कालाबांसा की फांस से मुक्त होंगे उत्तराखंड के जंगल, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड के जंगलों में अब कालाबांसा नामक खरपतवार के निरंतर फैलाव ने पेशानी पर बल डाल दिए हैं। अब जंगलों को इनसे मुक्त करने को कसरत शुरू हो गई है।
By Edited By: Updated: Tue, 04 Aug 2020 09:50 PM (IST)
देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड के जंगलों में कुर्री (लैंटाना कमारा) ने पहले ही मुसीबत खड़ी की हुई थी और अब कालाबांसा (यूपेटोरियम एडिनोफोरम) नामक खरपतवार के निरंतर फैलाव ने पेशानी पर बल डाल दिए हैं। यह भी लैंटाना की तरह अपने इर्द-गिर्द दूसरे पौधों को नहीं पनपने देती, जिससे जैवविविधता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। मध्य हिमालयी क्षेत्र में 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक फैल चुके कालाबांसा की फांस से जंगलों को मुक्त करने को कसरत शुरू हो गई है। अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) से अनुमति मिलने के बाद अब वन विभाग की अनुसंधान विंग इस पर नियंत्रण के लिए शोध की तैयारियों में जुट गई है।
कभी सजावटी पौधे के तौर पर लाए गए लैंटाना ने कब पूरे उत्तराखंड में जड़ें जमा लीं, पता ही नहीं चला। अब तो इसने उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक दस्तक दे दी है। हालांकि, जैविविधता के सामने खड़े इस संकट से पार पाने को लंबे समय से कसरत चल रही, मगर अपेक्षित नतीजों का इंतजार है। इस सबके बीच लैंटाना जैसे गुणों वाली खरपतवार कालाबांसा ने भी मध्य हिमालयी क्षेत्र के जंगलों में तेजी से घुसपैठ की है। हालांकि, इसके कुछ औषधीय गुण भी हैं, मगर इसका निरंतर हो रहा फैलाव जैवविविधता के लिए बेहद खतरनाक माना जा रहा है।
दरअसल, कालाबांसा भी लैंटाना की तरह अपने आसपास दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देता। जंगलों में इसके बड़े-बड़े क्षेत्र दिखने लगे हैं। इससे वहां अन्य वनस्पतियां नहीं पनप पा रहीं। ऐसे में कालाबांसा का फैलाव रोकने पर जोर दिया गया। हाल में वन विभाग की अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) ने इस खरपतवार से उत्पन्न खतरों के मद्देनजर इसके नियंत्रण के लिए शोध की अनुमति दी है।
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मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान वृत्त) संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि कालाबांसा पर नियंत्रण के लिए तीन विधियों मानवीय, जैविक व कैमिकल पर फोकस किया जाएगा। इसमें कौन सी बेहतर रहेगी, इसका अध्ययन कर कालाबांसा को हटाने के लिए प्रोटोकाल तैयार किया जाएगा। इसका प्रयोग सबसे पहले रानीखेत अनुसंधान रेंज में किया जाएगा। फिर इसे हटाने की मुहिम चलेगी। वह बताते हैं कि कालाबांसा को हटाने के बाद संबंधित क्षेत्र में वहां की परिस्थितियों के अनुसार वनस्पतियां, घास, वृक्ष प्रजातियां लगाई जाएंगी।
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