Move to Jagran APP

राहुल के जनेऊधारी अवतार में उतरे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पार्टी में सॉफ्ट हिंदुत्व की विचारधारा को उत्तराखंड में अमल में लाने की रणनीति पर चल रहे हैं। इसके तहत वह मंदिरों में दर्शन कर भजन व कीर्तन कर रहे हैं।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 08 Feb 2018 11:55 AM (IST)
राहुल के जनेऊधारी अवतार में उतरे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत

देहरादून, [विकास धूलिया]: गुजरात मॉडल को निशाने पर रख सियासी बिसात पर मोहरे बढ़ा रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पार्टी में सॉफ्ट हिंदुत्व की विचारधारा को उत्तराखंड में अमल में लाने की रणनीति पर चल रहे हैं। गुजरात चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने जिस तरह मंदिर-मंदिर दर्शन किए, ठीक उसी तर्ज पर अब हरदा उत्तराखंड में मंदिरों में दर्शन के साथ ही भजन कीर्तन में मन रमा रहे हैं। माना जा रहा है कि सूबे की सियासत से फिलहाल स्वयं को अलग रख हरीश रावत ने यह नई रणनीति आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तैयार की है।

सियासत के माहिर खिलाड़ी हरीश रावत गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद सीधे तौर पर सियासत में सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। यह बात दीगर है कि वह अलग-अलग तरह के आयोजन कर स्वयं को सुर्खियों बनाए रखते हैं। कई तरह की दावतों के जरिये प्रतिद्वंद्वी भाजपा और अपनी पार्टी के भीतर ही विरोधियों को निशाने पर लेते रहे रावत अब नए अंदाज के साथ मैदान में उतरे हैं। 

यह नया पैंतरा है भाजपा को उसी की तर्ज पर जवाब देने के लिए हिंदुत्व के पक्ष में खड़ा दिखने की रणनीति। पिछले कुछ दिनों से रावत ने एक नया कार्यक्रम आरंभ किया है। यह है मंदिरों में जाकर दर्शन करना और भजन-कीर्तन में शामिल होना।

हरदा का यह नया सियासी अंदाज काफी कुछ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व वाले नेता की छवि बनाने की कवायद से मिलता-जुलता है। गौरतलब है कि हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने मंदिरों में जाकर भगवान के दर पर माथा टेकने की परंपरा शुरू की थी।

उत्तराखंड में निकट भविष्य में नगर निकाय चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस को अपनी सियासी जमीन सहेजने के लिए यह एक बेहतर अवसर हो सकता है, लेकिन राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि हरीश रावत की रणनीति के केंद्र में निकाय नहीं, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव हैं।

नई छवि बनाने में जुटे हरदा इसके जरिये पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तक यह संदेश भी देने की कोशिश कर रहे हैं कि उत्तराखंड में मौजूदा समय में वही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनका पूरे राज्य में व्यापक प्रभाव है। हालांकि, उनके सामने चुनौतियों की भरमार भी है। 

मसलन, विधानसभा चुनाव में मिली पराजय के लिए उन्हें सीधे तौर पर जिम्मेदार माना गया। और तो और, दो विस सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद वह एक पर भी जीत हासिल नहीं कर पाए। फिर जिस तरह से वह एकला चलो की नीति पर चल रहे हैं, उसे पार्टी के अन्य नेताओं द्वारा पचा पाना मुश्किल नजर आता है। 

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन सब कारकों के चलते क्या पार्टी हाईकमान उन पर फिर से भरोसा जताएगा। हालांकि, यह सवाल भविष्य के गर्त में छिपा है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष दावा ठोकने को कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। शायद यही है हरदा की नई रणनीति के पीछे का मकसद। बात बन गई तो ठीक, अन्यथा कोई बात नहीं।

महापुरुषों की राह का अनुसरण 

पूर्व सीएम हरीश रावत के मुताबिक जिस रास्ते पर महापुरुष चले हों, उसका अनुसरण करना चाहिए। ढाई माह पहले मैंने हल्द्वानी में कहा था कि कुछ जगह गांव वालों और छोटे बाजारों में बैठक इसे लेकर चिंतन करुंगा कि हम हारे क्यों। जनता व जनार्दन की शरण में जाएंगे। 

इस समय हमारा मकसद यही है कि आखिर लोकसभा व विधानसभा चुनाव में हमारी हार के कारण क्या रहे। हमारी सरकार ज्यादा जनोन्मुखी थी। बुनियादी कांसेप्ट पर कार्य किया। विपरीत परिस्थितियों में भी विकास किया। इसके बावजूद कांग्रेस हार गई। 

इसके पीछे कारण क्या रहे, यही मेरे इस कार्यक्रम का उद्देश्य है। जहां तक 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों का सवाल है, तो इसका फल तो आने वाले दिनों में मिलेगा ही।

यह भी पढ़ें: टपकेश्वर में हरदा ने बजाया 'अपना बाजा' 

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।