कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच खत्म नहीं हो रही खींचतान, छिड़ी दबदबे को जंग
उत्तराखंड में लगातार हार का दंश झेलने के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। साथ ही पार्टी में दबदबे के लिए दिग्गजों में जंग छिड़ गई ह
By Edited By: Updated: Tue, 09 Jul 2019 10:54 AM (IST)
देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड में लगातार हार का दंश झेलने के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच खींचतान खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। लोकसभा चुनाव में करारी हार और चुनाव नतीजे के महीनेभर बाद कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में एक बार फिर दबदबे के लिए दिग्गजों में जंग छिड़ गई है।
2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इन दिनों इस्तीफा देने और लेने के लिए दबाव की सियासत ने पार्टी को पंचायत चुनाव से ऐन पहले मुसीबत में डाल दिया है। इस संकट का समाधान अब नई दिल्ली में 10 जुलाई को प्रस्तावित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में निकलने की उम्मीद जताई जा रही है। वर्ष 2014 के बाद कांग्रेस को उत्तराखंड में बड़ी जीत के लिए तरसना पड़ा है। 2017 में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी हार के बाद राज्य में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल पर बुरा असर साफ दिखाई पड़ रहा है।
प्रदेश की सियासत में कभी काफी मजबूत रही कांग्रेस की निरंतर बदहाली भी पार्टी के बड़े नेताओं को एकजुट नहीं कर पा रही है। पार्टी मुख्य तौर पर दो गुटों में बंटी दिखाई दे रही है। एक गुट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश तो दूसरा गुट पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का माना जाता है।
दो साल पहले प्रदेश कांग्रेस के नए मुखिया के तौर पर विधायक प्रीतम सिंह के हाथों में कमान आने के बाद से ही उक्त दोनों गुटों के बीच की दूरी पट नहीं पाई है। बीते वर्ष नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस के अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन के बाद भी दोनों गुटों के बीच तल्खी सामने आई थी। लोकसभा चुनाव के मौके पर टिकट बंटवारे के दौरान भी दोनों गुटों में अंदरखाने यही नौबत रही।
पार्टी हाईकमान के रुख को देखते हुए चुनाव के मौके पर दोनों ही गुट एक सीमा से आगे नहीं बढ़े। लोकसभा चुनाव में पार्टी की शिकस्त के बाद दिग्गजों में एक बार फिर प्रदेश की सियासत पर अपने वजूद को बचाए रखने की जंग छिड़ गई है।
लोकसभा चुनाव में असोम में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिसतरह राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा देने की घोषणा की, उसके बाद से ही प्रदेश में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। केंद्रीय राजनीति में अहम जिम्मेदारी हटने की स्थिति में हरीश रावत ने प्रदेश की सियासत में मजबूती से खम ठोकने के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में रावत खेमे के निशाने पर एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह हैं। माना जा रहा है कि वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दोनों ही गुट कांग्रेस के भीतर प्रदेश की सियासत पर अपनी-अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका चूकना नहीं चाहते हैं। ऐसे में ये टकराव कम होने के बजाय और तेज होता दिखाई देने के आसार हैं।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर जिसतरह असमंजस बना है और पार्टी नेतृत्व का पूरा ध्यान इस मुद्दे के ही इर्द-गिर्द सिमटा है, उससे राज्य में क्षत्रप एकदूसरे के खिलाफ तेजी से तलवारें भांजने दिखाई पड़ सकते हैं। इस पर रोक 10 जुलाई को दिल्ली में सीडब्ल्यूसी की विस्तारित बैठक में भी लग सकती है। इस बैठक में पार्टी के केंद्रीय स्तर पर अध्यक्ष व सांगठनिक मामले में निर्णय लेने तक प्रदेशों की स्थिति को लेकर दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं। उधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह उक्त बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं।
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