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Himalaya Diwas: आर्थिकी और पारिस्थितिकी पर ध्यान देने से संवरेगा हिमालय, अपनाना होगा ऐसा रास्ता

Himalaya Diwas 2021 हिमालय के सतत विकास की चिंता करनी है तो इसके लिए स्थानीय संसाधनों पर फोकस करना जरूरी है। इसके लिए ऐसा रास्ता अपनाना होगा जिसमें स्थानीय संसाधनों के उपयोग से आजीविका तो चले ही इनका संरक्षण भी हो।

By Raksha PanthriEdited By: Updated: Wed, 08 Sep 2021 09:28 PM (IST)
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आर्थिकी और पारिस्थितिकी पर ध्यान देने से संवरेगा हिमालय, अपनाना होगा ऐसा रास्ता। जागरण
केदार दत्त, देहरादून। Himalaya Diwas 2021 किसी भी क्षेत्र को तभी सुरक्षित रखा जा सकता है, जब वहां के निवासियों के हित भी महफूज हों। इस नजरिये से देखें तो हिमालय और हिमालयवासियों की निरंतर ही अनदेखी होती आई है। यही चिंता की सबसे बड़ी वजह है। यदि हमें हिमालय के सतत विकास की चिंता करनी है तो इसके लिए स्थानीय संसाधनों पर फोकस करना जरूरी है। इसके लिए ऐसा रास्ता अपनाना होगा, जिसमें स्थानीय संसाधनों के उपयोग से आजीविका तो चले ही इनका संरक्षण भी हो। इस पहल से हिमालय की आर्थिकी और पारिस्थितिकी एक साथ संवारी जा सकती है।

हिमालय के संरक्षण के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि उसके मनोविज्ञान को समझा जाए। हिमालय केवल बर्फ का घर नहीं, बल्कि यह खुद में विशिष्ट सभ्यता और संस्कृति को भी समेटे है। मिट्टी, हवा, पानी, जंगल जैसे हिमालयी उत्पादों ने सभ्यता को जन्मा है। हिमालय रूपी प्राकृतिक संसाधनों के विपुल भंडार से ही देश में जंगल और खेत-खलिहान पुष्पित पल्लवित होते आ रहे हैं। प्राणवायु भी हिमालय की बदौलत है। ऐसी एक नहीं अनेक खूबियों के बाद भी आज हिमालय को समझने की भूल लगभग हर स्तर पर हो रही है।

बात चाहे हिमालयी क्षेत्र में विकास योजनाओं की हो या फिर मूलभूत सुविधाओं के विस्तार की, इनमें अनदेखी का क्रम बदस्तूर जारी है। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। यदि यहां की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सतत विकास का खाका खींचा जाता तो हिमालय के साथ ही यहां का जन भी महफूज रहता। अब जरा यहां की तस्वीर पर नजर डालते हैं। 21 साल के होने जा रहे उत्तराखंड में पलायन के कारण अब तक 1702 गांव जनविहीन हो चुके हैं। लगभग एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि योग्य जमीन बंजर हो चुकी हैै। पहाड़ों में आजीविका के साधन न के बराबर हैं।

इस परिदृश्य के बीच बेहतर भविष्य की आस और आजीविका के लिए विषम भूगोल वाले हिमालयी क्षेत्र के गांवों से पलायन बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे इस राज्य में सीमांत गांवों का खाली होना किसी भी दशा में सही नहीं ठहराया जा सकता। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब हिमालयी क्षेत्र में लोग नहीं रहेंगे तो इसे कौन बचाएगा।

जाहिर है कि हिमालय के सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करना समय की मांग है। पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद् सच्चिदानंद भारती भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि सतत विकास के लिए हिमालय और यहां के निवासियों के संबंध को समझते हुए विकास व हिमालय के मध्य सांमजस्य स्थापित करना आवश्यक है।

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स्थानीय संसाधनों का इस तरह से उपयोग करने की जरूरत है, जिससे आजीविका के साधन विकसित होने के साथ ही संसाधनों का संरक्षण भी हो। इस दिशा में नवीन तकनीकी का समावेश कर कुटीर उद्योग धंधे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस तरह के प्रयासों से हिमालयी क्षेत्र के निवासियों की आर्थिकी तो संवरेगी ही, वहां की पारिस्थितिकी भी महफूज रहेगी। साथ ही वे हिमालय के संरक्षण में अपना योगदान देंगे।

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