दशहरे पर उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र में नहीं जलाते रावण के पुतले, दो गांवों के बीच होता है 'गागली युद्ध'
Dussehra 2024 दशहरा 2024 उत्तराखंड के जौनसार में दशहरे पर रावण दहन की जगह गागली युद्ध होता है। उत्पाल्टा और कुरोली गांव के लोग अरबी के पत्तों और डंठलों से युद्ध करते हैं। इस युद्ध में कोई हार-जीत नहीं होती। इस युद्ध के पीछे दो बहनों से जुड़ी कहानी काफी रोचक है। जानिए गागली युद्ध से जुड़ी कहानी और इस अनोखी परंपरा के बारे में।
भगत सिंह तोमर, जागरण साहिया। Dussehra 2024: उत्तराखंड के चंपावत जिले में जिस तरह परंपरा से जुड़ा पत्थर युद्ध (बग्वाल) प्रसिद्ध है, उसी तरह देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार में गागली युद्ध भी परंपरा का हिस्सा है।
आज दशहरे (पाइंते) पर क्षेत्र में रावण दहन की बजाय उत्पाल्टा व कुरोली गांव के लोगों के बीच अरबी के पत्तों और डंठलों से गागली युद्ध होगा। इस युद्ध में कोई हार-जीत भी नहीं होती। इस युद्ध के पीछे दो बहनों से जुड़ी कहानी काफी रोचक है।
कहीं पर भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता
दशहरे पर जौनसार में कहीं पर भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि कालसी ब्लाक के दोनों गांव (कुरोली व उत्पाल्टा) के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध होता है। इस बार ग्रामीणों ने गागली युद्ध की तैयारी पूरी कर ली है।पाइंता पर्व पर दोनों गांव के लोग अपने-अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर एकत्र होते हैं। इसके बाद ग्रामीण ढोल-नगाड़ों की गर्जना व रणसिंघे की गूंज के साथ हाथ में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते हुए नाचते-गाते देवधार नामक स्थल पर पहुंचते हैं।
यहां पर दोनों गांवों के लोगों के बीच गागली युद्ध होता है। यह युद्ध गागली के पत्तों व डंठल से लड़ा जाता है। ग्रामीण राजेंद्र, सतपाल सिंह, श्याम सिंह, हरि सिंह, रणवीर सिंह आदि का कहना है कि युद्ध में कोई हार-जीत नहीं होती, युद्ध समाप्त होने पर दोनों गांवों के ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं। इसके बाद उत्पाल्टा गांव के सार्वजनिक स्थल पर ढोल की थाप पर सामूहिक रूप से पारंपरिक तांदी, रासो व हारूल नृत्यों का दौर चलता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।गागली युद्ध के पीछे की कहानी
- किवदंती है कि उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी व मुन्नी गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुए से पानी भरने गई थी।
- इस दौरान रानी अचानक कुएं में गिर गई, जिस पर मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की बात सबको बताई।
- जिस पर ग्रामीणों ने उसी पर रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगाया।
- इससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।
- ग्रामीणों को अपने इस कृत्य से बहुत पछतावा हुआ।
- इसी घटना को याद कर पश्चाताप को पाइंता (दशहरे) से दो दिन पहले मुन्नी व रानी की मूर्तियों की पूजा होती है।
- पाइंता के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती है।
- कलंक से बचने के लिए उत्पाल्टा व कुरोली गांव के लोग हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं।