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उत्‍तराखंड: हर दूसरे दिन एक बस होती है कंडम

उत्तराखंड परिवहन निगम में हर दूसरे दिन एक बस कंडम हो रही। तय किलोमीटर के हिसाब से कंडम बसों को बस बेड़े से बाहर कर देना चाहिए, लेकिन निगम ऐसी बसों को घसीटे जा रहा।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 02 Jan 2018 10:55 PM (IST)
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उत्‍तराखंड: हर दूसरे दिन एक बस होती है कंडम
देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: उत्तराखंड परिवहन निगम में हर दूसरे दिन एक बस कंडम हो रही, यानी प्रत्येक माह पंद्रह बसें। तय किलोमीटर और वर्ष के हिसाब से कंडम बसों को बस बेड़े से बाहर कर देना चाहिए, लेकिन निगम ऐसी बसों को घसीटे जा रहा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यहां नई बसों की खरीद भी मानक के अनुसार नहीं हो रही। नियमानुसार बेड़े में हर वर्ष 180 नई बसें शामिल करने की जरूरत है, लेकिन हर वर्ष तो दूर की बात, यहां तो पांच-पांच साल तक नई बसों की खरीद नहीं होती। कंडम बसें ही सड़क पर धकेली जा रहीं हैं। ऐसे में चलती बस का स्टेयरिंग अचानक जाम हो जाए या उसकी कमानी टूट जाए, कहा नहीं जा सकता। ये आशंका भी है कि कहीं बस के ब्रेक फेल न हो जाएं और...। 

परिवहन निगम के तय नियमानुसार एक बस अधिकतम छह वर्ष अथवा आठ लाख किलोमीटर तक चल सकती है। इसके बाद बस की नीलामी का प्रावधान है, मगर यहां ऐसा नहीं हो रहा। परिवहन निगम के पास 1323 बसों का बेड़ा है। इनमें साधारण व हाईटेक बसों के अलावा 180 वाल्वो और एसी बसें भी शामिल हैं। इनमें करीब 800 बसें रोजाना ऑनरोड होती हैं जबकि बाकी विभिन्न कारणों से वर्कशॉप में। 

इनमें 300 बसें कंडम हो चुकी हैं और इनकी नीलामी हो जानी चाहिए थी, पर निगम इन्हें दौड़ाए जा रहा है। रोडवेज के सेवानिवृत्त कार्मिक विजय कुमार ममगाई भी मानते हैं कि यहां बसों की खरीद तय प्रक्रिया के तहत नहीं हो रही। उनकी मानें तो एकसाथ नई बसों की खरीद होगी तो ये सभी बसें एक समय पर रिटायर हो जाएंगी। यदि, माहवार खरीद होती रहे, तो निगम आदर्श-स्थिति तक जा सकता है। 

इस तरह हुई बसों की खरीद

उत्तराखंड परिवहन निगम में पहला नया बस बेड़ा जुड़ा वर्ष 2004-05 में नारायण दत्त तिवारी सरकार के दौरान। रोडवेज की जर्जर वित्तीय स्थिति देखते हुए सरकार ने 60 करोड़ रुपये नई बसें खरीदने को दिए, जबकि 33 करोड़ की बैंक गारंटी दी। इस बजट से 450 बसें पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों के लिए खरीदीं गईं। खास बात ये थी कि इसी दौरान परिवहन निगम ने 30 डीलक्स हाईटेक बसें भी खरीदीं। फिर सरकार की नजरें परिवहन निगम से हट गईं और इसी बस बेड़े के जरिए निगम नैय्या पार करने की छटपटाहट में लगा रहा। सवाल उठने लगे तो वर्ष 2011-12 में भाजपा की डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' सरकार ने 280 बसें देकर कुछ सहारा दिया। 

पुरानी व नई बसों का बेड़ा करीब 1100 पहुंचा लेकिन वित्तीय स्थिति नहीं सुधरी। इस बीच निगम ने अनुबंधित बसों का सहारा लिया। इनमें वातानुकूलित और वाल्वो बसें शामिल हैं। जून-2016 तक 1323 बसों के बेड़े से ही सड़क पर चलता आया, मगर वक्त गुजरने के साथ इनमें से 300 बसें कंडम हो गईं। इस अवधि में हरिद्वार महाकुंभ व अर्धकुंभ समेत चारधाम यात्राएं गुजर गईं। 2016 में रोडवेज ने 100 करोड़ रुपये की सरकारी मदद से 483 नई बसें अपने बेड़े में जोड़ी लेकिन इन बसों की खरीद सवालों में घिर गई। 

महाप्रबंधक परिवहन निगम दीपक जैन का कहना है कि  तय प्रक्रिया के तहत बसों की खरीद आदर्श-स्थिति में होती है। जब परिवहन निगम मुनाफे में हो और कोई परेशानी न हो। निगम ने बसें तभी खरीदीं जब राज्य सरकार से अनुदान मिला या फिर निगम ने ऋण लिया। निगम जब सालाना नुकसान से बाहर आ जाएगा तो आदर्श-स्थिति के ही अनुसार कार्य किए जा सकेंगे।

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