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उत्तराखंड में इन श्रेणी के वाहनों पर रखी जाएगी जीपीएस से नजर, पढ़िए खबर

उत्तराखंड में खनन व अन्य वाणिज्यिक वाहनों तथा परिवहन निगम की बसों पर जीपीएस से नजर रखने का निर्णय लिया गया। इससे सुरक्षित सफर के साथ ही अवैध गतिविधियोंं पर रोक लगेगी।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Updated: Fri, 19 Jun 2020 09:46 AM (IST)
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उत्तराखंड में इन श्रेणी के वाहनों पर रखी जाएगी जीपीएस से नजर, पढ़िए खबर
देहरादून, विकास गुसाईं। उत्तराखंड में खनन व अन्य वाणिज्यिक वाहनों तथा परिवहन निगम की बसों पर जीपीएस से नजर रखने का निर्णय लिया गया। मकसद यह कि इससे यात्रियों के सुरक्षित सफर के साथ ही अवैध गतिविधियां रोकने में भी मदद मिलेगी। 

दरअसल, यह बात सामने आ रही थी कि तेज रफ्तार वाहन दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। इसके अलावा खनन व अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों में वाहनों का अवैध संचालन होता है। इस पर नजर रखने के लिए परिवहन विभाग मुख्यालय में कंट्रोल एवं कमांड सिस्टम और सेंटर बनाने की बात हुई। 

सेंटर के जरिये सभी वाहनों से संबंधित जानकारी विभाग की आंखों के सामने रहती। व्यवस्था बनाई गई कि नियमों के उल्लंघन पर अलर्ट मैसेज मुख्यालय के अधिकारियों के साथ ही संबंधित क्षेत्र के प्रवर्तन अधिकारी के मोबाइल पर आ जाएगा, जिस पर कार्रवाई होगी। अफसोस यह व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई और निकट भविष्य में भी आसार नहीं। 

उत्तराखंड में नए बस अड्डों का इंतजार 

प्रदेश में नए बस अड्डों का निर्माण व पुराने बस अड्डों का विस्तारीकरण का कार्य गति नहीं पकड़ पाया है। यह स्थिति तब है जब तकरीबन 12 स्थानों पर विस्तारीकरण मुख्यमंत्री घोषणा के अंतर्गत किया जाना है। कुछ के लिए अभी तक जमीन फाइनल ही नहीं तो कहीं काम शुरू नहीं हो पाया है। कहीं वन भूमि का पेंच अड़ रहा है तो कहीं एनओसी मिलने में दिक्कतें आ रही हैं। 

जहां निर्माण कार्य का उद्घाटन भी हुआ, वहां काम पूरा ही नहीं हो पाया है। इनमें से एक मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र डोईवाला का बस अड्डा भी शामिल है, जिसकी घोषणा तकरीबन चार वर्ष पूर्व की गई थी। इसके अलावा कोटद्वार, झबरेड़ा, नरेंद्र नगर, भगवानपुर, पिरान कलियर, रामनगर, किच्छा, बनबसा आदि के बस अड्डे शामिल हैं। नतीजतन आज भी लोगों को नजदीकी बस अड्डों से अपने गंतव्यों को जाने के लिए खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

समान पद, समान नियमावली 

शासन में विभिन्न विभागों और संवर्गों की नियमावली बनाने की जटिल प्रक्रिया को आसान बनाने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि नियमावली प्रकोष्ठ के सभी पदाधिकारी अब साथ बैठकर इन नियमावलियों पर चर्चा उपरांत सहमति देंगे। यानी, विभाग शासन को प्रस्ताव भेजेगा, जिस पर प्रकोष्ठ निर्णय लेगा। ऐसे में फाइल बार-बार कार्मिक, वित्त और न्याय विभाग नहीं भेजनी पड़ेगी। 

यह भी स्पष्ट किया गया कि सभी विभागों में समान पद को समान नियमावली बनाई जाएगी। मकसद यह कि नियमावली में अंतर होने के कारण कोर्ट कचहरी के फेर में न पडऩा पड़े। छह माह पूर्व शासन द्वारा लिया गया निर्णय लागू नहीं हो पाया। शासन में ही अधिकारी इन आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अभी भी प्रस्ताव सीधे नियमावली प्रकोष्ठ की जगह अनुभागों में भेजे जा रहे हैं। ऐसे में फाइलें महीनों तक कभी कार्मिक, कभी वित्त, तो कभी न्याय अनुभाग की अनुमति का इंतजार कर रही हैं।

इको टूरिज्म अभी सपना 

प्रदेश के नैसर्गिक सौंदर्य को देश व दुनिया के बीच लाने की योजना। इससे स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का सपना। बाकायदा मास्टर प्लान बनाया गया। बावजूद इसके इको टूरिज्म को धरातल पर उतारने के लिए नीति नहीं बन पाई है। यह स्थिति तब है जब मास्टर प्लान की अवधि वर्ष 2022 में समाप्त होने को है। 

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नीति नियंताओं का यदि ऐसा ही रवैया रहा तो यहां की प्राकृतिक संपदा का न तो बेहतर संरक्षण हो पाएगा और न ही इससे प्रदेश को कोई लाभ। देखा जाए तो पर्यटन एवं तीर्थाटन उत्तराखंड की आर्थिकी का मुख्य जरिया हैं। इसी को देखते हुए वर्ष 2007 में 15 साल के लिए बने उत्तराखंड टूरिज्म डेवलपमेंट मास्टर प्लान में ईको टूरिज्म के लिए नीति तैयार कर इसके अनुरूप कदम उठाने की व्यवस्था की गई, जिस पर अभी काम नहीं हो पाया। इको टूरिज्म के नाम पर चल रही गतिविधियां भी बेहद सीमित हैं। 

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