जज्बे और लगन के दम पर उत्तराखंड में पहली बार वन गुर्जर बना फारेस्ट गार्ड, पढ़िए पूरी खबर
जज्बे और लगन के दम पर उत्तराखंड के एक वन गुर्जर ने मिसाल कायम की है। वन विभाग के लिए दैनिक वेतनभोगी के रूप में कार्य करने के बाद अपनी काबिलियत के दम पर वन गुर्जर गुलाम रसूल आज फारेस्ट गार्ड बन गए हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 10 Jul 2021 12:16 PM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून। जज्बे और लगन के दम पर उत्तराखंड के एक वन गुर्जर ने मिसाल कायम की है। वन विभाग के लिए दैनिक वेतनभोगी के रूप में कार्य करने के बाद अपनी काबिलियत के दम पर वन गुर्जर गुलाम रसूल आज फारेस्ट गार्ड बन गए हैं। जंगलों में जीवन बिताने वाले वन गुर्जरों का मुख्यधारा में शामिल होना प्रेरणादायक है।
विपरीत परिस्थितियों और आर्थिक तंगी के बावजूद हरिद्वार निवासी वन गुर्जर गुलाम रसूल के हौसले कभी पस्त नहीं हुए। संयुक्त परिवार में अपने साथ अन्य की जिम्मेदारी निभाने का दबाव भले ही रहा हो, लेकिन गुलाम ने कड़ी मेहनत और लगन से हर कार्य कुशलता से किया। गुलाम रसूल के अनुसार, वह चार भाई हैं और अपनी मां के साथ हरिद्वार के पथरी क्षेत्र स्थित गुर्जर बस्ती में रहते हैं। उनके पिता नेक मोहम्मद राजाजी टाइगर रिजर्व में कांसरो रेंज स्थित विश्रम गृह में चौकीदार थे।इसी दौरान वर्ष 2010 में उन्होंने अधिकारियों से कहकर गुलाम रसूल को भी दैनिक वेतन पर विभाग में लगवा दिया। गुलाम तब रेलवे ट्रैक के पास रात में पैट्रोलिंग करते थे। 2017 में गुलाम के पिता का निधन हो गया। इसके चलते परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अन्य भाइयों के साथ गुलाम के कंधों पर भी आ गई। उनके पिता की जगह उन्हें वन विभाग ने चौकीदार के पद पर नियुक्त कर लिया। चौकीदार के रूप में भी गुलाम ने कर्तव्यनिष्ठा से कार्य किया, जिसका इनाम उन्हें अब पदोन्नति के रूप में मिला है। शुक्रवार को जारी हुई समूह घ से समूह ग के पदों पर पदोन्नति की सूची में गुलाम का भी नाम है।
गुलाम को वन विभाग ने उनकी काबिलियत के दम पर चौकीदार से फारेस्ट गार्ड बना दिया है। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि यह पहला मौका है, जब कोई वन गुर्जर फारेस्ट गार्ड बना है। इससे 34 वर्षीय गुलाम रसूल की पत्नी और चार बच्चे बेहद खुश हैं।राष्ट्रपति अवार्ड से भी किए गए थे सम्मानित
पूर्व में गुलाम रसूल वन विभाग के लिए पैट्रोलिंग करते थे। तब उनके पास रायवाला से डोईवाला के बीच अति संवेदनशील क्षेत्र में रात को ट्रेनों के संचालन के दौरान वन्यजीवों की निगरानी की जिम्मेदारी थी। गुलाम की मुस्तैदी और सतर्कता के चलते इस क्षेत्र में कोई हादसा नहीं हुआ। जिस पर वर्ष 2010 में उन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजा गया।
यह भी पढ़ें:-शिक्षा के साथ यहां छात्राओं में समाज सेवा का भी जुनून
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।