कोरोनाकाल में 28 साल पहले की स्थिति में लौट आई थी गंगा, रिसर्च में सामने आई नदियों में बदलाव की स्थिति
कोरोनाकाल में प्रकृति को संवारने का मौका मिला और गंगा नदी समेत भागीरथी अलकनंदा और टौंस नदी अपने 28 साल पुराने स्वच्छ स्वरूप में लौट आई थीं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि नदियों के पानी का वाटर पॉल्यूशन इंडेक्स 28 साल पहले जितना था वही कोरोनाकाल में पहुंच गया था।
सुमन सेमवाल, देहरादून: प्रकृति को संवारने के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं है। प्रकृति अपना ध्यान खुद रखना जानती है। जरूरत है तो बस इस बात की कि विकास की अंधी दौड़ में मगन इंसान अपना दायरा समझ ले। किसी भी प्राकृतिक संसाधन में सीमा से अधिक छेड़छाड़ न किया जाए।
विकास बनाम विनाश की बहस के बीच यह नियंत्रण हमेशा चुनौती रहा है, लेकिन कोरोनकाल (वर्ष 2020) में जब चौतरफा लाकडाउन, लोग घरों में कैद थे और कल-कारखाने बंद थे, तो प्रकृति को अपना ध्यान रखने का भी मौका मिल गया। यकीन मानिए, तब हमारी गंगा नदी समेत, भागीरथी (गंगा का मुख्य रूप), अलकनंदा और टौंस नदी अपने 28 साल पुराने स्वच्छ स्वरूप में लौट आई थीं।
यह जानकारी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के हालिया प्रकाशित अध्ययन 'वाटर क्वालिटी असेसमेंट आफ अपर गंगा एंड यमुना रिवर सिस्टम्स ड्यूरिंग कोविड-19 पैंडेमिक-इंड्यूस्ड लाक डाउन: इंप्रिंट्स आफ रिवर रिजूवनेशन' में सार्वजनिक की है।
संस्थान के वरिष्ठ विज्ञान डॉ. समीर के तिवारी के अनुसार कोरोनाकाल में लाक डाउन के दौरान विज्ञानियों को भी बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, इस अध्ययन के लिए संस्थान के रजिस्ट्रार पंकज वर्मा के विशेष सहयोग से राज्य सरकार से अनुमति प्रदान की गई।
तय किया गया कि गंगा, भागीरथी, अलकनंदा और टौंस नदियों के पानी की विभिन्न पैरामीटर पर जांच कर वाटर पाल्यूशन इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) निकाला जाएगा।
सभी नदियों को अपर गंगा रिवर सिस्टम और अपर यमुना रिवर सिस्टम में बांटकर कुल 34 स्थलों पर से पानी के सैंपल लिए गए। जिनकी जांच अलग अलग पैरामीटर पर की गई। मुख्य रूप से पानी में 16 तत्वों का परीक्षण किया गया।
नमूना संग्रह स्थलों की तस्वीरें। A, B जखोली में भागीरथी नदी (BS-1)। C हाई-डेंसिटी पॉली एथिलीन (HDPE) बोतल में एकत्रित नमूना। D देवप्रयाग में अलकनंदा (AS-2)। E हर की पौड़ी, हरिद्वार में गंगा (G-5)
डॉ. समीर तिवारी के अनुसार जो आंकड़े सामने आया, उनकी तुलना वर्ष 1992 के रमेश एंड शरीन और वर्ष 2005 के चक्रपाणि अध्ययन से की गई। पता चला कि नदियों के पानी का जो वाटर पाल्यूशन इंडेक्स 28 साल पहले था, वही कोरोनाकाल में पहुंच गया था। अलकनंदा, भागीरथी और गंगा के पानी में पीएच लेवल और घुलित अक्सीजन (डीओ) की मात्रा पूर्व से भी बेहतर पाई गई। सिर्फ टौंस नदी में पूर्ण सुधार की जगह मध्यम स्तर का सुधार पाया गया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।डॉ. समीर तिवारी के अनुसार जो आंकड़े सामने आया, उनकी तुलना वर्ष 1992 के रमेश एंड शरीन और वर्ष 2005 के चक्रपाणि अध्ययन से की गई। पता चला कि नदियों के पानी का जो वाटर पाल्यूशन इंडेक्स 28 साल पहले था, वही कोरोनाकाल में पहुंच गया था। अलकनंदा, भागीरथी और गंगा के पानी में पीएच लेवल और घुलित अक्सीजन (डीओ) की मात्रा पूर्व से भी बेहतर पाई गई। सिर्फ टौंस नदी में पूर्ण सुधार की जगह मध्यम स्तर का सुधार पाया गया।
यह है वाटर पॉल्यूशन इंडेक्स के मायने
0.5 से कम | सर्वोत्तम |
0.5 से 0.75 | अच्छा |
0.75 से 01 | मध्यम |
01 से अधिक | बहुत गंदा |
डब्ल्यूपीआई की यह रही स्थिति
नदी | 1992 | 2005 | कोरोनाकाल | औसत सुधार |
अलकनंदा | 0.10 | 0.19 | 0.15 | 21 प्रतिशत |
भागीरथी | 0.12 | 0.19 | 0.13 | 32 प्रतिशत |
गंगा | 0.13 | 2.0 | 0.14 | 93 प्रतिशत |
टौंस | निल | निल | 0.18 | मध्यम सुधार |