उत्तराखंड में महफूज रहेंगी घास की 185 प्रजातियां, जानिए कैसे
उत्तराखंड वन महकमे ने बड़ी पहल की है। इसके तहत राज्य में मिलने वाली घास की 185 प्रजातियों का संरक्षण किया जाना है।
By Edited By: Updated: Mon, 29 Apr 2019 08:18 PM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। पारिस्थितिकी के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाली घास प्रजातियों को महफूज रखने की दिशा में उत्तराखंड वन महकमे ने पहली बार बड़ी पहल की है। इसके तहत राज्य में मिलने वाली घास की 185 प्रजातियों का संरक्षण किया जाना है, ताकि ये भविष्य के लिए सुरक्षित रह सकें। इस कड़ी में महकमे की अनुसंधान शाखा ने रानीखेत के द्वारसौं पौधालय में प्रथम चरण में घास की 25 प्रजातियों का रोपण किया है, जो वहां ठीक से फलीभूत हुई हैं। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी बताते कि इनमें उच्च हिमालय से लेकर तराई के मैदानी क्षेत्र तक पाई जाने वाली घास प्रजातियां शामिल हैं। धीरे-धीरे इस मुहिम को प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी फैलाया जाएगा।
जैव विविधता के लिए मशहूर 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन महकमा पेड़-पौधों के साथ ही झाड़ी प्रजातियों के संरक्षण को तो कदम उठाता आया है, मगर पहली मर्तबा उसका ध्यान घास प्रजातियों के संरक्षण की तरफ गया। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के अनुसार घास को अभी तक उपेक्षित समझा गया था, जबकि पारिस्थितिकी के संरक्षण में इसकी सबसे अहम भूमिका है। घास का संबंध मनुष्य के संस्कारों से लेकर पर्यावरण के संरक्षण एवं संतुलन के साथ ही भूमि व मिट्टी को क्षरण से बचाने और भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने तक है।
आइएफएस चतुर्वेदी बताते हैं कि देशभर में घास की 1235 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 185 उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक मिलती हैं। इनमें कई ऐसी भी हैं, जो विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। उन्होंने बताया कि इस सबको देखते हुए घास की प्रजातियों के संरक्षण का निर्णय लिया गया।
जायका परियोजना से इसे संबल मिला और प्रथम चरण में अनुसंधान शाखा के रानीखेत स्थित द्वारसौं पौधालय में पिछले वर्ष जुलाई में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से घास की 25 प्रजातियां लाकर रोपी गई। जिसके उत्साहनजक परिणाम सामने आए और सभी प्रजातियां बेहतर ढंग से उगी हैं। इस वर्ष द्वारसौं में अन्य प्रजातियों के रोपण के साथ ही धीरे-धीरे राज्य के अन्य हिस्सों में भी घास की प्रजातियों का संरक्षण किया जाएगा। कोशिश ये है कि यहां पाई जाने वाली घास की सभी प्रजातियां सुरक्षित रहें, ताकि भविष्य में ये किसी क्षेत्र से विलुप्त भी हो गई तो इन्हें फिर से वहां लौटाया जा सके।
द्वारसौं में रोपी गई प्रजातियां
लव, कुश, किकुई, नैपियर, बाबिला, गिन्नी, दोलनी, गुच्छी, सीता, औंस, कांस, कुमरिया, दूब (दुर्बा), लेमन, बिच्छू, नलिका, गोड़िया, राई, जूम, चित्रा, झिंगोरा, जंगली कोंदो, मसाण, जैई और गुइना।
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