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उत्‍तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ेंगी स्वास्थ्य सुविधाएं, मेडिकल कालेजों में पीजी सीटें बढ़ने का मिलेगा फायदा

प्रदेश में खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं और बढ़ने जा रही हैं। श्रीनगर और हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कालेजों में पीजी सीटें बढ़ने का सीधा फायदा विषम क्षेत्रों में स्वास्थ्य अवस्थापना सुविधाओं के विस्तर के रूप में सामने आएगा।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 19 Jul 2021 09:52 PM (IST)
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उत्‍तराखंड में खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं और बढ़ने जा रही हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्रदेश में खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं और बढ़ने जा रही हैं। श्रीनगर और हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कालेजों में पीजी सीटें बढ़ने का सीधा फायदा विषम क्षेत्रों में स्वास्थ्य अवस्थापना सुविधाओं के विस्तर के रूप में सामने आएगा।

वर्तमान में श्रीनगर, देहरादून और हल्द्वानी में एमबीबीएस की क्रमश: 150, 200 और 150 सीटों पर दाखिले हो रहे हैं। एमबीबीएस की सीटों में इजाफा होने के बाद अब पीजी पाठ्यक्रम की सीटें बढ़ाने की पुरजोर पैरवी की जा रही है। ऐसा होने पर मेडिकल कालेजों में सिर्फ पीजी को ध्यान में रखकर टीचिंग फैकल्टी तो बढ़ानी पड़ेगी ही, साथ में स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे को भी विस्तार देना जरूरी होगा। दरअसल मेडिकल कालेजों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के अनुसार ही पीजी सीटों को मंजूरी मिलती है।

मेडिकल कालेज में एक यूनिट यानी प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पर तीन पीजी छात्र मिलते हैं। टीचिंग फैकल्टी का ढांचा जितना विस्तृत होगा, उतनी ही पीजी सीटें कालेज को मिल सकेंगी। साथ ही उतनी ही संख्या में विशेषज्ञ चिकित्सक राज्य को उपलब्ध होंगे। इसे ध्यान में रखकर ही प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के मानक के अनुसार तीनों मेडिकल कालेजों के लिए फैकल्टी के 501 पद स्वीकृत किए हैं। इनमें श्रीनगर मेडिकल कालेज के लिए 122, देहरादून के लिए 250 और हल्द्वानी के लिए 129 पद सृजित किए गए हैं।

चिकित्सा शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत के मुताबिक पीजी सीटें बढ़ने के साथ ही सरकारी मेडिकल कालेजों में स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार होगा। खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। अभी पर्वतीय क्षेत्रों के व्यक्तियों को विशेषज्ञ चिकित्सकों से उपचार के लिए मैदानी क्षेत्रों का रुख करना पड़ता है। आने वाले समय में इस स्थिति में बदलाव देखने को मिलेगा।

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