यहां आखिर कब लौटेगी फ्योंली की मुस्कान, बुरांस पर भी मंडरा रहे खतरे के बादल; जानिए
उत्तराखंड के लोकजीवन में गहरे तक रची-बसी फ्योंली इठला तो रही मगर पहले जैसी बात नजर नहीं आ रही। वसंत के आगमन पर जंगलों चट्टानों और खेतों की मुंडेर पर फ्योंली के खिलने वाले पीले फूल ऋतुराज के स्वागत में बिछे दिखते थे।
By Raksha PanthriEdited By: Updated: Sat, 20 Mar 2021 09:20 AM (IST)
केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड के लोकजीवन में गहरे तक रची-बसी फ्योंली इठला तो रही, मगर पहले जैसी बात नजर नहीं आ रही। वसंत के आगमन पर जंगलों, चट्टानों और खेतों की मुंडेर पर फ्योंली के खिलने वाले पीले फूल ऋतुराज के स्वागत में बिछे दिखते थे। साथ ही चट्टानों पर भी खिलने वाले फ्योंली के फूल हर परिस्थिति में मुस्कुराने का संदेश देते हैं।
यही वजह भी है फ्योंली को गीतों और साहित्य में भरपूर जगह मिली है। वक्त की करवट बदलने के साथ ही इसकी मार फ्योंली पर भी पड़ी है। संरक्षण के अभाव में फ्योंली का सिमटना चिंता में डालता है। हालांकि, इसके संरक्षण की बात तो उठती रही है, मगर कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। और तो और जंगलों की रखवाली का जिम्मा संभालने वाला वन महकमा भी खामोशी की चादर ओढ़े हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि फ्योंली की पहले जैसी मुस्कान आखिर कब लौटेगी।बुरांस पर मंडराते खतरे के बादल
राज्य के जंगलों में इन दिनों राज्य वृक्ष बुरांस (रोडोडेंड्रोन) पर खिले इसके सुर्ख फूलों की लालिमा बिखर रही है, मगर बुरांस पर संकट के बादल कम होने का नाम नहीं ले रहे। बुरांस के पेड़ जल संरक्षण में तो सहायक हैं ही, इसके सुर्ख फूल औषधीय गुणों से लबरेज हैं। हृदय व उदर संबंधी रोगों में बुरांस के फूलों का जूस उपयोगी माना जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर होना ही बुरांस के लिए खतरे का सबब बन गया है। इसके फूलों के अनियंत्रित दोहन से बुरांस के प्राकृतिक पुनरोत्पादन पर संकट गहराने लगा है। जब फूल ही तोड़ दिए जाएंगे तो यह आगे कैसे बढ़ेगा, इस सवाल ने पेशानी पर बल डाले हुए हैं। यदि नियंत्रित ढंग से फूलों का दोहन हो और पहाड़ी क्षेत्र में अधिक से अधिक बुरांस का पौधारोपण हो तो बात बन सकती है। इस मोर्चे पर अधिक ध्यान दिए जाने की दरकार है।
उच्च हिमालय में खिला सफेद बुरांस
बुरांस के सुर्ख फूलों से हर कोई वाकिफ है, मगर क्या आप यह भी जानते हैं कि उत्तराखंड में सफेद बुरांस भी खिलता है। जी हां, यह बात एकदम सही है। इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में यह खिलना शुरू हो गया है। तीन से साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई वाले वन भू-भाग में मिलने वाले सफेद बुरांस (रोडोडेंड्रॉन कैम्पेनुलेटम) को स्थानीय बोली में चिमुल, रातपा जैसे नामों से जाना जाता हे। उच्च हिमालयी क्षेत्र के छह माह बर्फ की चादर ओढ़े रहने पर मार्च मध्य से जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है, तब सफेद बुरांस के तने बाहर निकलते हैं, जिन पर खिलते हैं सफेद फूल। आमतौर पर सफेद बुरांस के फूल 10 से 12 दिन तक खिले रहते हैं। सफेद बुरांस कुतुहल भी पैदा करता है, जो भी इसे देखता है आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसे में सफेद बुरांस को भी संरक्षण की दरकार है।
हरिद्वार क्षेत्र में फिर बढ़ी चिंताराजाजी टाइगर रिजर्व से सटे हरिद्वार में एक अप्रैल से कुंभ का आयोजन होना है, मगर चिंता कम होने का नहीं ले रही। वजह है, हरिद्वार से ऋषिकेश और श्यामपुर तक के क्षेत्र में हाथी, गुलदार समेत दूसरे वन्यजीवों की धमाचौकड़ी। हालांकि, वन महकमे द्वारा हरिद्वार कुंभ मेला क्षेत्र में वन्यजीवों की आवाजाही रोकने के लिए जंगल की सीमा पर उपाय जरूर किए गए हैं, मगर ये नए रास्तों से आबादी वाले क्षेत्रों में धमक रहे हैं। ऐसे में चिंता बढ़ गई है कि कुंभ के दौरान यदि जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्र में घुसे तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं। जाहिर है कि वन विभाग को नए सिरे से इस सिलसिले में रणनीति अपनानी होगी। कुंभ मेला क्षेत्र से लगी वन सीमा पर चौबीसों घंटे वनकर्मियों की टीमों की तैनाती के साथ ही सतर्कता जरूरी है। देखने वाली बात होगी कि इस दिशा में वन महकमा क्या रणनीति अपनाता है।
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