Move to Jagran APP

उत्तराखंड में धधक रहे हैं जंगल, बेबस है वन महकमा

उत्तराखंड में वनों की आग धीरे-धीरे भयावह रूप धारण करती जा रही है। ये अब घरों के नजदीक तक आने लगी है। फिर चाहे वह पौड़ी जिले के लैंसडौन क्षेत्र का पुंडेरगांव हो अथवा चमोली के विभिन्न गांव तस्वीर सब जगह एक जैसी है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 26 Mar 2021 09:33 PM (IST)
Hero Image
उत्तराखंड में वनों की आग धीरे-धीरे भयावह रूप धारण करती जा रही है।
केदार दत्त, देहरादून। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों की आग धीरे-धीरे भयावह रूप धारण करती जा रही है। ये अब घरों के नजदीक तक आने लगी है। फिर चाहे वह पौड़ी जिले के लैंसडौन क्षेत्र का पुंडेरगांव हो अथवा चमोली के विभिन्न गांव, तस्वीर सब जगह एक जैसी है। जंगलों की सीमा से सटे गांवों के निवासी वनों को बचाने को भरसक यत्न कर रहे हैं। बावजूद इसके चिंता भी कम होने का नाम ले रही। जंगल लगातार सुलग रहे हैं और वन महकमा बेबस है। यह ठीक है कि पहाड़ का भूगोल ऐसा है कि आग पर नियंत्रण किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। वनकर्मी भी मुस्तैद हैं और वे ग्रामीणों के सहयोग से जंगल बचाने में जुटे हुए हैं। बावजूद इसके मौसम के मिजाज के हिसाब से रणनीतिक कमी भी झलक रही है। सूरतेहाल, जल्द बारिश न हुई तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

प्लांटेशन राख, दरख्त भी जख्मी

फिजां में भले ही फाग के रंग घुले हों, मगर आग की गिरफ्त में आए जंगल बेहाल हैं। आग से नए पौधे तिल-तिल कर दम तोड़ रहे तो दरख्त भी लगातार जख्मी हो रहे हैं। उत्तराखंड के जंगलों का यह परिदृश्य हर किसी को कचोट रहा हैं। बीते छह माह के दौरान ही वनों की आग ने लगभग 41 हेक्टेयर प्लांटेशन को तबाह कर दिया, जहां पिछले तीन-चार वर्षों में हजारों की संख्या में विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपे गए थे। विभागीय आंकड़े बताते हैं कि इन क्षेत्रों में खड़े 25 हजार से अधिक पौधे पेड़ बनने से पहले ही मर गए। यही नहीं, 8950 बड़े पेड़ों को क्षति पहुंची है। मौसम के साथ न देने के कारण वर्तमान में भी वनों के धधकने का क्रम बदस्तूर जारी है। ऐसे में आने वाले दिनों में जंगलों को ज्यादा हानि हो सकती है। यह चिंता हर किसी को सता रही है।

झांपा ही है कारगर हथियार

दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, मगर उत्तराखंड में वनों में आग पर काबू पाने के लिए आज भी झांपा ही कारगर हथियार है। झांपा यानी, पेड़ों की पत्तियोंयुक्त टहनियों को तोड़कर बनाया जाने वाला झाड़ू। विषम भूगोल के कारण आग बुझाने में सहायक भारी उपकरणों को लाने-ले जाने में आने वाली दिक्कतों के मद्देनजर झांपे से ही आग बुझाई जाती है। ठीक है कि यह परंपरागत तरीका कारगर है, मगर वन महकमे ने इससे आगे बढ़ने की दिशा में अब तक कारगर कदम उठाए हों, ऐसा नजर नहीं आता। हालांकि, मैदानी क्षेत्रों के जंगलों के लिहाज से विभिन्न उपकरण विभाग के पास उपलब्ध हैं, मगर पहाड़ की परिस्थितियों के अनुरूप हल्के उपकरणों को लेकर उदासीनता का आलम है। ये बात अलग है कि पूर्व में आग बुझाने के लिए हल्के उपकरणों को लेकर चर्चा जरूर हुई, मगर अब इस कड़ी में अब गंभीरता से कदम उठाने की दरकार है।

नमी बरकरार रखने की चुनौती

जंगलों में आग की बड़ी वजह वन क्षेत्रों में नमी कम होना है। इस मर्तबा सर्दियों से जंगलों के सुलगने का क्रम शुरू होने पर वन महकमे ने प्रारंभिक पड़ताल कराई तो उसमें भी यह बात सामने आई। यही नहीं, वर्ष 2016 में करीब 4500 हेक्टेयर जंगल तबाह हो गया था। तब संसदीय कमेटी ने इसके कारणों की पड़ताल की तो तब यही सुझाव दिया गया था कि जंगलों में नमी बरकरार रखने पर खास फोकस किया जाए। इस बार भी भूमि में नमी के अभाव के कारण जंगलों में आग फैल रही है। वजह ये कि पिछले छह माह से बारिश बेहद कम है। ऐसे में जंगलों में बारिश की बूंदों को गंभीरता से कदम उठाने की जरूरत है। इससे जहां जंगलों में नमी बरकरार रहेगी, वहीं जलस्रोत रीचार्ज होंगे। इस मुहिम पर पूरी गंभीरता से धरातल पर उतारने की जरूरत है। आखिर, सवाल वनों को बचाने का है।

यह भी पढ़ें-मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत बोले-जंगल की आग को रोकने को युद्धस्तर पर की जाए तैयारी

Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।