उत्तराखंड में जबरन धर्म परिवर्तन अब गैर जमानती अपराध
राज्य में अब जबरन, प्रलोभन, जानबूझकर विवाह या गुप्त एजेंडे के जरिये धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध होगा। मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 15 Mar 2018 11:31 AM (IST)
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: राज्य में अब जबरन, प्रलोभन, जानबूझकर विवाह या गुप्त एजेंडे के जरिये धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध होगा। त्रिवेंद्र रावत मंत्रिमंडल ने सोमवार को उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक के मसौदे को मंजूरी दी। बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने के मामले में पकड़े जाने पर एक वर्ष से लेकर पांच वर्ष तक जेल भेजा जा सकेगा। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के मामले में न्यूनतम दो वर्ष की जेल व जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है।
धर्म परिवर्तन कानून का उल्लंघन होने पर धर्म परिवर्तन को अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। यही नहीं, धर्म परिवर्तन के लिए एक महीने पहले जिला प्रशासन को सूचित करना होगा। विधानसभा में सोमवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में लगभग चार घंटे चली मंत्रिमंडल की बैठक में 45 बिंदुओं पर चर्चा हुई। विधानसभा सत्र की अधिसूचना जारी होने के चलते बैठक में लिए गए फैसलों को ब्रीफ नहीं किया गया। सूत्रों के मुताबिक मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड में धर्म परिवर्तन की शिकायतों पर गंभीर रुख अपनाते हुए धर्म स्वतंत्रता विधेयक के मसौदे पर मुहर लगा दी। इसमें धोखे से धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित किया गया है। ऐसे मामलों में मां-बाप या भाई-बहन की ओर से मुकदमा दर्ज कराया जा सकेगा। खासतौर पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन के अंदेशे को देखते हुए करीब दोगुनी सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
यदि धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से विवाह किया गया तो उस धर्म परिवर्तन को अमान्य घोषित किया जाएगा। धर्म परिवर्तन के लिए जिला मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक माह पहले शपथपत्र देना होगा। धर्म परिवर्तन के लिए समारोह की भी पूर्व सूचना देनी होगी। सूचना नहीं देने की स्थिति में इसे अमान्य करार दिया जाएगा। धर्म स्वतंत्रता कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में तीन माह से एक वर्ष की सजा होगी। अनुसूचित जाति-जनजाति के मामले में यह छह माह से दो वर्ष होगी। मंत्रिमंडल ने अहम फैसला लेते हुए दैनिक वेतनभोगी, कार्यप्रभारित, अंशकालिक, संविदा व तदर्थ समेत अस्थायी व्यवस्था पर कार्यरत कार्मिकों को पेंशन नहीं देने के लिए विधेयक को मंजूरी दी। इस कदम से 1.45 लाख अस्थायी कार्यरत कार्मिकों को झटका लगने जा रहा है। इन कार्मिकों को पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन देने के मामले में राहत देते हुए सरकार को निर्देश दिए थे।
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