Move to Jagran APP

मधुमक्खी घोल रही जीवन में मिठास, शहद से संवरी परिवार की किस्मत

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 45 किमी दूर स्थित बार्सू गांव में मधुमक्खी पालन ग्रामीणों के जीवन में मिठास घोल रहा है। छह परिवारों ने मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपना लिया है।

By BhanuEdited By: Updated: Thu, 01 Nov 2018 12:38 PM (IST)
Hero Image
मधुमक्खी घोल रही जीवन में मिठास, शहद से संवरी परिवार की किस्मत
देहरादून, [शैलेंद्र गोदियाल]: जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 45 किमी दूर स्थित बार्सू गांव में मधुमक्खी पालन ग्रामीणों के जीवन में मिठास घोल रहा है। गांव के छह परिवारों ने मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपना लिया है। इन काश्तकारों के सामने बाजार की भी दिक्कत नहीं है, क्योंकि दिल्ली समेत अन्य शहरों से दवा बनाने वाली आयुर्वेदिक कंपनियों के प्रतिनिधि सीधे गांव पहुंचकर शहद खरीद रहे हैं। 

इस अनुकरणीय प्रयास के लिए गांव के काश्तकार जगमोहन सिंह रावत को प्रदेश के कृषि मंत्री ने विश्व मधुमक्खी दिवस पर सम्मानित भी किया। उत्तरकाशी जिले के गांवों का भूगोल मौन पालन के लिए सबसे मुफीद है। अधिकांश गांव जंगलों से घिरे हुए हैं। ये जंगल अलग-अलग सीजन में बुरांश, मोरू, खर्सू, बुग्याली फूल, अंयार आदि के फूलों से लकदक रहते हैं। जिससे यहां मधुमक्खियों को पर्याप्त मात्रा में पराग मिल जाता है। 

जहां लोग खेती और बागवानी करते हैं। इससे यहां मधु मक्खियों के लिए पर्याप्त फूल मिल जाते हैं। हालांकि, अभी मौनपालन गांव-गांव तक नहीं फैल पाया है, लेकिन, बार्सू गांव के ग्रामीणों ने मौनपालन को अपनी आर्थिकी का मुख्य जरिया बना लिया है।

बार्सू निवासी 45-वर्षीय जगमोहन सिंह रावत बताते हैं कि साठ के दशक में उनकेघर की एक आलमारी में मधुमक्खियों ने प्राकृतिक रूप से अपना डेरा बनाया था। वर्ष 1970 में उनके पिता सूरत सिंह रावत ने मौनपालन का प्रशिक्षण लिया और इसे व्यावसायिक रूप दिया। 

उनके साथ ही गांव के रतन सिंह, धनपत सिंह, दशरथ सिंह ने भी मौनपालन शुरू किया। कहते हैं, उन्हें मौन पालन का प्रशिक्षण पिता से घर पर ही मिला। पहले घर में मधुमक्खी के बॉक्स कम थे, जिसे धीरे-धीरे बढ़ाया गया। अब उनके पास 300 बॉक्स हैं। इनमें चक्र के रूप में मधुमक्खी अपना नया घर बनाती हैं, जिनसे वर्षभर में करीब चार क्विंटल शहद मिल जाता है। 

जगमोहन के अनुसार उनके परिवार से प्रेरित होकर गांव के ही विशन सिंह, दशरथ सिंह, अनिल सिंह व किशन सिंह ने भी मौनपालन को व्यावसायिक रूप में अपना लिया है। गांव में तैयार होने वाले शहद की जबरदस्त मांग है और खरीदार दिल्ली से सीधे गांव पहुंच जाते हैं। वह खुद शहद निकालते हैं और ले जाते हैं। 

400 रुपये किलो तक बिकता है शहद

जगमोहन बताते हैं कि मौनपालन के लिए बॉक्स लगाने और मधुमक्खी के व्यवहार को समझने की जरूरत है। फिर तो बिना मेहनत के ही आपके जीवन में शहद की मिठास घुलती रहेगी। बताते हैं, सीजन के दौरान गांव में एक किलो शहद का मूल्य 250 रुपये से लेकर 400 रुपये के बीच मिल जाता है।

गांव की आर्थिकी हुई मजबूत

दशरथ सिंह कहते हैं कि वे अस्सी के दशक से मौनपालन कर रहे हैं। काश्तकारी के साथ मौनपालन से परिवार की आर्थिकी को काफी मजबूती मिली है। कहते हैं, गांव में 160 परिवार निवास करते हैं। कुछ लोग भेड़पालन करते हैं, कुछ सब्जी उत्पादन और कुछ बागवानी। दयारा बुग्याल बार्सू से निकट होने के कारण युवा पर्यटन से भी जुड़े हैं। कहते हैं, यह सब ग्रामीणों ने स्वयं के प्रयासों से संभव कर दिखाया। 

इतना करते हैं प्रतिवर्ष उत्पादन 

जगमोहन सिंह रावत-----------चार क्विंटल 

दशरथ सिंह--------------दो क्विंटल

किशन सिंह-----------------एक क्विंटल 

अनिल सिंह--------------एक क्विंटल 

विशन सिंह----------------80 किलो 

अनुदान पर उपलब्ध कराएंगे बॉक्स 

उत्तरकाशी के सहायक मौन विकास अधिकारी सोनू सिंह के अनुसार इस बार दो गांवों में मौनपालन का प्रशिक्षण दिया गया है। अगर किसी काश्तकार की ओर से डिमांड आती है तो राज्य सेक्टर और उद्यानीकरण मिशन योजना के तहत अनुदान पर बॉक्स उपलब्ध कराए जाएंगे।

यह भी पढ़ें: इस आइएएस दंपती ने अपने बेटे का आंगनबाड़ी केंद्र में कराया दाखिला

यह भी पढ़ें: राजीव ने शुरू की विदेशी फूलों की खेती, अब कमा रहे हैं लाखों

यह भी पढ़ें : पहाड़ से पलायन करने वाले मोहन से लें सबक, औरों को भी दे रहे रोजगार

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।