आने के बाद इतनी ही क्षमता का भूकंप करीब 500 साल बाद फिर आ सकता है।
तकनीकी सत्र में प्रो. वीसी ठाकुर ने कहा कि गढ़वाल क्षेत्र में आठ रिक्टर स्केल से उच्च क्षमता का भूकंप वर्ष 1400 के आसपास आया था। जबकि, इसके बाद संबंधित भूकंपीय बेल्ट में इतनी ही क्षमता का भूकंप 1803 के आसपास रिकॉर्ड किया गया। इस तरह यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वर्ष 2300 के आसपास इतनी ही क्षमता का भूकंप फिर आएगा।
वहीं, वाडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कौशिक सेन व डॉ. एके सचान ने इंडियन व यूरेशियन प्लेट की टक्कर की अवधि पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह महज एक टक्कर नहीं थी, बल्कि टकराहटों की श्रृंखला थी, जो कि 70 मिलियन से लेकर 32 मिलियन साल तक हुई।
संस्थान के ही वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरुमल ने वर्ष 1950 में तिब्बत-असोम हिमालय क्षेत्र में आए 8.6 रिक्टर स्केल के भूकंप के बारे में विस्तृत जानकारी दी। समारोह के दूसरे दिन जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. तलत अहमद, डॉ. आरआर पाटिल, प्रो. बीपी सिंह, डॉ. आरके सहगल, डॉ. शीतल कोंजिया, डॉ. एनएस विरधी, डॉ. बीआर अरोड़ा आदि ने अध्ययन प्रस्तुत किए व विचार रखे।
आइआइटी रुड़की का पोस्टर अव्वल पोस्टर प्रदर्शनी में आइआइटी रुड़की की शोधार्थी मोनिका सैनी को पहला पुरस्कार मिला। जबकि, वाडिया संस्थान के शोधार्थी जॉन पी. पप्पाचेन को दूसरा और तीसरा पुरस्कार जयराम यादव को दिया गया।
विश्व भर में फटे ज्वालामुखी से मिले खनिज
स्वर्ण जयंती समारोह में अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए वाडिया संस्थान के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. एस घोष ने प्रोटोजोइक टाइम प्लान पर प्रकाश डाला। उन्होंने अध्ययन में बताया कि आज से 1800 से 542 मिलियन वर्ष पहले विश्वभर में ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था और इसके बाद बेहद शक्तिशाली भूकंप आया था।
इससे गोल्ड समेत कॉपर, सैंड स्टोन, आयरन, यूरेनियम, जिंक जैसे तमाम खनिज बाहर निकले थे। उन्होंने सुझाव दिया कि देश में कहीं पर भी बड़े निर्माण कार्य किए जाएं तो उससे पहले ऐसा अध्ययन जरूर कर लिया जाए कि कहीं निर्माण क्षेत्र में बहुमूल्य खनिज तो नहीं। हालांकि उन्होंने चिंता जाहिर की कि ऐसा ना के बराबर हो रहा है।
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