उत्तराखंड में अब 'हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट'
उत्तराखंड में 14 हजार फुट की ऊंचाई तक बाघों की मौजूदगी के पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद अब राज्य में 'हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट' को आकार देने की तैयारी है।
By JagranEdited By: Updated: Fri, 28 Dec 2018 03:00 AM (IST)
केदार दत्त, देहरादून
उत्तराखंड में 14 हजार फुट की ऊंचाई तक बाघों की मौजूदगी के पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद अब राज्य में 'हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट' को आकार देने की तैयारी है। इसके तहत बाघ बहुल कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 13 वन प्रभागों से इतर उन वन प्रभागों को शामिल किया जाएगा, जहां बाघों की मौजूदगी है। बाघ संरक्षण के लिए कार्य करने वाले वैश्विक संगठन ग्लोबल टाइगर फोरम (जीटीएफ) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) इसका मसौदा तैयार कर रहे हैं। फिर इसके आधार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी बाघ संरक्षण के लिए कदम उठाए जाएंगे। कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत राज्य के 13 वन प्रभागों में मुख्य रूप से बाघों का बसेरा है। प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इन क्षेत्रों में बाघ संरक्षण के लिए गंभीरता से हुए प्रयासों का नतीजा है कि अब बाघ मैदानी क्षेत्रों और फुटहिल्स से निकलकर शिखरों तक पहुंचे हैं। बीते चार सालों के वक्फे में कई मौकों पर इसकी तस्दीक हुई है। इस दौरान पिथौरागढ़ के अस्कोट अभयारण्य (12500 फीट) और रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत केदारनाथ अभयारण्य के मदमहेश्वर (14000 फीट) में हिमतेंदुओं के वासस्थल में बाघों की मौजूदगी वहां लगे कैमरा ट्रैप में पुख्ता हुई है। इसके अलावा खतलिंग ग्लेश्यिर (12000 फीट) में भी बाघों की तस्वीर कैमरा ट्रैप में कैद हुई हैं। यही नहीं, अन्य वन प्रभागों में भी गाहे-बगाहे बाघ देखे जाने की खबरें आती रही हैं।
हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि बाघों ने हिमालयी क्षेत्रों के इन स्थलों को स्थायी रूप से बसेरा बनाया है या फिर उनका आगमन सीजनल है। इस सबके मद्देनजर ही वन महकमे का ध्यान इन क्षेत्रों पर गया। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों के आकलन पर केंद्र स्तर से भी संबल मिला है। एनटीसीए और बाघ संरक्षण को कार्य करने वाले वैश्विक संगठन जीटीएफ इस पहल को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।
इसी कड़ी में हाई एल्टीट्यूड टाइगर प्रोजेक्ट का खाका बुना गया है, ताकि संरक्षित क्षेत्रों से इतर भी बाघों का संरक्षण हो सके। इसके तहत एनटीसीए और जीटीएफ द्वारा राज्य के वन्यजीव महकमे से जिन उच्च हिमालयी क्षेत्रों व अन्य स्थानों पर बाघों की मौजूदगी है, उसके बारे में पूरा ब्योरा मांगा है। इसके साथ ही इन क्षेत्रों में बाघों के आकलन को प्रोटोकाल तैयार हो रहा है।
इस प्रोजेक्ट की प्रगति को लेकर जीटीएफ, एनटीसीए और वन महकमे की अहम बैठक जल्द ही देहरादून में बुलाई गई है। एनटीसीए के डीआइजी निशांत वर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि बैठक में अब तक की प्रगति की समीक्षा की जाएगी। फिर इसे फाइनल कर उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में बाघ संरक्षण को प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
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