जंगल की बात : जंगलों में अब बरकरार रहेगी नमी, जल संरक्षण में सहायक पौधों को देंगे तवज्जो
आग के कारणों को लेकर हुई पड़ताल में बात सामने कि जंगलों में नमी कम होना इसकी बड़ी वजह है। इसे देखते हुए वन विभाग ने वर्षाकालीन पौधरोपण में ऐसी प्रजातियों को तवज्जो देने का निश्चय किया है जो जल संरक्षण में सहायक हों।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 29 May 2021 08:28 AM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। परिस्थितियां कैसी भी हों, वे कुछ न कुछ सबक जरूर देती हैं। अब जैव विविधता के मामले में धनी उत्तराखंड को ले लीजिए। गत वर्ष अक्टूबर से जंगलों में लगी आग से वन संपदा को भारी नुकसान पहुंचा है। हालिया दिनों में बारिश के बाद आग बुझ चुकी है, लेकिन वन विभाग ने इससे सबक लिया है। आग के कारणों को लेकर हुई पड़ताल में बात सामने कि जंगलों में नमी कम होना इसकी बड़ी वजह है। इसे देखते हुए वन विभाग ने वर्षाकालीन पौधरोपण में ऐसी प्रजातियों को तवज्जो देने का निश्चय किया है, जो जल संरक्षण में सहायक हों। इसमें बांज, बुरांस, अतीस, मोरू, खिर्सू, फलिहाट, बांस, रिंगाल जैसी प्रजातियों पर फोकस रहेगा। इसके अलावा जंगलों में बारिश की बूंदें सहेजने को खाल-चाल, ट्रेंच, चेकडैम जैसे कदम भी उठाए जाएंगे। उन उपायों से जंगलों में नमी बरकरार रहेगी। जरूरत इसे गंभीरता से धरातल पर आकार देने की है।
फूलों की घाटी में हिम तेंदुएसीमांत चमोली जिले में समुद्रतल से करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान से एक अच्छी खबर आई है। गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र के अन्य संरक्षित इलाकों की भांति फूलों की घाटी में भी हिम तेंदुओं (स्नो लेपर्ड) की मौजूदगी का पुख्ता प्रमाण सामने आया है। यहां कैमरा ट्रैप में हिम तेंदुए की तस्वीर कैद हुई है। यह इस बात का द्योतक भी है कि 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस घाटी की जैव विविधता बेहद मजबूत है। फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में यूनेस्को ने विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित किया था। सितंबर के आसपास घाटी में 550 से अधिक प्रजातियों के फूल खिलते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज यह घाटी औषधीय वनस्पतियों और दुर्लभ वन्यजीवों का घर भी है। जाहिर है कि घाटी के संरक्षण के मद्देनजर विभाग की जिम्मेदारी अब और ज्यादा बढ़ गई है।
सुंदर वन में सार्थक पहलप्रकृति और पर्यावरण के सजग प्रहरी प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन देहरादून के शुक्लापुर स्थित सुंदर वन के पेड़-पौधों में वह जीवित रहेंगे। उनके विचार और यादों को संजोने के लिए हेस्को के संस्थापक पद्मभूषण डा अनिल जोशी ने पांच हेक्टेयर क्षेत्र में फैले सुंदर वन को बहुगुणा की अस्थियों से सींचा है। जाहिर है कि इससे सुंदर वन का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस सार्थक पहल से अब सुंदर वन में जाने वाला हर शख्स पर्यावरणविद् बहुगुणा से जुड़ाव तो महसूस करेगा ही, प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण की सीख लेकर भी जाएगा। वर्तमान में सबसे बड़ी जरूरत पर्यावरण को महफूज रखने की है। इसके लिए वनों का संरक्षण आवश्यक है, जिसकी सीख पर्यावरणविद् बहुगुणा ने दी। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश सरकार भी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के दृष्टिगत पर्यावरणविद् बहुगुणा के नाम से कोई ठोस पहल अवश्य करेगी।
वन्यजीव सुरक्षा को ठोस पहल जरूरीछह राष्ट्रीय उद्यान, सात अभयारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व के माध्यम से उत्तराखंड वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यहां बाघ, हाथियों का लगातार बढ़ता कुनबा इसकी तस्दीक करता है। बावजूद इसके, उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों में पल रहे वन्यजीवों पर शिकारियों व तस्करों की गिद्धदृष्टि भी गड़ी है। पूर्व में हुई शिकारियों व तस्करों की गिरफ्तारी के दौरान पूछताछ में यह बात उजागर हो चुकी है। हालांकि, अब सुरक्षा के लिहाज से कई कदम जरूर उठाए गए हैं, मगर इससे संतुष्ट होने की आवश्यकता नहीं है। कहने का आशय ये कि बदली परिस्थितियों में वन महकमे को नई रणनीति के साथ मैदान में उतरना होगा। वैसे भी वन्यजीव सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील वक्त यानी मानसून सीजन सिर पर है। ऐसे में आने वाली चुनौतियों से निबटने के लिए समय रहते कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही सिस्टम को भी चौकन्ना रहना होगा।
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