उत्तराखंड में वनस्पति विज्ञानी जानेंगे शैवाल का हाल, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में समृद्ध जैव विविधता में शैवाल की 300 प्रजातियों की अहम भूमिका है। प्राणवायु का 70 फीसद उत्पादन करने वाली शैवाल की कई प्रजातियां अब भी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं। ऐसे में वन अनुसंधान केंद्र उत्तराखंड में शैवाल प्रजातियों पर एक शोध कर रहा है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 06 Nov 2020 08:34 AM (IST)
देहरादून, विजय जोशी। उत्तराखंड में समृद्ध जैव विविधता में शैवाल की 300 प्रजातियों की अहम भूमिका है। प्राणवायु का 70 फीसद उत्पादन करने वाली शैवाल की कई प्रजातियां अब भी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं। ऐसे में वन अनुसंधान केंद्र की ओर से उत्तराखंड में शैवाल प्रजातियों पर एक शोध किया जा रहा है। इस शोध में चिह्नित प्रजातियों के अलावा शैवाल की अज्ञात प्रजातियों को भी तलाशा जाएगा। यही नहीं प्रदेश में मौजूद शैवाल प्रजातियों के वितरण और संरक्षण पर भी अध्ययन किया जाएगा।
वन अनुसंधान केंद्र के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि छह साल के अध्ययन के दौरान शैवाल के आर्थिक महत्व को भी रेखांकित किया जाएगा। वन अनुसंधान केंद्र के विज्ञानी शैवाल के समृद्ध परिवेश वाले क्षेत्रों में पर्यटन की संभावना भी तलाशेंगे।योजना का उद्देश्य
- उत्तराखंड में शैवाल की प्रजातियों का एक प्रमाणिक रिकॉर्ड तैयार करने के लिए।
- शैवाल की पारिस्थितिकी भूमिका और औषधीय मूल्य का अध्ययन करने के लिए।
- भविष्य की नीतियों के लिए शैवाल के संरक्षण की रणनीति तैयार करना।
- स्थानीय आबादी के लिए उपयोगी और आॢथक रूप से मूल्यवान शैवाल प्रजातियों का पता लगाने के लिए।
- स्थानीय शैवाल प्रजातियां और ऐसी प्रजातियों व उत्पादों का प्रचार जो जैव उर्वरक हों।
- अन्य प्रजातियों के साथ शैवाल की जैविक संलग्नता का अध्ययन।
- पर्यटन के अवसर तलाशना।
- शैवाल पर ग्लोबल वाॄमग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन।
गोपेश्वर और श्यामपुर रेंज में हो रहा शोध
शैवाल की प्रजातियों पर शोध के लिए दो क्षेत्र चुने गए हैं। हाई एल्टीट्यूड में गोपेश्वर रेंज में 0.25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में पाई जाने वाली प्रजातियों पर शोध होगा। जबकि, श्यामपुर के लो एल्टीट्यूड में 0.25 हेक्टेयर क्षेत्रफल चुना गया है। यह शोध कार्य 2020 में शुरू होकर 2026 में छह वर्ष की अवधि में पूर्ण किया जाएगा।
70 फीसद ऑक्सीजन का उत्पादन शैवाल सेशैवाल प्रकाश संश्लेषक यूकेरियोटिक जीवों और प्रोकैरियोटिक सियानोबैक्टीरिया के एक बड़े, विविध समूह को कहा जाता है। शैवाल प्रोटिस्टा के मुख्य रूप से जलीय प्रकाश संश्लेषक जीवों के एक समूह के सदस्य हैं। शैवाल में पौधों के विशेष बहुकोशिकीय प्रजनन संरचनाओं का अभाव होता है, इनमें उपजाऊ गैमीट-उत्पादक कोशिकाएं होती हैं। सांस लेने वाली कुल वायु का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन शैवाल ही करते हैं। उनके विशाल पारिस्थितिक महत्व के अलावा, शैवाल के महत्वपूर्ण व्यावसायिक और आॢथक उपयोग हैं।
उत्तराखंड में पाए जाने वाली प्रजातियांउत्तराखंड में शैवाल की 300 से अधिक प्रजातियां पाए जाने अनुमान है। जो मुख्यत: स्पाइरोगाइरा, क्लोरेला, कारा, क्लेडोफोरा, ओसीलेटोरिया, नोस्टॉक और बैट्रेकोस्पर्मम फैमिली से हैं।यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में खेती-बागवानी में आएगा आमूलचूल बदलाव, किसानों को मिलेंगे उन्नत किस्म के बीज व फल पौध
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