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हिमालयन कॉन्क्लेव: हिमालयी राज्यों ने की विशेष दर्जा बनाए रखने की पैरवी

मसूरी में हिमालयन कॉन्क्लेव में पर्वतीय राज्यों ने सभी हिमालयी राज्य को विशेष दर्जा बरकरार रखने के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया।

By Edited By: Updated: Mon, 29 Jul 2019 09:13 AM (IST)
हिमालयन कॉन्क्लेव: हिमालयी राज्यों ने की विशेष दर्जा बनाए रखने की पैरवी
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। सभी हिमालयी राज्य विशेष दर्जा बरकरार रखने के पक्ष में हैं। मसूरी में हिमालयन कॉन्क्लेव में इन सभी पर्वतीय राज्यों ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। यह दीगर बात है कि यह मुद्दा प्रमुखता से उठने के बावजूद इसे प्रत्यक्ष कॉमन एजेंडे का हिस्सा बनाने से गुरेज किया गया। इन राज्यों ने अपने पिछड़ेपन, विकास कार्यों की अधिक लागत, आजीविका और रोजगार के बेहद सीमित अवसरों और सीमित संसाधनों का हवाला देते हुए विशेष दर्जे से छेड़छाड़ नहीं किए जाने के साथ ही केंद्र सरकार से ज्यादा वित्तीय मदद भी मांगी है। साथ में निर्माण कार्यों की अधिक लागत देखते हुए पर्वतीय राज्यों की जरूरत के मुताबिक एसओआर (शिड्यूल ऑफ रेट) में संशोधन पर जोर दिया है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ ही 15वें वित्त आयोग और नीति आयोग से इस मामले में पुरजोर पैरवी की गई है।

दरअसल, हिमालयन कॉन्क्लेव के जरिए एकजुट हुए हिमालयी राज्यों की विशेष दर्जे से छेड़छाड़ की आशंका को लेकर चिंता बेमायने नहीं है। पिछले 14वें वित्त आयोग ने हिमालयी राज्यों को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने की संस्तुति की थी। इससे सिर्फ पूर्वोत्तर के राज्यों को ही कुछ राहत मिली थी। बाद में विशेष दर्जे खत्म किए जाने का विरोध होने के बाद 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर केंद्र सरकार को अपना रुख बदलना पड़ा था। विशेष दर्जे के रूप में सभी हिमालयी राज्यों को केंद्रपोषित योजनाओं और बाह्य सहायतित योजनाओं में ज्यादा केंद्रीय मदद के रूप में मिल रहा है। 

इस हैसियत के चलते कई केंद्रपोषित योजनाओं में इन राज्यों को 90:10 व 80:20 के अनुपात में मदद मिल रही है, यानी उक्त योजनाओं में केंद्रीय अनुदान की हिस्सेदारी 90 और 80 फीसद तक है। राज्य सरकारों को अपने हिस्से से सिर्फ 10 या 20 फीसद ही धन खर्च करना पड़ रहा है। विशेष दर्जा खत्म होने के बाद केंद्रपोषित और बाह््य सहायतित योजनाओं में मिलने वाली ज्यादा मदद खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। यही वजह है कि हिमालयी राज्यों के तकरीबन सभी मुख्यमंत्रियों और उनके प्रतिनिधियों ने विशेष दर्जे के मामले को उठाया। कॉन्क्लेव में चूंकि 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह खुद मौजूद थे, इस वजह से इस मुद्दे पर चर्चा तो की गई, लेकिन इसे कॉमन एजेंडे में सार्वजनिक करने से बचा गया। 

कॉन्क्लेव में पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उनके प्रतिनिधियों ने विशेष दर्जे को राज्यों की जरूरत बताया। सिक्किम के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ महेंद्र पी लामा ने कहा कि यह अहम मुद्दा है। सभी इस मामले में एकमत रहे। 14वें वित्त आयोग इस मामले में उदासीन रुख अपना चुका है, लिहाजा 15वें वित्त आयोग के समक्ष इस रखा गया है। केंद्रीय वित्त मंत्री, 15वें वित्त आयोग और नीति आयोग को सौंपे गए कॉमन एजेंडे में भी यह मुद्दा शामिल है। उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए जो भी जरूरी है, उसे कॉमन एजेंडे का हिस्सा बनाया गया है। साथ ही 15वें वित्त आयोग के समक्ष पुरजोर तरीके से रखा भी गया है।  

 मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया से बातचीत में विशेष दर्जे पर टिप्पणी नहीं की, लेकिन यह स्वीकार किया कि राज्यों को केंद्रपोषित योजनाओं में अधिक वित्तीय सहायता की दरकार है। हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन है। इन राज्यों की समस्याएं अन्य से अलग हैं। छोटे राज्यों को केंद्र से अधिक मदद मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की लागत काफी ज्यादा है। मैदानी क्षेत्र में जिस सड़क की लागत प्रति किमी पांच लाख रुपये बैठती है, पर्वतीय क्षेत्र में उस पर एक करोड़ से ज्यादा खर्च हो रहा है। ऐसे में पर्वतीय राज्यों को केंद्र से ज्यादा मदद चाहिए। 

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