Famous Temples In Tehri: यहां पर गिरा था देवी सती का सिर, मंदिर के दर्शन करने से पूरी होती है मनोरथ
Famous Temples In Tehri उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में स्थित है प्रसिद्ध सिद्धपीठ सुरकंडा। मान्यता है कि यहां देवी सती का सिर गिरा था। इसलिए इसको सुरकंडा के नाम से जाना जाता है। देहरादून से इसकी दूरी करीब 120 किमी है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 25 Jun 2022 05:20 PM (IST)
अनुराग उनियाल, नई टिहरी। सिद्धपीठ सुरकंडा मंदिर प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक है। यह मंदिर सुरकुट पर्वत पर स्थित है। इस कारण इसका नाम सुरकंडा पड़ा। यह सिद्धपीठ करीब 2,757 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति है।
बताया जाता है कि जब माता सती हरिद्वार के कनखल में पिता के यज्ञ में शामिल होने गई थी तो पिता ने सती के पति भगवान शिव को इस आयोजन में निमंत्रण नहीं दिया। पति के अपमान से निराश सती यज्ञ कुंड में कूद गई।
जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे। यहां से माता सती के शरीर को त्रिशूल में लेकर हिमालय की ओर निकल पड़े। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे उस स्थान को उस नाम से जाना गया।सिद्धपीठ में सती का सिर गिरा था। इसलिए इस सिद्धपीठ को सुरकंडा के नाम से जाना जाता है। यहां पर वर्ष भर में दूर-दराज क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। माता सुरकंडा मंदिर के पूजारी लेखवार जाति के होते हैं। यहां पर वर्षभर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं।
प्रसिद्ध कहानियांसुरकंडा का मायका जड़धार गांव में है। गांव में भी सुरकंडा की तर्ज पर मंदिर बनाया गया है। यह सिद्धपीठ सुरकुट पर्वत पर स्थित है। यहां प्रसाद के रूप में रौंसली को शुभ माना जाता है, जो यहां का स्थानीय पेड़ हैं।बताया जाता है कि काफी साल पहले पंजाब के एक कांग्रेस नेता के सपने में माता सुरकंडा आई थी। इसके बाद उन्होंने मंदिर का पता किया और तब से वह कई बार इस सिद्धपीठ में आए। मंदिर में पार्वती, शिव, हनुमान आदि की मूर्तियां हैं।
धार्मिक आयोजनसिद्धपीठ सुरकंडा में गंगा दशहरे पर भव्य मेले का आयोजन होता है। इस मेले में सुरकंडा के मायके जड़धार गांव से बड़ी संख्या में ग्रामीण डोल-नगाड़ों के साथ यहां पहुंचते हैं।इस अवसर पर बाहर से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। गंगा दशहरा पर यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है।ऐसे पहुंचे सुरकंडा मंदिरसुरकंडा मंदिर चंबा-मसूरी मार्ग पर स्थित है। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी की दूरी तय कर यहां पहुंचा जाता है, जबकि मसूरी से यहां तक पहुंचने के लिए करीब 35 किमी का सफर कर पहुंचा जा सकता है। देहरादून से इस सिद्धपीठ की दूरी करीब 120 किमी है।
रोपवे से पहुंचे मंदिर तकअभी तक कद्दूखाल से सुरकंडा मंदिर तक पहुंचने के लिए डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती थी। इसमें करीब डेढ़ से दो घंटे के वक्त लगता था। लेकिन कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर परिसर के लिए छह सौ मीटर का रोपवे तैयार किया गया है। छह टावरों के सहारे 16 ट्रालियों का संचालन हो रहा है। प्रत्येक ट्राली में चार यात्रियों के बैठने की अनुमित होगी। इसका संचालन सुबह नौ से शाम पांच बजे तक होता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।