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विशेषज्ञों ने सीओपीडी के उपचार की आधुनिक तकनीक साझा की

देहरादून में आयोजित सेमीनार में विशेषज्ञों ने क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के लक्षणों की जांच उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली हाईटेक तकनीक पर मंथन किया।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 17 Feb 2020 12:39 PM (IST)
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विशेषज्ञों ने सीओपीडी के उपचार की आधुनिक तकनीक साझा की
देहरादून, जेएनएन। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों की संख्या उतराखंड में भी तेजी से बढ़ रही है। धूमपान व चूल्हा जलाने के दौरान निकलने वाला धुआं इसका बड़ा कारण है। रविवार को विशेषज्ञों ने इस बीमारी के लक्षणों की जांच, उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली हाईटेक तकनीक पर मंथन किया। एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज व श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित सेमीनार में उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि दवाओं के साथ ही नॉन फार्माकोलॉजिकल ट्रीटमेंट के द्वारा भी मरीजों का उपचार किया जा सकता है।

राजपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित सेमीनार की शुरुआत मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार मेहता, अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनय राय, मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. अमित वर्मा, डॉ. नितिन बंसल व डॉ. देव सिंह जंगपांगी ने दीप प्रच्वलित कर की। केजीएमसी लखनऊ के पल्मोनरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजीव गर्ग ने बताया कि देश-विदेश में सीओपीडी के उपचार व रोकथाम के लिए कई आधुनिक मेडिकल मॉडल इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

सीएमसी वेल्लोर के प्रोफेसर डॉ. प्रिंस जेम्स ने बताया कि बाजार में कई प्रभावी इनहेलर आ चुके हैं। इम्योनोथेरेपी के बारे में जानकारी देते बताया कि इसके माध्यम से अस्थमा रोग का स्थायी उपचार भी संभव है। मैट्रो अस्पताल नोएडा के डॉ. दीपक तलवार ने कहा कि दवाओं के साथ-साथ नॉन फार्माकोलॉजिकल ट्रीटमेंट भी सीओपीडी मरीज के उपचार में प्रभावी परिणाम लाते हैं। उन्होंने व्यायाम, श्वास की प्रक्रियाओं व शरीर में आक्सीजन की संतुलित मात्रा को बढ़ाने के कई उदाहरण प्रस्तुत किए।

पल्मोनरी रिहेबिलिटेशन पर जोर देते हुए उन्होंने बताया कि गंभीर व पुराने मरीजों पर इस तकनीक का सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष व आयोजक डॉ. जगदीश रावत ने उत्तराखंड में सीओपीडी मरीजों की बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर की। कहा कि सीओपीडी के मरीजों में यदि प्रारंभिक स्टेज पर ही रोग का पता चल जाता है तो मरीज को उपचार से ठीक किया जा सकता है। विलंब व लापरवाही पर स्थिति चिंताजनक बन जाती है।

मैक्स अस्पताल के डॉ. वैभव छाचरा ने दूरबीन विधि द्वारा उपचार व इस विधि की भूमिका पर चर्चा की। एसोसिएशन ऑफ  फिजीशियन ऑफ  इंडिया देहरादून चैप्टर के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम के सफल आयोजन पर डॉ. जगदीश रावत ने सचिव नितिन बंसल का आभार जताया। सेमीनार को सफल बनाने में डॉ. अनिल बंसल, डॉ. रितिशा भट्ट का विशेष सहयोग रहा।

तेजी से बढ़ रहे ब्रेस्‍ट कैंसर के प्रति किया सचेत

ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी में महिला स्वास्थ्य व सुरक्षा पर जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। ग्राफिक एरा विवि और बेयर प्रयास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला में बे्रस्ट कैंसर को लेकर महिलाओं को जागरूक किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बेयर कंपनी के एससीआर पंडित पुरंद्रे ने बताया कि कुछ साल पहले तक ब्रेस्ट कैंसर 40 की उम्र से ऊपर की महिलाओं में होता था, परन्तु अब इस बीमारी की दर तेजी से बढ़ती जा रही है।

उन्होंने बताया कि उद्योग व संस्थान के सहयोग से ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए कई निवारण ढूंढे जा सकते हैं। टोरल व मैक्सोफेशियल सर्जन डॉ. नेहा शर्मा ने बताया की दुनिया में हर साल 17 मिलियन महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर का शिकार हो रही हैं। डॉ. नेहा ने महिलाओं को टेक्टिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन की जानकारी दी और टैक्टोग्राफी के बारे में बताया। बेयर कंपनी की प्रोजक्ट हेड प्रिया ने बेयर फाउंडेशन द्वारा महिला सुरक्षा के लिए बनाई गई 'नो एप' की जानकारी दी। 

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ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. संजय जसोला ने कहा कि महिलाएं समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं। उनका कल्याण और उनका विकास समाज का दायित्व है। कार्यक्रम का संचालन विशाल जेसी ने किया और संयोजक धिनेश राज थे। ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी के प्रो. वाइस चांसलर प्रो. एचएन नागाराजा, विभागाध्यक्ष, शिक्षक और छात्र-छात्राएं कार्यक्रम में मौजूद रहे। 

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