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रोचक कहानियों से हिंदी की जड़ें सींच रही देहरादून की कुसुम, बच्चों में भर रही मातृभाषा से प्‍यार

Hindi Diwas 2024 हिंदी दिवस 2024 के अवसर पर जानिए देहरादून की डॉ. कुसुम रानी नैथानी के बारे में जो बच्चों में हिंदी के प्रति रुचि जगाने के लिए रोचक कहानियों का सहारा लेती हैं। अब तक 14 किताबें लिख चुकी हैं और 700 से अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार और शैलेश मटियानी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

By Sumit kumar Edited By: Nirmala Bohra Updated: Sat, 14 Sep 2024 03:35 PM (IST)
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Hindi Diwas 2024: रोचक कहानियों से बच्चों को हिंदी के प्रति जागरूक कर रही डा. कुसुम रानी. Jagran

जागरण संवाददाता, देहरादून। Hindi Diwas 2024: हिंदी हमारे पारंपरिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच सेतु की तरह है। बहुत सरल, सहज व सुगम भाषा होने के साथ ही बच्चों में हिंदी के प्रति रुचि कम न हो इसके लिए जिला पुलिस शिकायत प्राधिकरण देहरादून की सदस्य व सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डा. कुसुम रानी नैथानी उन्हें रोचक कहानियों के जरिए जागरूक कर रही हैं।

अब तक बाल कहानी, उपन्यास व कहानी संग्रह समेत 14 किताबें लिख चुकी हैं। जिन्हें दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में रखा गया है साथ ही इन बाल कहानियों का आकाशवाणी में नियमित प्रसारण भी होता है। इसके अलावा देश के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनकी 700 से अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार से सम्‍मानित

हिंदी के प्रति समर्पण को देखते हुए वर्ष 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा वर्ष 2015 में शैलेश मटियानी पुरस्कार से भी वह सम्मानित हो चुकी हैं।

देहरादून के चुक्खूवाला के ओंकार रोड निवासी डा. कुसुम के पति डा. उमेश चंद्र नैथानी सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। बड़े बेटे नीरज नैथानी भारतीय थल सेना में कर्नल जबकि छोटे पुत्र कलानिधि नैथानी उत्तर प्रदेश के झांसी में डीआइजी हैं। डा. कुसुम रानी नैथानी को बचपन से ही हिंदी में लिखने का शौक था।

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घर में बच्चों को पाठ पढ़ाया तो शिक्षा के क्षेत्र में अपने तीन दशक के समय में उन्होंने खेल-खेल में, वाद-विवाद आदि विभिन्न गतिविधि के माध्यम से हिंदी की महत्ता को बताया। वर्ष 1995 से उन्होंने किताबें लिखनी शुरू की। इंटरनेट के इस दौर में बच्चों का पुस्तकों के प्रति लगाव कम होने ने उनकी भी चिंता को बढ़ाया। सोचा कि अब बच्चों को लेकर ही किताबें लिखकर उन्हें इस ओर जागरूक कराना है।

इसके बाद चटपटी कहानियां, नटखट अटखेलियां, जंगल की कहानियां, हम हैं होशियार, पिंकी बना जासूस, उल्टा पड़ा दांव, पेड़ बोलने लगे आदि बाल कहानियां लिखी। उन्होंने बाल उपन्यास 'वीणा की कहानी' भी लिखा। इसके अलावा पांच कहानी संग्रह अभी प्रकाशन में हैं जिनमें चंकी ने उगाया सूरज, गड्ढों का रहस्य, पुरखों का किस्सा, क्योंकि कि मैं लड़की हूं शामिल हैं।

उनकी 700 से अधिक बाल कहानियां चंपक, बाल भारती, बालकिरन, बाल प्रहरी, बच्चों का देश, बाल वाणी आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। अभी भी जब भी स्कूल व सामाजिक संगठनों की ओर से कहीं बच्चों का कार्यक्रम होता है तो वे उत्सुकता से जाती हैं और बच्चों के बीच हिंदी की कहानियां, कविताएं आदि प्रस्तुत कर उन्हें हिंदी के प्रति जागरूक करती हैं।

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देहरादून के अलावा हल्द्वानी, श्रीनगर गढ़वाल व राजस्थान में कई बार उनको बच्चों के कार्यक्रम में खास तौर पर आमंत्रित किया जाता है। इसके साथ ही जब भी वक्त मिलता है वह इंटरनेट मीडिया के माध्यम से भी बच्चों के लिए विभिन्न लेख कहानियां प्रसारित करती हैं।

बचपन की पढ़ाई समझ को गहराई से करती है प्रभावित

डा. कुसुम रानी नैथानी का कहना है कि बचपन एक ऐसा समय होता है जब बच्चे नई चीजों को समझने, सीखने और खोजने के लिए सबसे अधिक उत्सुक रहते हैं। इस उम्र में पढ़ी जाने वाली कहानियां, कविताएं और कहावतें बच्चों की सोचने की क्षमता, कल्पना शक्ति व सामाजिक समझ को गहराई से प्रभावित करती हैं।

बाल साहित्य बच्चों के विकास में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है जो न केवल उन्हें नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य सिखाता है बल्कि उन्हें अपने आस-पास की दुनिया से जोड़ने और समझने में भी मदद करता है। हिंदी दिवस के अवसर पर हमें यह सोचना चाहिए कि बच्चों को हिंदी में मजबूत बनाने के लिए बाल साहित्य उनके लिए और अधिक सशक्त और समृद्ध कैसे बनाया जा सकता है।

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