कोरोना जांच फर्जीवाड़ा : शुरुआत में ही थे गड़बड़ी के संकेत, पर नहीं ली गई सुध
अप्रैल में प्रदेशभर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे थे। मैदान से लेकर पहाड़ तक स्थिति बिगड़ रही थी मगर हरिद्वार जहां महाकुंभ में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आए और हर दिन हजारों की संख्या में कोरोना जांच की गई यहां संक्रमण दर बेहद कम थी।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Thu, 17 Jun 2021 08:45 AM (IST)
जागरण संवाददाता, देहरादून। कोरोना की दूसरी लहर ने अप्रैल में उत्तराखंड में दस्तक दी। यही वह वक्त था, जब प्रदेशभर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे थे। मैदान से लेकर पहाड़ तक स्थिति बिगड़ रही थी, मगर हरिद्वार, जहां महाकुंभ में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आए और हर दिन हजारों की संख्या में कोरोना जांच की गई, यहां संक्रमण दर बेहद कम थी। यह आंकड़े खुद में चौंकाने वाले थे। पर ताज्जुब इस बात का है कि जिसे विशेषज्ञ अप्रत्याशित बता रहे थे, विभागीय अफसर उस पर आंख मूंदे रहे। अब फर्जीवाड़ा सामने आने पर जांच की जा रही है।
हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन एक से तीस अप्रैल तक किया गया। कोरोना महामारी को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने यहां रोजाना 50 हजार जांच करने का आदेश दिया। ऐसे में इस दौरान सर्वाधिक जांच हरिद्वार में ही की गईं। अहम बात ये है कि जांच के नतीजे शुरुआती चरण से ही संदेह के दायरे में रहे। कारण ये कि दरअसल, हरिद्वार में संक्रमण दर अन्य जनपदों की तुलना में बेहद कम थी। यह मामला मीडिया में आया और सामाजिक संस्था सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज फाउंडेशन ने इसका सोशल आडिट कराने की मांग भी की, लेकिन मेला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि एक से तीस अप्रैल के बीच उत्तराखंड में कुल कोरोना जांच में 58 फीसद हरिद्वार जनपद में की गईं। इस बीच हरिद्वार में संक्रमण दर उत्तराखंड से 80 फीसद कम रही। महाकुंभ मेला क्षेत्र हरिद्वार जिले के अलावा ऋषिकेश तक भी फैला था। जिसमें देहरादून जिले का ऋषिकेश व टिहरी का मुनिकीरेती और पौड़ी का स्वर्गाश्रम भी शामिल है। पर कुंभ क्षेत्र का कोई अलग डाटा स्वास्थ्य विभाग ने जारी ही नहीं किया है। इस तरह कुंभ मेला क्षेत्र की पूरी तस्वीर कभी भी उपलब्ध नहीं हो पाई है।
गड़बड़ी का था स्पष्ट संकेत, फिर भी लापरवाहीराज्य में कोरोना के आंकड़ों का अध्ययन कर रही संस्था सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है कि शुरुआती घंटे के रुझान अक्सर अंतिम परिणाम का संकेत दे देते हैं। ठीक इसी तरह महाकुंभ के शुरुआती दिनों में स्पष्ट हो गया था कि कोरोना जांच के नाम पर कुछ गलत हो रहा है। हालांकि, जिम्मेदार अधिकारियों ने इसे महसूस किया और न ही कोई कार्रवाई की। जबकि राज्य सरकार के पास डाटा विश्लेषण तंत्र मौजूद था। यदि हम इसका लाभ उठाते तो शुरुआत में ही गड़बड़ी को टाला जा सकता था। उन्होंने बताया कि एक अप्रैल को हरिद्वार की संक्रमण दर उत्तराखंड के अन्य जिलों की तुलना में 75 फीसद कम थी। दो अप्रैल को यह अंतर 20 फीसद था। चार अप्रैल को भी हरिद्वार में संक्रमण अन्य जिलों की तुलना में 85 फीसद कम था। इतने स्पष्ट संकेत के बाद भी यदि किसी ने जांच करने की जहमत नहीं उठाई, तो यह सिस्टम पर बड़ा सवाल है।
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