उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी के प्रमाण, मार्च से होगी गणना
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बाघों की मौजूदगी के प्रमाण मिलने के बाद अब अगले वर्ष मार्च से इनकी गणना प्रारंभ होगी।
By Edited By: Updated: Sat, 29 Dec 2018 08:04 PM (IST)
देहरादून, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बाघों की मौजूदगी के प्रमाण मिलने के बाद अब अगले वर्ष मार्च से इनकी गणना प्रारंभ होगी। इससे पहले फरवरी तक राज्य के उन सभी क्षेत्रों की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर ली जाएगी, जहां-जहां बाघों की मौजूदगी पाई गई है। यह कार्य राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और ग्लोबल टाइगर फोरम (जीटीएफ) के सहयोग से चलने वाले 'हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट' के तहत होंगे।
एनटीसीए, जीटीएफ, वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान की शुक्रवार को देहरादून में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया। बताया गया कि राज्य के 200 और ग्रिड में बाघों की मौजूदगी की जानकारी विभाग ने दी है, जो 10 वन प्रभागों में फैले हैं। बाघ संरक्षण के मामले में उत्तराखंड (362) देश में दूसरे स्थान पर है। यहां कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत राज्य के मैदानी क्षेत्रों वाले 13 वन प्रभागों में मुख्य रूप से बाघों का बसेरा है।
पिछले चार सालों के दौरान उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 14 हजार फुट की ऊंचाई तक बाघों की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। फिर चाहे वह अस्कोट, मदमहेश्वर हो अथवा खतलिंग ग्लेश्यिर, वहां लगे कैमरा ट्रैप में बाघों की तस्वीरें समय-समय पर कैद होती आई हैं। न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि सिक्किम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश में भी बाघ शिखर की ओर बढ़े हैं। इसे देखते हुए इन राज्यों में हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट शुरू करने का निर्णय लिया गया।
एनटीसीए व जीटीएफ के सहयोग से चलने वाले इस प्रोजेक्ट के लिए अब कवायद तेज कर दी गई है। इस कड़ी में जीटीएफ व एनटीसीए की ओर से इन राज्यों के वन महकमों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी के बारे में पूरा ब्योरा मांगा गया। उत्तराखंड से यह जानकारी मिलने के बाद एनटीसीए व जीटीएफ ने शुक्रवार को देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान में वन विभाग और संस्थान के अधिकारियों के साथ इस पर मंथन किया।
एनटीसीए के डीआइजी निशांत वर्मा के अनुसार बैठक में तय हुआ कि फरवरी तक जिन नए क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी पाई गई है, वहां ये कौन-कौन से ग्रिड पर हैं, वहां इनके भोजन के इंतजाम कितने हैं, बाघों ने कहां-कहां बसेरा बनाया है, इन समेत अन्य बिंदुओं पर फरवरी तक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार करने का निर्णय लिया गया।
डीआइजी वर्मा के मुताबिक यह भी तय हुआ कि फरवरी तक अस्कोट अभयारण्य और टौंस घाटी में कैमरा ट्रैप भी लगाए जाएंगे। उन्होंने बताया कि प्रारंभिक रिपोर्ट मिलने के बाद मार्च से सभी नए क्षेत्रों में बाघों के आकलन के मद्देनजर कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे। साथ ही वासस्थल विकास पर फोकस किया जाएगा। इसके साथ ही बाघ संरक्षण के लिए अन्य कदम भी उठाए जाएंगे।
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