जानकर हैरान हो जाएंगे आप, यहां जंगल से ज्यादा कागजों में लहलहा रही हरियाली
उत्तराखंड में बीते नौ साल से जंगलों से ज्यादा हरियाली कागजों में लहलहा रही है। सूचना के अधिकारी से मिली जानकारी से इसका खुलासा हुआ। इस लिहाज से पौधरोपण पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
By Edited By: Updated: Wed, 13 Jun 2018 05:16 PM (IST)
देहरादून, [केदार दत्त]: 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में बीते नौ साल से जंगलों से ज्यादा हरियाली कागजों में लहलहा रही है। सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी पर गौर करें तो वर्ष 2009-10 से लेकर 2017-18 तक राज्यभर में विभिन्न प्रजातियों के 17.52 करोड़ पौधे लगाए गए। यानी, हर साल औसतन 1.94 करोड़ से अधिक पौधे रोपित किए जा रहे हैं। बावजूद इसके वनावरण (फॉरेस्ट कवर) अभी तक 46 फीसद से अधिक नहीं पहुंचा है।
इस लिहाज से पौधरोपण पर सवाल उठने लाजिमी हैं। राज्यभर में हर साल ही बड़े पैमाने पर पौधरोपण हो रहा है, लेकिन रोपे गए करोड़ों पौधों में से जीवित कितने हैं, किसी को नहीं मालूम। वन विभाग की ओर से कराए जाने वाले विभागीय (आरक्षित वन क्षेत्र) और वृहद पौधरोपण (अन्य विभागों व संस्थाओं के सहयोग से होने वाला पौधरोपण) की तस्वीर भी इससे जुदा नहीं है। सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक बीते नौ साल के दरम्यान प्रदेश में 188081.87 हेक्टेयर क्षेत्र में विभागीय पौधरोपण के तहत 1381.67 लाख और वृहद पौधरोपण में 370.82 लाख पौधे लगाए गए। यानी रोपे गए कुल पौधे 1752.49 लाख। इस हिसाब से तो उत्तराखंड में फॉरेस्ट कवर भी बढ़ जाना चाहिए था, मगर ऐसा नहीं हुआ।
साफ है कि कहीं न कहीं सिस्टम में खोट है। विभागीय मानकों को ही देखें तो पौधरोपण की असल तस्वीर पांच साल में सामने आती है। यदि एक प्लांटेशन में पांच साल बाद 60 फीसद से अधिक पौधे जीवित हैं तो इसे सफल माना जाता है। इसके अनुरूप नौ साल में हुए पौधरोपण की सही तस्वीर सामने आ जानी चाहिए थी, लेकिन कोई यह बताने की स्थिति में नहीं कि पौधे वास्तव में कितने जीवित हैं। यह है फेल होने की वजह
नियमानुसार रोपित पौधों की पांच साल तक देखभाल का प्रावधान है, मगर इसकी अनदेखी की जा रही है। यही पौधरोपण के फेल होने की सबसे बड़ी वजह है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक एक हेक्टेयर क्षेत्र में हजार से बारह सौ तक पौधे लगाए जाते हैं। प्रति हेक्टेयर रोपण से लेकर पांच साल तक देखरेख में खर्च आता है ढाई से तीन लाख रुपये। पौधरोपण को पहले साल पैसा तो दिया जाता है, मगर मेंटिनेंस का पैसा तीसरे साल में बंद हो जाता है। ऐसे में एक बार में किसी क्षेत्र में प्लांटेशन करने के बाद उनकी ओर झांकने की जहमत तक नहीं उठाई जाती। राज्य में नौ साल में पौधरोपण
वर्ष-----------क्षेत्रफल------रोपित पौधे 2009-10---27163.47---261.54
2010-11---20043.81---161.32 2011-12---23505.08---242.68
2012-13---21228.09---185.42 2013-14---21241.09---212.16
2014-15---17404.69---175.76 2015-16---17846.26---157.76
2016-17---18251.31---166.58 2017-18---21397.26---189.07
(नोट: क्षेत्रफल हेक्टेयर और पौधे लाख में) ये हैं मानक वर्ष-------सफलता मानक (फीसद में) द्वितीय----90 तृतीय-------80 चतुर्थ--------70 पंचम--------60 यह भी पढ़ें: सरकार को मिली राहत, बुझी जंगलों की आगयह भी पढ़ें: हार्इकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, जंगलों की आग पर सरकार ने उठाए हैं क्या कदमयह भी पढ़ें: सुलगने लगे हैं गढ़वाल और कुमाऊं के जंगल, वन विभाग लाचार
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