Indian Cinema Day: मसूरी में बना था उत्तर भारत का पहला सिनेमाघर
उत्तर भारत का पहला सिनेमाघर भी मसूरी में ही अस्तित्व में आया था। अंग्रेजों ने वर्ष 1912 में यहां पहले सिनेमाघर पिक्चर पैलेस को बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Tue, 07 Jul 2020 10:16 AM (IST)
देहरादून, जेएनएन। पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजी हुकूमत के दौर की अनेक यादें बसी हुई हैं। मनोरंजन की बात करें तो उत्तर भारत का पहला सिनेमाघर भी मसूरी में ही अस्तित्व में आया था। शायद इस बात को कम ही लोग जानते होंगे कि अंग्रेजों ने वर्ष 1912 में यहां पहले सिनेमाघर 'पिक्चर पैलेस' को बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी। जस लिटिल नामक अंग्रेज ने वर्ष 1913 में इसका 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' नाम से निर्माण शुरू करवाया। वर्ष 1914 में यह बनकर तैयार हुआ और यहां पहली फिल्म 'द होली नाइट' प्रदर्शित हुई। खास बात यह कि उन दिनों फिल्म के पांचों शो शुरू होने से पहले लाइब्रेरी चौक पर अंग्रेज बैंड वादन किया करते थे। उस दौर में मनोरंजन का सबसे बेहतर माध्यम यही था। लेकिन, वर्ष 1990 तक टीवी, वीसीआर व केबल के घर-घर पहुंचने के बाद मसूरी में पिक्चर पैलेस समेत सभी छह सिनेमाघर बंद हो गए।
इलेक्ट्रिक उपकरणों से तैयार था पिक्चर पैलेस
ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम वर्ष 1911 में दिल्ली आए और वर्ष 2012 में इलेक्ट्रिक उपकरणों से तैयार पिक्चर पैलेस को इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस नाम दे दिया गया। ब्रांच ऑफिस कोलकाता के डिजाइन पर इसे तैयार किया गया था। तब इंग्लैंड में जो भी फिल्में आती, उन्हें उत्तर भारत के इस एकमात्र सिनेमाघर में भी प्रदर्शित किया जाता था।
सिनेमाघर का पुनर्निर्माण कर बनाया मनोरंजन गृह
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि वर्ष 1914 में शुरू हुआ द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस 1990 में बंद हो गया। 20 साल तक बंद रहने के बाद खंडहर हुए पिक्चर पैलेस को वर्ष 2010-11 में होटल व्यवसायियों ने नया रूप दिया। वर्तमान में यहां बच्चों के लिए डिजिटल मनोरंजन व कार्टून प्रसारित किए जाते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में बड़ी तादाद में बच्चे यहां आते हैं।
दिखाई जाने लगी हिंदी फिल्मेंवर्ष 1950 तक पिक्चर पैलेस में सिर्फ अंग्रेजी फिल्में ही दिखाई जाती थी। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि वर्ष 1950 में पहली हिंदी फिल्म 'तीसरी मंजिल' और वर्ष 1965 में तीन घंटे की फिल्म 'चित्रकला' यहां प्रदर्शित की गई। तब इस सिनेमाघर में कुल 250 सीटें थी, जिन्हें बाद में 350 कर दिया गया।
ढाई रुपये का होता था स्पेशल वीआइपी टिकटइतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि वर्ष 1948 से 1960 तक सिनेमा का सामान्य टिकट छह आना और स्पेशल वीआइपी टिकट ढाई रुपये में मिलता था। हाल के ऊपरी हिस्से वाले बॉक्स में अंग्रेज और ग्राउंड में भारतीय बैठकर फिल्में देखते थे। ब्रिटिश राजा के आने पर पिक्चर पैलेस में भारतीयों का प्रवेश निषेध था।यह भी पढ़ें: सुरंग बनना न टलता तो 1928 में मसूरी पहुंच जाती रेल, पढ़िए पूरी खबर
अन्य पांच सिनेमाघरों में भी रहती थी भीड़पिक्चर पैलेस के बाद पांच अन्य सिनेमाघर वसु, रैल्टो, बसंत, कैपिटल और जुबली मसूरी में स्थापित किए गए। तब इन सिनेमाघरों में काफी संख्या में भारतीय और अंग्रेज नई व पुरानी फिल्में साथ बैठकर देखा करते थे। स्थानीय लोगों की आबादी ज्यादा न होना भी अंग्रेजों के साथ फिल्म देखने का मुख्य कारण था। रैल्टो और पिक्चर पैलेस में सप्ताह में हर दिन पांच शो होते थे।
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