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Himalaya Diwas 2022 : हिमालय तभी सुरक्षित रहेगा, जब वहां के निवासियों के हितों की सुरक्षा होगी

Himalaya Diwas 2022 हिमालयी क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तार लिए हुए है। देश को पानी हवा व मिट्टी की आपूर्ति करने में हिमालय की महत्वपूर्ण भूमिका है तो जैव विविधता का भी यह अमूल्य भंडार है।

By Nirmala BohraEdited By: Updated: Wed, 07 Sep 2022 11:08 AM (IST)
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Himalaya Diwas 2022 : हिमालयी क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तार लिए हुए है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून : Himalaya Diwas 2022 : हिमालय केवल बर्फ के पहाड़ की श्रृंखलाभर नहीं, बल्कि यह स्वयं में एक सभ्यता को समेटे हुए है। देश को पानी, हवा व मिट्टी की आपूर्ति करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है तो जैव विविधता का भी यह अमूल्य भंडार है। ऐसी एक नहीं, अनेक विशिष्टताओं के बावजूद हिमालय और वहां के निवासियों को वह अहमियत अभी तक नहीं मिल पाई, जिसकी अपेक्षा की जाती है।

उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों की यही प्रमुख चिंता है। इसलिए वे विषम परिस्थितियों वाले हिमालयी क्षेत्र को अलग दृष्टिकोण से देखने की पैरवी करते आ रहे हैं। यानी, यहां के विकास का माडल देश के अन्य क्षेत्रों से अलग होना चाहिए। यह तभी संभव है, जब हिमालय के लिए पृथक से व्यापक नीति बने।

हिमालयी क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 16.3 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तार लिए हुए है। इसके अंतर्गत उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम और केंद्र शासित राज्य लद्दाख व जम्मू-कश्मीर हैं। यह हिमालयी क्षेत्र पारिस्थितिकी व पर्यावरण के साथ ही सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

बदली परिस्थितियों में हिमालयी क्षेत्र और यहां के निवासी तमाम समस्याओं से जूझते आ रहे हैं। प्रत्येक हिमालयी राज्य की अलग-अलग कठिनाइयां हैं, जो अभी तक हल नहीं हो पाई हैं। इसके पीछे कुछ सरकारी उपेक्षा जिम्मेदार है तो कुछ विकास का पैमाना अलग होना इसका कारण माना जा सकता है।

हिमालय सबकी आवश्यकता है। यह ठीक रहेगा तो सभी के हित सुरक्षित रहेंगे। इसी दृष्टिकोण के आधार पर हिमालय क्षेत्रों के लिए व्यापक नीति बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

वर्ष 2019 में हिमालयी राज्य उत्तराखंड की पहल पर हुए मसूरी में हुए हिमालयी राज्यों के कान्क्लेव में इस बात की आवश्यकता बताई गई थी कि देश के लिए नीतियां बनाते समय हिमालय की परिस्थितियों को अलग से ध्यान में रखा जाए। सभी हिमालयी राज्य समय-समय पर यह विषय केंद्र के समक्ष रखते आए हैं। ऐसे में अब सभी की नजरें केंद्र सरकार पर टिकी हैं कि वह हिमालयी राज्यों के लिए क्या कदम उठाती है।

उत्तराखंड के समक्ष भी चुनौतियों की भरमार

हिमालयी राज्य उत्तराखंड भी अनेक चुनौतियों से दो-चार हो रहा है। इस कड़ी में वह जलशक्ति, आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय सेवाएं, विकास कार्यों की अधिक लागत, आजीविका व रोजगार के विषयों को निरंतर उठाता आ रहा है। असल में यह चुनौतियां ऐसी हैं, जिनसे पार पाने को उसे केंद्र की मदद की आवश्यकता है।

'हिमालय को सभी वर्गों के सहयोग की आवश्यकता है। हिमालयी राज्यों के सामने भी एक बड़ी चुनौती है कि वे किस तरह वैश्विक पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें। कारण ये कि उनके बिना, हवा, मिट्टी, जंगल, पानी के प्रश्न अधूरे रह जाएंगे। मेरा मानना है कि विकास का आदर्श ढांचा पारिस्थितिकी, हिमालय की संवेदनशीलता के दृष्टिगत सुदृढ़ विकास की नीतियोंं पर केंद्रित होना चाहिए।

-पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखंड

'हिमालय के हालात बेहतर नहीं कहे जा सकते। पिछले कुछ दशक से कई तरह की आपदाओं ने हिमालय को घेरा है। इसके वैश्विक कारण तो हैं ही, स्थानीय स्तर पर भी हमने हिमालय को समझने की चूक की है। हमने उन्हीं नीतियों पर दमखम रखा, जो मैदानी क्षेत्रों के अनुकूल थीं। हमने हिमालय की संवेदनशीलता को दरकिनार कर दिया। राज्यों में हिमालय को बांटने के बाद भी हिमालय के लिए हम बेहतर नीति नहीं ला पाए। अब बगैर देरी किए इस पर ध्यान देना होगा।

-पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी, संस्थापक हेस्को

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