सहारनपुर के नाम पर उत्तराखंड में गरमाई सियासत
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र को उत्तराखंड में शामिल करने के संबंध में दिए गए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान को लेकर उत्तराखंड में सियासत गरमा गई।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र को उत्तराखंड में शामिल करने के संबंध में दिए गए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान के बाद प्रदेश में सियासत गरमा गई। खुद सरकार और संगठन में इसे लेकर अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो गई तो राज्य निर्माण आंदोलनकारियों में भी नाराजगी का भाव है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे को तुरंत लपकते हुए इसे राज्य और केंद्र की विफलताओं से ध्यान हटाने का शिगूफा करार दिया। हालांकि, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने आगे आकर साफ किया कि मुख्यमंत्री के वक्तव्य को गलत ढंग से तोड़-मरोड़करपेश किया गया। सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने के बारे में न तो सरकार और न संगठन स्तर पर ही कोई विचार है। लिहाजा, इसे लेकर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए।
मुख्यमंत्री रावत ने गुरुवार को सहारनपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत की थी। इस दौरान उनका यह कथित बयान सुर्खियां बन गया, जिसमें कहा गया कि सहारनपुर वालों की इच्छा रही है कि उन्हें उत्तराखंड में शामिल किया जाए। मुख्यमंत्री के हवाले से यह भी कहा गया कि राज्य गठन के वक्त भी वह चाहते थे और आज भी चाहते हैं कि सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल किया जाए।
इसके बाद न सिर्फ सोशल मीडिया बल्कि सियासी गलियारों में मुख्यमंत्री के कथन को लेकर तरह-तरह के निहितार्थ निकाले जाने लगे। सरकार और संगठन के सामने भी असहज स्थिति पैदा हो गई तो राज्य निर्माण आंदोलनकारियों में भी नाराजगी के सुर उभरने लगे। उनका कहना है कि यदि सहारनपुर को उत्तराखंड का हिस्सा बनाया गया तो इससे इस पहाड़ी राज्य का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।
वहीं, विपक्षी कांग्रेस को भी सरकार और भाजपा के खिलाफ मुखर होने का मौका मिल गया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो यहां तक कह गए कि भाजपा सरकार दिल्ली-देहरादून हाईवे पर छुटमलपुर से डाटकाली तक के करीब 25 किमी लंबे कॉरीडोर को ही उत्तराखंड में मिलाने का प्रस्ताव उप्र विस से पारित करा दे तो पता चल जाएगा।
हालांकि, बुधवार देर शाम को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने साफ किया कि सीएम के बयान को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया। ऐसा कोई विचार किसी भी स्तर पर नहीं है।
विफलताओं से ध्यान हटाने को शिगूफा
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के मुताबिक अपनी सरकार की विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए भाजपा जानबूझकर ऐसे शिगूफे छोड़ रही है। इसका कोई अर्थ नहीं है। केंद्र, उत्तराखंड व उप्र में भाजपा की सरकारें हैं। इतने ही सक्षम हैं तो छुटमलपुर से डॉटकाली तक के कारीडोर को ही उत्तराखंड में मिलाने का प्रस्ताव उप्र विस से पारित कराएं। समझ आ जाएगा कि सहारनपुर को मिलाना कितना कठिन है।
कथन को गलत ढंगे से किया प्रस्तुत
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री ने अविभाजित उप्र के समय सहारनपुर के साथ संबंधों का सामान्य रूप से उल्लेख किया, लेकिन उनके कथन को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने भाषण में कहीं भी इस बात का संकेत नहीं दिया कि सहारनपुर को राज्य में मिलाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐसा कोई विचार सरकार व संगठन स्तर पर नहीं है। उप्र के कुछ भागों चाहे वह सहारनपुर हो अथवा अन्य कोई, इन्हें उत्तराखंड में शामिल करने का सवाल हमेशा के लिए समाप्त हो चुका है।
बिजनौर के 76 गांवों की पैरवी
काबीना मंत्री हरक सिंह रावत के मुताबिक, मैं उत्तराखंड से लगे बिजनौर क्षेत्र के उन 76 गांवों की लंबे समय से पैरवी कर रहा हूं, जो सैनिक बहुल और पर्वतीय मूल के हैं। पूर्व में इस बारे में संकल्प भी लाया था। इन गांवों को उत्तराखंड में शामिल करने पर यहां की राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।
पहाड़ी राज्य की लड़ी थी लड़ाई
वरिष्ठ आंदोलनकारी सुशीला बलूनी के मुताबिक हमने उत्तराखंड पहाड़ी राज्य मांगा और इसके लिए लड़ाई लड़ी। पहले भी कुंभ क्षेत्र को ही राज्य में शामिल करने की मांग की थी, लेकिन अन्य क्षेत्र भी शामिल किए गए। अब यदि सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाया गया तो इससे इस पहाड़ी राज्य का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।
पार्टी संगठन ही स्पष्ट करेगा
भाजपा विधायक एवं महापौर विनोद चमोली के मुताबिक हमने पर्वतीय राज्य की लड़ाई लड़ी और इसे हासिल भी किया। जहां तक मुख्यमंत्री के बयान की बात तो हो इस बारे में पार्टी संगठन ही कुछ स्पष्ट कर पाएगा।
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