Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में जंगल की आग भी बड़ी चुनौती, पिछले 12 वर्षों में हुई इतनी घटनाएं

Uttarakhand Forest fire उत्‍तराखंड में जंगल की आग भी बड़ी चुनौती हैं। अगर पिछले 12 वर्षों की बात करें तो राज्‍य में जंगल की आग की 13 हजार से ज्‍यादा घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन आग बुझाने के लिए अभी आधुनिक तकनीक का प्रयोग दूर की बात है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Wed, 02 Mar 2022 10:48 AM (IST)
Hero Image
वनों में लगने वाली आग को रोकने के लिए ठोस रणनीति बनाने की है जरूरत। फाइल
देहरादून, कुशल कोठियाल। पेड़-पौधे और वन्य जीव अगर वोटर होते तो राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में उत्तराखंड में हर साल धधकने वाली वनाग्नि की समस्या के समाधान के लिए जरूर कोई न कोई वादा होता। वनों में लगने वाली आग को रोकने की रणनीति या कार्यक्रम सीधे-सीधे मतदाताओं को नहीं रिझाते, इसलिए राजनीतिक दलों का ध्यान फायर सीजन में ही चुनाव होने के बावजूद इस पर नहीं गया। 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले प्रदेश के राजनीतिक दल चुनाव में व्यस्त हैं और जिम्मेदार विभाग गरजते-बरसते मौसम के भक्त हुए जा रहे हैं। इस वर्ष जनवरी-फरवरी माह में उत्तराखंड में करीब 50 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। ऊंची चोटियों पर बर्फ जमी है, पहाड़ों की जमीन में नमी समाई है और चाल-खाल में भी आगे तक पानी रहने वाला है।

राज्य में हर साल औसतन 1,978 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से सुलगता है। इससे वनस्पति एवं जैविक संपदा का नुकसान तो होता ही है, हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरण भी बुरी तरह प्रभावित होता है। पिछले 12 वर्षों में उत्तराखंड के जंगलों में आग की 13,574 घटनाएं हुई हैं, फिर भी आग बुझाने की विभागीय तकनीकी पारंपरिक ही है। पिछले तीन-चार वर्षों से वनाग्नि की सूचना प्रसार के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाने लगा है। आवश्यकता तो नई तकनीकी के इस्तेमाल के साथ जवाबदेह व्यवस्था विकसित करने की है। इसी कमी के कारण घटिया इरादों के लिए जंगलों में आग लगाने वालों को दंडित किए जाने के उदाहरण कम मिलते हैं और वन अपराधी निडर हो कर यह सब करते रहते हैं।

यह यहां की प्रकृति की देन है कि जंगलों में लगने वाली आग सतह पर ही फैलती है जिससे पेड़ों को कम नुकसान होता है, लेकिन छोटे पौधों एवं बहुमूल्य वनस्पतियों को इससे काफी हानि होती है। यह जंगलों में पनपने वाली जैवविविधता के लिए भी बड़ा खतरा है। जंगल में आग के दो कारण हैं। पहला मानवजनित है तो दूसरा प्राकृतिक। मानवजनित कारण भी दो तरह के हैं। छोटी-छोटी लापरवाही वन संपदा के लिए घातक हो जाती है। बीड़ी-सिगरेट या घरों के आस-पास झाड़ियों में लगाई गई आग को बहुत सामान्य तौर पर लेते हैं और यही आग अक्सर पूरे जंगल को सुलगा देती है। मानवजनित कारणों में कुछ असामाजिक तत्व अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिए इरादतन आग लगा देते हैं। कभी जंगली जानवरों के शिकार के लिए तो कभी आग के बाद उगने वाली हरी-घनी घास के लिए यह खतरनाक खेल खेलते हैं। कई बार वन विभाग के ही काले भेड़िये अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने के लिए भी रक्षक से भक्षक बन जाते हैं। इस आग से हवाई पौधारोपण एवं अवैध कटान पर भी पर्दा पड़ जाता है। यह स्पष्ट है कि वनों की आग का मुख्य कारण मानव ही है।

कुछ मामलों में प्राकृतिक रूप से भी जंगलों में आग लग जाती है। जानवरों की आवाजाही से ऊंचे पहाड़ों से पत्थर लुढ़कते हैं, जो कई बार टकराहट में चिंगारी छोड़ जाते हैं। यह चिंगारी जब सूखी घास एवं पत्तियों के संपर्क में आती है तो जंगल में आग की घातक कहानी लिख जाती है। जंगलों की आग के लिए काफी हद तक चीड़ के पेड़ भी जिम्मेदार हैं। इनकी सूखी पत्तियां गर्मियों में जंगलों में आग फैलाने में पेट्रोल सरीखा काम करती हैं। साथ ही ये बारिश के पानी को जमीन में रिसने से रोकती हैं। चीड़ के जंगलों में कोई और पौध नहीं पनप सकती है। चीड़ की यह असहिष्णुता एवं विस्तारवादी प्रवृत्ति उत्तराखंड के वनों के लिए बड़ी चुनौती है। चीड़ के जंगलों को सुनियोजित तरीके से उपयोगी पेड़ों के जंगल में परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता है, पर हो इसके उलटा रहा है। चीड़ के जंगल लगातार विस्तार पा रहे हैं। जिन क्षेत्रों में चीड़ दिखाई नहीं देता था, ये आज वहां तक विस्तार पा चुके हैं।

जंगल की आग पर काबू पाने के तौर-तरीकों में नई तकनीकी का प्रयोग जिस गति से होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा है। ड्रोन का प्रयोग केवल सूचना के त्वरित प्रसार तक ही सीमित है। लीफ ब्लोअर (सूखे पत्रों को हवा से साफ करने वाली मशीन) का उपयोग अभी तक आम नहीं हो पाया है। कृत्रिम बारिश अभी तक सोच के स्तर तक ही है। कुल मिलाकर अंग्रेजों के जमाने से अब तक अगर आग बुझाने का कोई कारगर उपाय दिखता है तो वह है झांपा। झांपा पेड़ों के हरे पत्‍तों से युक्त टहनियों से बनाया गया बड़ा झाड़ू ही होता है, जिससे दूर से ही खड़े होकर आग बुझाई जाती है।

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।