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गुरु पूर्णिमा 2019: धूमधाम से मनाई गई गुरु पूर्णिमा, जानिए इसका महत्व

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसदिन गुरु की पूजा का विशेष महत्व होता है। उत्तराखंड में ये उत्सव धूमधाम से मनाया गया।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Tue, 16 Jul 2019 02:34 PM (IST)
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गुरु पूर्णिमा 2019: धूमधाम से मनाई गई गुरु पूर्णिमा, जानिए इसका महत्व
देहरादून, जेएनएन। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इसलिए गुरु पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है। तीर्थनगरी ऋषिकेश में देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं ने अपने गुरु का तिलक कर परंपरा के अनुसार पूजन किया। 

गुरु पूर्णिमा पर जय राम आश्रम, कैलाश विद्यापीठ और दर्शन महाविद्यालय में नव प्रवेशी ऋषि कुमारों का उपनयन संस्कार भी किया गया। श्रावण मास की गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु शिष्य परंपरा के चलते प्रातः से ही शिष्यों ने अपने गुरुओं का पूजन प्रारंभ कर दिया था। इस अवसर पर जयराम आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्म स्वरूप ब्रमह्मचारी ने अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए गुरु-शिष्य के बीच का संबंध बताते हुए कहा की गुरु के बिना कभी भी मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता है। गुरु ही शिष्य को सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। वह मनुष्य के भीतर आए गुरूर को भी खत्म करता है। उन्होंने बताया कि गुरु शिष्य परंपरा को अनादि काल से भारतीय संस्कृति को मानने वाले लोग अपनाते हैं।

जूना अखाड़ा देवी-देवताओं के संग गुरु की पेजा का विशेष महत्व 

बागनाथ नगरी बागेश्वर में देवी-देवताओं के साथ गुरु की पूजा का विषेश महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन जूना अखाड़ा के संतों ने गुरुओं की पूजा-अर्चना की। इस दौरान महंत शंकर गिरी महाराज ने कहा कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता है। गुरु भगवान से  भी सर्वोच्च स्थान रखते हैं। गुरु पूर्णिमा पर उन्हें भावपूर्वक याद करने से सत्यमार्ग मिलता है और संत समाज गुरु के बिना अधूरा है। भवसागर में हिचकोले खाने वाली जीवात्मा को सदगुरु ही सदमार्ग पर ले जाते हैं। गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता।

नैनीताल में गुरु पूर्णिमा पर सुख निवास स्थित बौद्ध मठ में तिब्बती समुदाय के लोगों ने कार्यक्रम आयोजित कर नगर की खुशहाली और शांति के लिए प्रार्थना सभा की। मठ में सुबह आठ बजे गुरु तेनजिंग छोडर ने दलाई लामा की प्रतिमा पर माल्यापर्ण कर नगर की शांति के सिए प्रार्थना की, जिसके बाद सभी ने मिलकर सैकड़ों दिए जलाये और दलाई लामा से आशीर्वाद लिया। इसके बाद धार्मिक अनुष्ठान के तहत समूहिक रूप से अन्न को हवा में उड़ाया गया। 

गुरु पूर्णिमा और चंद्रग्रहण एक ही दिन 

इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण भी है, जो दो घंटे 59 मिनट तक रहेगा। ये 16 जुलाई की रात एक बजकर 31 मिनट पर शुरू होगा और 17 जुलाई की सुबह चार बजकर 30 मिनट तक रहेगा। 

नौ घंटे पहले शुरू होगा सूतक काल 

माना जाता है कि चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण से नौ घंटे पहले ही शुरू हो जाता है। जिसके मुताबिक 16 जुलाई को शाम चार बजकर 31 मिनट पर सूतक काल शुरू हो जाएगा। ऐसे में में गुरु पूर्णिमा की पूजा इससे पहले ही कर लें, क्योंकि सूतक काल के दौरान पूजा नहीं की जाती है और मंदिरों के कपाट भी बंद हो जाते हैं। 

क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा 

कहा जाता है कि इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिवस है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।

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