71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में आए दिन वन्यजीवों के हमले सुर्खियां बन रहे हैं। यद्यपि इसकी रोकथाम के लिए वन विभाग प्रयास कर रहा है लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इस सबको देखते हुए समस्या के समाधान के लिए अब तात्कालिक के साथ ही दीर्घकालिक उपायों पर भी आगे बढ़ा जा रहा है। दरअसल वन्यजीवन मुख्य रूप से तीन बिंदुओं...
केदार दत्त,
देहरादून। उत्तराखंड में निरंतर गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष से चिंतित सरकार ने इस समस्या के समाधान की दिशा में दीर्घकालीन योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है। इस कड़ी में राज्य के दोनों टाइगर रिजर्व कार्बेट व राजाजी समेत 24 वन प्रभागों के लिए 10 वर्षीय कार्ययोजना तैयार की गई है। इसे नाम दिया गया है एफएलआर (फारेस्ट लैंडस्केप रेस्टोरेशन)।
इसके तहत इन प्रभागों के लगभग 20 हजार हेक्टेयर में वन्यजीवों के प्राकृतवास स्थल विकास, जल प्रबंधन, सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन, वन सीमा पर फेंसिंग जैसे कदम उठाए जाएंगे, ताकि वन्यजीव जंगल की देहरी पार न करें। कैंपा (कंपनेसेटरी एफारेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथारिटी) की मदद से चलने वाली इस योजना में जरूरत पड़ने पर फारेस्ट लैंडस्केप का विस्तार भी किया जाएगा।
71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में आए दिन वन्यजीवों के हमले सुर्खियां बन रहे हैं। यद्यपि, इसकी रोकथाम के लिए वन विभाग प्रयास कर रहा है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। इस सबको देखते हुए समस्या के समाधान के लिए अब तात्कालिक के साथ ही दीर्घकालिक उपायों पर भी आगे बढ़ा जा रहा है।
दरअसल, वन्यजीवन मुख्य रूप से तीन बिंदुओं भोजन, वासस्थल और पानी की व्यवस्था पर केंद्रित है। यदि जंगल में इन तीनों का उचित इंतजाम होगा तो वन्यजीव अपनी हद पार नहीं करेंगे। इसी को केंद्र में रखकर एफएलआर का खाका खींचा गया है।
एफएलआर के तहत उन क्षेत्रों में वन्यजीव प्रबंधन के लिए कदम उठाए जाएंगे, जो मानव-वन्यजीव संघर्ष की दृष्टि से संवेदनशील के रूप में चिह्नित किए गए हैं। इसमें अभी तक राज्य के दोनों टाइगर रिजर्व समेत 24 वन प्रभागों का लगभग 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र शामिल किया गया है। इनमें होने वाले कार्यों के लिए वित्त पोषण कैंपा से होना है।
क्षेत्र चिह्नित होने के बाद अब वहां वन्यजीवों के प्राकृतवास स्थल में सुधार को कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए जंगल पनपाने को सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन, जल प्रबंधन, वन सीमा पर फैंसिंग, संबंधित क्षेत्रों में क्विक रिस्पांस स्क्वाड का गठन जैसे कार्य समन्वित रूप से किए जाएंगे।
एफएलआर के लिए चयनित प्रभाग
कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व, सिविल सोयम अल्मोड़ा, वन प्रभाग अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर, नैनीताल, तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर, उत्तरकाशी, नरेंद्र नगर, टिहरी, गढ़वाल, रुदप्रयाग, लैंसडौन, हरिद्वार, देहरादून, मसूरी, केदारनाथ व कालागढ़।
उत्तराखंड कैंपा प्रमुख वन संरक्षक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी जीएस पांडेय के अनुसार, जिन क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष अधिक है, उन्हें चिह्नित किया जा चुका है और इन्हीं के लिए एफएलआर की 10 वर्षीय कार्ययोजना बनाई गई है। इसे धरातल पर मूर्त रूप दिया जा रहा है। कैंपा के वित्त पोषण से एफएलआर के तहत प्राकृतवास प्रबंधन, जल प्रबंधन जैसे तमाम कार्य होंगे।
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